Saturday, September 16, 2017

संसद के अध्यक्ष को स्पीकर क्यों कहते हैं?

भारत की संसदीय प्रणाली ब्रिटिश प्रणाली के आधार पर विकसित हुई है. स्पीकर शब्द ब्रिटिश संसद से हमने लिया है. युनाइटेड किंगडम की संसद का विकास जब हो रहा था, तब सदस्य अपने बीच में से किसी एक सदस्य को चुनते थे, जिसका काम था उनकी बात को कहना. खासतौर से राजा के साथ संवाद करना. ऐसे सदस्य को कहा जाता था मिस्टर स्पीकर. तब राजा बहुत ताकतवर होते थे और संसद की राय उनके पास मिस्टर स्पीकर के मार्फत जाती थी शब्द बाद में केवल स्पीकर रह गया. . यदि राजा को राय पसंद नहीं आई तो स्पीकर को सज़ा भी भुगतनी पड़ती थी. सन 1394 से 1535 के बीच सज़ा के तौर पर सात स्पीकरों की गर्दनें काटी गईं थी. बहरहाल स्पीकर शब्द का पहला इस्तेमाल सन 1377 (सर टॉमस हंगरफोर्ड) में दर्ज है. इसके पहले इस अर्थ में पार्लर और प्रोलोक्यूटर जैसे शब्द भी प्रचलन में थे.

ऑक्सीजन की खोज किसने की?
ऑक्सीजन का किसी ने आविष्कार नहीं किया है, बल्कि यह वातावरण में उपस्थित महत्वपूर्ण गैस है. अलबत्ता इसे रासायनिक तरीके से प्राप्त करने का काम सबसे पहले 1772 में स्वीडन के वैज्ञानिक Carl Wilhelm Scheele नामक वैज्ञानिक ने किया था. इसे हिंदी में प्राणवायु भी कहते हैं. वायु में क़रीब 21% मात्रा ऑक्सीजन की होती है. हवा के अलावा ऑक्सीजन पृथ्वी के अनेक दूसरे पदार्थों में भी रहती है. जैसे पानी में. कई प्रकार के ऑक्साइडों जैसे पारा, चाँदी आदि अथवा डाई ऑक्साइडों लैड, मैंगनीज में. फ्रांसीसी वैज्ञानिक अंतों लैवोइजियर (Antoine Laurent Lavoisier ) ने सन 1777 में इसे ऑक्सीजन नाम दिया.

अंतरिक्ष में जाने वाले रॉकेट के कई स्टेज क्यों होते हैं?
यह सिद्धांत बीसवां सदी के शुरू में रूसी अध्यापक कोंस्तांतिन सिल्कोवस्की ने बनाया था कि अंतरिक्ष यात्रा के लिए कई चरण वाले रॉकेट की जरूरत होगी. इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति को पार करने के लिए एक से ज्यादा रॉकेटों की जरूरत होगी. सामान्यतः आज तीन चरणों वाले रॉकेटों से यह काम लिया जाता है. सबसे नीचे वाला रॉकेट सबसे पहले शुरू होता है. दूसरा चरण जब शुरू होता है तबतक रॉकेट की स्पीड काफी ज्यादा हो चुकी होती है. कई चरणों का फायदा यह भी है कि जैसे ही एक चरण का काम पूरा होता है, वह हिस्सा अलग हो जाता है. इससे रॉकेट का वज़न कम हो जाता है. एक ही रॉकेट हो तो यात्रा के दौरान उसका वज़न कम कर पाना संभव नहीं होगा.

सिक्के गोल क्यों होते हैं, चौकोर क्यों नहीं?
यह बात पूरी तरह सच नहीं है. पचास के दशक तक भारत में दो आने और दो पैसे का सिक्का चौकोर ही होता था. चौकोर सिक्कों के और भी उदाहरण हैं, पर सच है कि ज्यादातर सिक्के गोल होते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उन्हें बैग में या पोटली में रखना आसान है. उनके किनारे घिसते या टकराते नहीं हैं. दुनिया में अलग-अलग आकृतियों के सिक्के बनाने की कोशिशें हुईं हैं, पर व्यावहारिक रूप से गोल सिक्के ही सफल हुए हैं.

शहरों में दूसरे पक्षियों के मुकाबले कबूतर ज्यादा क्यों होते हैं?
कबूतर सामान्यतः चट्टानों के बीच की दरारों में रहते हैं. शहरों में मकानों की छतों, मुंडेरों और बाल्कनियों के बीच ऐसी जगहें आसानी से मिलती हैं, जहाँ वे रह सकते हैं. इसके अलावा कबूतर मनुष्य को नुकसान नहीं पहुँचाते, उनका गोश्त स्वादिष्ट नहीं होता. यानी उनके गोश्त को बहुत कम लोग खाते हैं और सबसे बड़ी बात उन्हें चील जैसे जिन बड़े पक्षियों से खतरा होता है, उनके लिए शहरों के भीतर घुसकर उनका शिकार करना मुश्किल होता है.  

प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...