ई-मंडी नेशनल
एग्रीकल्चर मार्केट या कृषि मंडियों को जोड़ने वाले इलेक्ट्रॉनिक व्यापार मंच का नाम
है. इसके अंग्रेजी संक्षिप्ताक्षर हैं ई-नाम. हिंदी में इसके लिए ई-मंडी शब्द
प्रचलित है. इसकी मदद से किसानों को देशभर की कृषि मंडियों में कृषि उत्पादों का
भाव पता चलता है, साथ ही वे अपनी उपज को
बेच भी सकते हैं. हमारे देश में कृषि उत्पादों को एक राज्य से दूसरे राज्य में
बेचने की प्रक्रियाएं जटिल हैं, जिसके कारण अक्सर
किसानों को अपनी उपज कम कीमत पर बेचनी पड़ती है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत
काम करने वाला 'लघु कृषक कृषि व्यापार
संघ' (एसएफएसी) ई-नाम को लागू
करने वाली शीर्ष संस्था है. देशभर में करीब 2,700 कृषि उपज मंडियां और 4,000 उप-बाजार हैं. पहले कृषि उपज मंडी समितियों के भीतर या एक
ही राज्य की दो मंडियों में कारोबार होता था. अब दो राज्यों की अलग-अलग मंडियों के
बीच ई-नाम के माध्यम से व्यापार शुरू किया गया है. किसानों को इस अवधारणा के साथ
खुद को जोड़ने में शायद समय लगे, पर मंडियों में
व्याप्त बदइंतजामी का यह एक साफ-सुथरा विकल्प है. एक राष्ट्रीय बाजार बनाने के लिए
राज्यों के कृषि मंडी कानूनों में बदलाव की जरूरत भी होगी. सरकार इसे 22,000 ग्रामीण बाजारों से जोड़ना चाहती है. इसकी
सफलता के पीछे बुनियादी ताकत तकनीक की है. ट्रेडर्स अब खरीदारी से पहले जिंस की
गुणवत्ता को चैक कर सकें इसके लिए सरकार ने देश की सभी मंडियों में क्वालिटी चैक
लैब बनाने का भी फैसला किया है.
यह कब शुरू हुआ?
भारत सरकार ने
अप्रेल 2016 में कृषि उत्पादों के
लिए ऑनलाइन बाजार की शुरुआत की थी. ताजा समाचार है कि गत 31 दिसम्बर 2019 तक देश ई-नाम के माध्यम से होने वाला कारोबार 91,000 करोड़ रुपये का हो गया है. इस समय देश के 16 राज्यों में 585 कृषि मंडियाँ इस प्लेटफॉर्म से जुड़ चुकी हैं. अभी तक देश
में 1.65 करोड़ किसान और 1.27 व्यापारी ई-नाम में पंजीकृत हैं. साल 2017 तक ई-मंडी से सिर्फ 17 हजार किसान ही जुड़े थे. सरकार का कहना है कि
कारोबार जल्द एक लाख करोड़ रुपये को पार कर लेगा. इस सप्ताह आने वाले आम बजट में
इस सिलसिले में कोई घोषणा हो सकती है. इस कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर
करती है कि राज्य अपने कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) कानून में जल्द से जल्द
बदलाव करें और छोटे किसानों को भी अच्छा बाजार उपलब्ध कराएं. किसानों की समस्या यह
है कि उनके राज्यों के कानून ही उनकी उपज को बेहतर बाजारों में जाने से रोकते हैं.
एपीएमसी में
बदलाव होगा?
पिछले नवम्बर में
वित्तमंत्री वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्र सरकार राज्यों से
अनुरोध कर रही है कि वे कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) को खारिज कर दें और
इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) को अपनाएं. वित्तमंत्री ही नहीं
स्वयं प्रधानमंत्री जब भी किसानों के बीच जाते हैं इस कार्यक्रम का जिक्र जरूर
करते हैं. जो महत्वपूर्ण खेतिहर राज्य इससे बाहर हैं, उनमें बिहार, केरल और कर्नाटक के नाम हैं. उम्मीद है कि मार्च के तक केरल
और बिहार भी इसमें शामिल हो जाएंगे. कर्नाटक में राज्य स्तर का एक पोर्टल पहले से
काम कर रहा है. केंद्र सरकार प्रयास कर रही है कि कर्नाटक भी जल्द से जल्द
केंद्रीय पोर्टल से खुद को जोड़े.
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