फुटबॉल के मैच के
दौरान अक्सर आपने देखा होगा कि स्टेडियम में बैठे दर्शकों को बीच एक लहर उठती है,
जो एक किनारे से शुरू होकर दूसरे किनारे तक जाती है. दर्शकों की खुशी व्यक्त करने
के इस शैली को मैक्सिकन वेव कहते हैं. इस लहर में दर्शक अपनी कुर्सी से खड़े हो
जाते हैं और दोनों हाथ ऊपर उठाते हैं. जैसे ही बराबर वाला दर्शक उठता है उसके
बराबर वाला और फिर उसके बराबर वाला उठता है. यह सब इतनी तेजी से होता है कि पूरे
स्टेडियम में लहर जैसी उठती है. किसी दर्शक की इच्छा उठने की ना हो, तब भी वह उठता
है. एक-दो दर्शकों नहीं उठने से लहर टूटती नहीं. इसे मैक्सिकन वेव इसलिए कहते हैं,
क्योंकि सन 1986 की मैक्सिको में हुई फीफा विश्व कप प्रतियोगिता में पहली बार टीवी
पर ऐसी लहरें बनती देखी गईं.
टीवी पर दुनिया ने ऐसी
लहरें मैक्सिको में हुए विश्व कप में पहली बार देखी जरूर थीं, पर इस बात को लेकर
विवाद है कि इनका जन्म मैक्सिको में हुआ या नहीं. मैक्सिको ने इन लहरों को बनाना
अमेरिका से सीखा था. 15 अक्तूबर 1981 को अमेरिका के ओकलैंड ए और न्यूयॉर्क यांकीस
के बीच बेसबॉल के एक मैच में प्रोफेशनल चीयर लीडर क्रेज़ी जॉर्ज हेंडरसन ने ऐसी
लहरें बनाईं थीं. ऐसी लहरें अमेरिकी स्टेडियमों में बनती रहीं हैं, जिन्हें केवल
वेव कहा जाता था. फीफा विश्व कप ने इन्हें मैक्सिकन वेव का नाम दिया.
जम्मू-कश्मीर
विधानसभा
जम्मू-कश्मीर
विधानसभा की स्थापना सन 1934 में राजा हरिसिंह की देशी रियासत में हुई थी. तब उसका
नाम था प्रजा सभा. शुरूआत में इसके 100 सदस्य होते थे. सन 1988 में राज्य के
संविधान में किए गए 20वें संशोधन के बाद यह संख्या बढ़ाकर 111 कर दी गई. इनमें से
24 सीटें ऐसी हैं, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पड़ती हैं. इस इलाके पर
पाकिस्तान ने 1947 में कब्जा कर लिया था. कश्मीर विधानसभा के चुनावों में ये 24
सीटें हमेशा खाली रहती हैं. इस प्रकार यहाँ 87 सीटों पर चुनाव होते हैं. इन 87 में
से 46 सीटें कश्मीर की घाटी में हैं, 37 सीटें जम्मू में और 4 लद्दाख क्षेत्र में.
राज्यपाल को यदि लगे कि विधानसभा में महिलाओं की नुमाइंदगी नहीं है, तो वे दो
महिला सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं. यहाँ देश की अन्य विधानसभाओं का कार्यकाल
पाँच वर्ष का होता है जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता है. यहाँ
पिछले चुनाव दिसम्बर 2014 में हुए थे.
अमरनाथ यात्रा कब
शुरू हुई?
अमरनाथ
की गुफा कश्मीर में 12,756 फुट की ऊँचाई पर स्थित है. इसके चारों और बर्फ से ढके
पहाड़ हैं. गुफा भी बर्फ से ढकी रहती है. गर्मियों में कुछ समय के लिए बर्फ पिघलती
है. तभी यह दर्शन के लिए यह खुलती है. गुफा के भीतर छत से पानी टपकने के कारण लगभग
10 फुट ऊँचा शिवलिंग बनता है. श्रावणी पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में होता है.
अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है. कल्हण रचित राजतरंगिणी में इसे अमरेश्वर
या अमरनाथ कहा गया है. भृगु ऋषि ने भी इसका वर्णन किया है. अबुल फ़जल ने आईन-ए-अकबरी
में इसका उल्लेख किया है. इसका विवरण फ्रांसीसी चिकित्सक फ्रांस्वा बर्नियर ने
दिया है, जिसने 1663 में बादशाह औरंगज़ेब के साथ कश्मीर की यात्रा की थी. कहा जाता है
कि सोलहवीं सदी में गुफा की खोज मुसलमान गडरिए बूटा मलिक ने की थी. आज भी चढ़ावे
का एक हिस्सा मलिक परिवार के वंशजों को जाता है.
Amarnath Yatra is a journey on which every person wants to go. And I loved your blog. Thanks for that.
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बार-बार बहाए जाने के बीच ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन लीला चिटनिस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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