टॉर्नेडो मूलतः वात्याचक्र हैं। यानी घूमती हवा। यह हवा न सिर्फ तेजी से घूमती है बल्कि ऊपर उठती जाती है। इसकी चपेट में जो भी चीजें आती हैं वे भी हवा में ऊपर उठ जाती हैं। इस प्रकार धूल और हवा से बनी काफी ऊँची दीवार या मीनार चलती जाती है और रास्ते में जो चीज़ भी मिलती है उसे तबाह कर देती है। इनके कई रूप हैं। इनके साथ गड़गड़ाहट, आँधी, तूफान और बिजली भी कड़कती है। जब से समुद्र में आते हैं तो पानी की मीनार जैसी बन जाती है। हमारे देश में तो अक्सर आते हैं।
घड़ी में ज्यादा से ज्यादा 12 ही क्यों बजते हैं?
हम जानते हैं कि धरती अपनी धुरी पर 24 घंटे में पूरी तरह घूमती है। इस 23 घंटे को हम एक दिन कहते हैं। दिन को हमने 24 घंटों में बाँटा। इन 24 में से आधे में दिन और आधे में रात होती है। इसलिए 12 घंटे की घड़ी होती है। दिन और रात को अंग्रेजी में एएम और पीएम लिखकर हम पहचानते हैं। यों 24 घंटे वाली घड़ियां भी होती हैं। रेलवे की घड़ी में तो 23 और 24 भी बजते हैं।
तीसरी दुनिया नाम किस तरह पड़ा?
तीसरी दुनिया शीतयुद्ध के समय का शब्द है। शीतयुद्ध यानी मुख्यतः अमेरिका और रूस का प्रतियोगिता काल। फ्रांसीसी डेमोग्राफर, मानव-विज्ञानी और इतिहासकार अल्फ्रेड सॉवी ने 14 अगस्त 1952 को पत्रिका ‘ल ऑब्जर्वेतो’ में प्रकाशित लेख में पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया था। इसका आशय उन देशों से था जो न तो कम्युनिस्ट रूस के साथ थे और न पश्चिमी पूँजीवादी खेमे के नाटो देशों के साथ थे। इस अर्थ में गुट निरपेक्ष देश तीसरी दुनिया के देश भी थे। इनमें भारत, मिस्र, युगोस्लाविया, इंडोनेशिया, मलेशिया, अफ़ग़ानिस्तान समेत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के तमाम विकासशील देश थे। यों माओत्से तुंग का भी तीसरी दुनिया का एक विचार था। पर आज तीसरी दुनिया शब्द का इस्तेमाल कम होता जा रहा है।
क्यूआर कोड क्या है?
क्यूआर का मतलब है क्विक रेस्पांस या क्विकली रीड कोड। इसे पढ़ने के लिए क्यूआर कोड रीडर और स्मार्टफोन से पढ़ा जा सकता है। इसके लिए फोन के अलग-अलग ओएस के प्लेटफॉर्मों के लिए विभिन्न एप्लीकेशन स्टोर में कई मुफ्त क्यूआर कोड रीडर मिलते हैं। क्यूआर कोड में ब्लैक एंड ह्वाइट पैटर्न के छोटे-छोटे स्क्वायर यानी वर्ग होते हैं। इन्हें आप कई जगह देखते है, जैसे कि उत्पादों पर, मैगज़ीन किताबों और अखबारों में। इस कोड को टेक्स्ट, ईमेल, वैबसाइट, फोन नंबर और अन्य से सीधे लिंक किया जाता है। जब आप किसी उत्पाद पर छपे क्यूआर कोड को स्कैन करते है, तब आप इंटरनेट की मदद से सीधे उस साइट पर जा सकते है, जहाँ पर उसके बारे में ज्यादा जानकारी होती है। क्यूआर कोड को 1994 में टयोटा समूह में एक जापानी सहायक, डेन्सो वेव ने बनाया था। तब इसका उद्देश्य था किसी वाहन के निर्माण के दौरान उसे ट्रैक करना।
जब भाषाएं नहीं थीं तब इंसान कैसे बात करते थे?
आप इस चीज़ को छोटे बच्चों में देखने की कोशिश करें। वे भाषा को नहीं जानते, पर अपनी बात कह लेते हैं। मनुष्य की मूल प्रवृत्ति संचार की है। भाषा का विकास अपने आप होता गया और हो रहा है। जब भाषाएं नहीं बनीं थीं तब भी आवाजों, इशारों की भाषा थी। राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
घड़ी में ज्यादा से ज्यादा 12 ही क्यों बजते हैं?
हम जानते हैं कि धरती अपनी धुरी पर 24 घंटे में पूरी तरह घूमती है। इस 23 घंटे को हम एक दिन कहते हैं। दिन को हमने 24 घंटों में बाँटा। इन 24 में से आधे में दिन और आधे में रात होती है। इसलिए 12 घंटे की घड़ी होती है। दिन और रात को अंग्रेजी में एएम और पीएम लिखकर हम पहचानते हैं। यों 24 घंटे वाली घड़ियां भी होती हैं। रेलवे की घड़ी में तो 23 और 24 भी बजते हैं।
तीसरी दुनिया नाम किस तरह पड़ा?
तीसरी दुनिया शीतयुद्ध के समय का शब्द है। शीतयुद्ध यानी मुख्यतः अमेरिका और रूस का प्रतियोगिता काल। फ्रांसीसी डेमोग्राफर, मानव-विज्ञानी और इतिहासकार अल्फ्रेड सॉवी ने 14 अगस्त 1952 को पत्रिका ‘ल ऑब्जर्वेतो’ में प्रकाशित लेख में पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल किया था। इसका आशय उन देशों से था जो न तो कम्युनिस्ट रूस के साथ थे और न पश्चिमी पूँजीवादी खेमे के नाटो देशों के साथ थे। इस अर्थ में गुट निरपेक्ष देश तीसरी दुनिया के देश भी थे। इनमें भारत, मिस्र, युगोस्लाविया, इंडोनेशिया, मलेशिया, अफ़ग़ानिस्तान समेत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के तमाम विकासशील देश थे। यों माओत्से तुंग का भी तीसरी दुनिया का एक विचार था। पर आज तीसरी दुनिया शब्द का इस्तेमाल कम होता जा रहा है।
क्यूआर कोड क्या है?
क्यूआर का मतलब है क्विक रेस्पांस या क्विकली रीड कोड। इसे पढ़ने के लिए क्यूआर कोड रीडर और स्मार्टफोन से पढ़ा जा सकता है। इसके लिए फोन के अलग-अलग ओएस के प्लेटफॉर्मों के लिए विभिन्न एप्लीकेशन स्टोर में कई मुफ्त क्यूआर कोड रीडर मिलते हैं। क्यूआर कोड में ब्लैक एंड ह्वाइट पैटर्न के छोटे-छोटे स्क्वायर यानी वर्ग होते हैं। इन्हें आप कई जगह देखते है, जैसे कि उत्पादों पर, मैगज़ीन किताबों और अखबारों में। इस कोड को टेक्स्ट, ईमेल, वैबसाइट, फोन नंबर और अन्य से सीधे लिंक किया जाता है। जब आप किसी उत्पाद पर छपे क्यूआर कोड को स्कैन करते है, तब आप इंटरनेट की मदद से सीधे उस साइट पर जा सकते है, जहाँ पर उसके बारे में ज्यादा जानकारी होती है। क्यूआर कोड को 1994 में टयोटा समूह में एक जापानी सहायक, डेन्सो वेव ने बनाया था। तब इसका उद्देश्य था किसी वाहन के निर्माण के दौरान उसे ट्रैक करना।
जब भाषाएं नहीं थीं तब इंसान कैसे बात करते थे?
आप इस चीज़ को छोटे बच्चों में देखने की कोशिश करें। वे भाषा को नहीं जानते, पर अपनी बात कह लेते हैं। मनुष्य की मूल प्रवृत्ति संचार की है। भाषा का विकास अपने आप होता गया और हो रहा है। जब भाषाएं नहीं बनीं थीं तब भी आवाजों, इशारों की भाषा थी। राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि : एयर मार्शल अर्जन सिंह और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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