Saturday, June 14, 2025

‘डीप स्टेट’ किसे कहते हैं?

 डीप स्टेट शब्द उस समूह या नेटवर्क की ओर इशारा करता है, जो किसी सरकार के भीतर या बाहर से, बिना सार्वजनिक जवाबदेही के, सरकार से ज्यादा ताकतवर नज़र आने लगता है। इस शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले 1990 के दशक में तुर्की में हुआ। यह शब्द तुर्की भाषा के डेरिन डेवलेटसे ही लिया गया, जिसका अर्थ है गैर-निर्वाचित तत्व जो अनधिकृत रूप से लोकतांत्रिक सरकार पर हावी होते हैं। तुर्की में इसका तात्पर्य फौजी, खुफिया एजेंसियों और नौकरशाही से था, जो पर्दे के पीछे से सरकार को नियंत्रित करते थे। इक्कीसवीं सदी में अमेरिका में भी इसका इस्तेमाल हुआ। डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में एफबीआई और सीआईए के खुफिया नेटवर्क के लिए इसका इस्तेमाल हुआ। आजकल पाकिस्तान में सेना को डीप स्टेट माना जाता है। इसमें नौकरशाह, खुफिया एजेंसियाँ, फौजी अधिकारी, जज, राजनेता, कॉरपोरेट अधिकारी यहाँ तक कि अपराधी माफिया तक शामिल हो सकते हैं। यानी ऐसे लोग जो अन्य कारणों से महत्वपूर्ण होते हैं, पर औपचारिक रूप से जनता द्वारा चुने नहीं जाते। यह दिखाई पड़ने वाली ताकत नहीं होती, फिर भी कुछ लोग इसे वास्तविक और संगठित मानते हैं, जबकि कुछ इसे अतिशयोक्तिपूर्ण या काल्पनिक विचार मानते हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 14 जून, 2025 को प्रकाशित

Saturday, June 7, 2025

ISBN कोड क्या होता है?

 

इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नंबर (आईएसबीएन) किसी किताब की विशिष्ट पहचान है। आमतौर पर यह किताब के पिछले कवर पर, कॉपीराइट पेज पर, या बारकोड के साथ छपा होता है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किताबों की बिक्री और पुस्तकालयों में ट्रैकिंग आसान हो जाती है। यह नंबर हरेक पुस्तक के अलग-अलग संस्करणों और परिवर्धित संस्करणों के लिए अलग होता है। इससे किताबों की वैश्विक-पहचान सुनिश्चित होती है। पुस्तक के पुनर्मुद्रण में नंबर वही रहता है। 1 जनवरी 2007 के पहले यह नंबर दस अंकों का होता था। उसके बाद से यह 13 अंकों का हो गया है। इसकी शुरुआत 1966 में 9 अंकों से हुई थी। इसका मानक इंटरनेशनल स्टैंडर्डाइजेशन ऑर्गनाइजेशन (आईएसओ) ने 1970 में तैयार किया था। इसमें प्रकाशक कोड, शीर्षक कोड, देश/भाषा कोड और अंत में चेक डिजिट होती है। कोई भी पुस्तक बगैर आईएसबीएन नंबर के भी प्रकाशित की जा सकती है। लेखक चाहे तो इसे प्रकाशन के बाद भी हासिल किया जा सकता है। पुस्तकों के अलावा पत्रिकाओं के लिए इंटरनेशनल स्टैंडर्ड सीरियल नंबर (आईएसएसएन) भी होता है। संगीत रचना के लिए इंटरनेशनल स्टैंडर्ड म्यूजिक नंबर (आईएसएमएन) होता है। इसकी एक अंतरराष्ट्रीय आईएसबीएन एजेंसी भी है, जो ब्रिटेन में स्थित है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 7 जून, 2025 को प्रकाशित

 

Saturday, May 24, 2025

स्त्रियों-पुरुषों की आवाज में फर्क क्यों?

 हमारी आवाज़ के तीन मुख्य कारक होते हैं। फेफड़े जो हवा तैयार करते हैं, लैरिंक्स में स्थित वोकल कॉर्ड जहाँ आवाज़ बनती है और तीसरे ज़ुबान, गाल, होंठ और मुँह का वह हिस्सा जो स्वर को दिशा देता है। जहाँ से गला शुरु होता है वह दो भागों में बँटता है। एक से भोजन पेट में जाता है और दूसरे से हवा फेफड़ों में। हवा जाने वाले रास्ते के ऊपरी सिरे को कंठ कहते हैं, दो वाकतंतु होते हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी माँसपेशियाँ इन वाकतंतुओं को खींचती हैं और इनमें से गुज़रने वाली हवा कंपन पैदा करती है जो ध्वनि के रूप में सुनाई देती है। बच्चा जब बोलना शुरू करता है तब लड़का हो या लड़की उसकी आवाज एक जैसी होती है। किशोरावस्था में लड़कों का कंठ बड़ा हो जाता है जिसकी वजह से उनकी आवाज़ भारी हो जाती है जबकि लड़कियों के कंठ में उतना विकास नहीं होता। लड़कों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन कंठ नली पर भी प्रभाव डालता है। यह हार्मोन लड़कियों में नहीं बनता, फिर भी हार्मोन या अनुवांशिकी के कारण बहुत सी लड़कियों की आवाज़ भारी और लड़कों की पतली होती है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 24 मई, 2025 को प्रकाशित


 

Sunday, May 18, 2025

भारत में पेपर करेंसी

 

भारतीय करेंसी रुपया, संस्कृत रूप्यकम् से बना है, जिसका अर्थ है चाँदी का सिक्का। यह भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस और सेशेल्स की मुद्रा का नाम है। इंडोनेशिया में मुद्रा को रुपिया और मालदीव में रुफियाह कहते हैं, जो रुपया के ही बदले हुए रूप हैं। भारत में 1861 में पेपर करेंसी एक्ट बनने के बाद, 1862 में महारानी विक्टोरिया के चित्र के साथ नोटों और सिक्कों की एक श्रृंखला जारी की गई। 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना तक, भारत सरकार ने बैंक नोट छापना जारी रखा। 1917 में ढाई रु का नोट भी आया, जिसे 1926 में वापस ले लिया गया। रिजर्व बैंक ने 1938 से बैंकनोट शुरू किए जो 2,5,10,50,100,1000 और 10,000 मूल्य के थे। स्वतंत्रता के बाद नए डिजाइन के नोट आए और 1959 में रिजर्व बैंक ने 5,000 और 10,000 तक के नोट छापे। 1978 में 100 रुपए से ऊपर के नोट बंद कर दिए गए। 1987 में 500 रु का नोट फिर से शुरू किया गया और 2000 में 1,000 का। 2016 में 500 और 1000 के पुराने नोट बंद करके 500 और 2000 के नए नोट जारी किए गए।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित


 

 

Tuesday, May 13, 2025

सबसे बड़े करेंसी नोट

इतिहास में सबसे ऊँचे मूल्य की मुद्रा हंगरी की 100 मिलियन बिलियन पेंगो थी। 1946 में जारी इस नोट का मूल्य 100 क्विंटिलियन पेंगो था, जिससे दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हंगरी में अत्यधिक मुद्रास्फीति का पता लगता है। पहले इस संख्या को समझें। एक हजार ट्रिलियन से एक क्वॉड्रिलियन और एक हजार क्वॉड्रिलियन से एक क्विंटिलियन बनता है। ऐसा ही एक करेंसी नोट जिंबाब्वे का सौ ट्रिलियन जिंबाब्वे डॉलर था, जिसका चलन 2009 में खत्म हुआ। अमेरिका में चालीस के दशक तक 10,000 डॉलर का नोट चलता था। वह भी अमेरिका का सबसे बड़ा करेंसी नोट नहीं था। वहाँ सबसे बड़ा नोट था एक लाख डॉलर का गोल्ड सर्टिफिकेट, जिसपर राष्ट्रपति वुडरो विल्सन का पोर्ट्रेट छपा था। तीस के दशक में ऐसे 42,000 नोट छापे गए थे। 1969 में अमेरिका सरकार ने 100 डॉलर से ऊपर के नोटों का चलन बंद कर दिया। यूरोपीय यूनियन का 500 यूरो का नोट इस वक्त बड़ा नोट माना जाता है, पर 2019 के बाद से उसे जारी नहीं किया गया है। 10,000 जापानी येन, 10,000 सिंगापुर डॉलर,10,000 ब्रूनेई डॉलर, 1,00,000 इंडोनेशिया रुपिया और वियतनाम का 5,00,000 डोंग भी कुछ बड़े नोट हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 10 मई, 2025 को प्रकाशित




Saturday, May 3, 2025

संसदीय विशेषाधिकार क्या होते हैं?

भारत में संसद सदस्यों और समितियों को दिए गए विशेष अधिकार, उन्मुक्ति और छूट हैं जिन्हें संसदीय विशेषाधिकार कहा जाता है। इनका उद्देश्य संसदीय कार्यों के दौरान सदस्यों को बाहरी दबावों और विधिक दायित्वों से संरक्षण देना है। इनकी व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 105 में और राज्य विधानमंडलों के संदर्भ में अनुच्छेद 194 में निहित हैं। सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषाधिकार है सदन और समितियों में स्वतंत्रता के साथ विचार रखने की छूट। सदस्य द्वारा कही गई किसी बात के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कार्रवाई नहीं की जा सकती। कोई सदस्य उस समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि उस सदन या समिति की बैठक चल रही हो, जिसका वह सदस्य है। अधिवेशन से 40 दिन पहले और उसकी समाप्ति से 40 दिन बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। संसद परिसर में केवल अध्‍यक्ष/सभापति के आदेशों का पालन होता है। विशेषाधिकार भंग करने या सदन की अवमानना करने वाले को भर्त्सना, ताड़ना या कारावास की सज़ा दी जा सकती है। सदस्यों के मामले में सदस्यता से निलंबन या बर्खास्तगी भी की जा सकती है। ये दंड सदनों के सामने किए गए अपराधों तक सीमित न होकर सदन की सभी अवमाननाओं पर लागू होते हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 3 मई, 2025 को प्रकाशित



Saturday, April 26, 2025

राज्यों में विधान परिषदें

 

इस समय देश के छह राज्यों में विधान परिषदें है: आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश। संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, संसद को किसी राज्य में विधान परिषद को स्थापित करने या समाप्त करने का अधिकार है, बशर्ते उस राज्य की विधानसभा दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करे। उपरोक्त छह राज्यों के अलावा पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 2021 में विधान परिषद के गठन के लिए प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन यह संसद में लंबित है। राजस्थान सरकार ने भी परिषद के गठन का प्रस्ताव रखा है। यह प्रक्रिया अभी प्रारंभिक चरण में है। कुछ अन्य राज्यों जैसे ओडिशा और असम ने भी में विधान परिषद के गठन पर चर्चा की, लेकिन ठोस प्रगति नहीं हुई। वहीं आंध्र प्रदेश विधानसभा ने जनवरी 2020 में परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया था। यह प्रस्ताव भी संसद में लंबित है। कई राज्यों में विधान परिषद को समाप्त किया जा चुका है, जैसे: पंजाब (1969), पश्चिम बंगाल (1969), तमिलनाडु (1986), आंध्र प्रदेश (1985, हालांकि 2007 में इसे पुनर्जीवित किया गया), जम्मू-कश्मीर में विधान परिषद थी, पर 2019 के राज्य  पुनर्गठन विधेयक के तहत उसका समापन हो गया। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 26 अप्रेल 2025 को प्रकाशित







Sunday, April 20, 2025

‘गिरमिटिया’ प्रथा क्या थी?

सत्रहवीं सदी में अंग्रेज़ों ने भारत से मजदूरों को विदेश ले जाकर उनसे काम कराना शुरू किया। इन मज़दूरों को ‘गिरमिटिया’ कहा गया। गिरमिट शब्द अंग्रेजी के `एग्रीमेंट' शब्द का बिगड़ा हुआ रूप है। जिस कागज पर अँगूठे का निशान लगवाकर मज़दूर भेजे जाते थे, उसे मज़दूर और मालिक `गिरमिट' कहते थे। हर साल 10 से 15 हज़ार मज़दूर गिरमिटिया बनकर फिजी, ब्रिटिश गुयाना, डच गुयाना, ट्रिनीडाड, टोबेगो, दक्षिण अफ्रीका आदि जाते थे। यह प्रथा 1834 में शुरू हुई थी और 1917 में इसे खत्म कर दिया गया। इस प्रथा के विरुद्ध महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका से अभियान प्रारंभ किया। भारत में गोपाल कृष्ण गोखले ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल में मार्च 1912 में गिरमिटिया प्रथा समाप्त करने का प्रस्ताव रखा। कौंसिल के 22 सदस्यों ने तय किया कि जब तक यह अमानवीय प्रथा खत्म नहीं की जाती तब तक वे हर साल यह प्रस्ताव पेश करते रहेंगे। दिसंबर 1916 में कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने भारत सुरक्षा और गिरमिट प्रथा अधिनियम प्रस्ताव रखा। बढ़ते आक्रोश को देखते हुए सरकार ने 12 मार्च, 1917 इस प्रथा को खत्म करने का आदेश गजट में प्रकाशित कर दिया। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 19 अप्रेल, 2025 को प्रकाशित





Saturday, April 12, 2025

आईवी लीग क्या होता है?

आईवी लीग से अकादमिक उत्कृष्टता, प्रतिष्ठा और परंपराओं से जुड़े आठ अमेरिकी विश्वविद्यालयों को पहचाना जाता है। पूर्वोत्तर अमेरिका के ये आठ निजी विश्वविद्यालय, जो अपनी कठिन प्रवेश-प्रक्रिया, उच्चस्तरीय प्रोफेसरों और प्रभावशाली पूर्व छात्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। एक तिहाई से अधिक अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने आईवी लीग स्कूलों में पढ़ाई की है, और इन संस्थानों में नोबेल पुरस्कार विजेताओं की एक प्रभावशाली हिस्सेदारी है। ये सभी पुराने, प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से सात की स्थापना अमेरिका के औपनिवेशिक काल के दौरान हुई थी। ये सभी एसोसिएशन ऑफ अमेरिकन युनिवर्सिटीज़ का हिस्सा हैं, जिसमें अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालय शामिल हैं। ये आठ विश्वविद्यालय हैं: हार्वर्ड (मैसाचुसेट्स), येल (कनेक्टिकट), प्रिंसटन (न्यू जर्सी), कोलंबिया (न्यूयॉर्क), ब्राउन (रोड आइलैंड), डार्टमाउथ (न्यू हैम्पशर), पेन्सिलवेनिया  (पेन्सिलवेनिया) और कॉर्नेल (न्यूयॉर्क)। आईवी लीग जैसा कि नाम से प्रकट होता है, इसकी शुरुआत इन शिक्षा संस्थानों के एथलेटिक सम्मेलन से हुई थी। पहली बार इस शब्द का इस्तेमाल 1933 में न्यूयॉर्क हैरल्ड ट्रिब्यून में एक खेल पत्रकार ने इन आठ ऐतिहासिक कॉलेजों के बीच प्रतिद्वंद्विता का वर्णन करने के लिए ‘आईवी कॉलेज’ वाक्यांश का इस्तेमाल किया था। इन कॉलेजों में आईवी लताओं के कारण समानता भी देखी जाती थी। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 12 अप्रेल, 2025 को प्रकाशित



Saturday, April 5, 2025

अमेरिका नाम कैसे पड़ा?

अमेरिकी महाद्वीप की खोज क्रिस्टोफर कोलंबस ने 1492 में की थी, पर इसका नाम रखने में उनकी भूमिका नहीं है। कोलंबस समझते थे कि उन्होंने जिस जमीन को खोजा, वह भारत है। अमेरिका नाम इतालवी यात्री अमेरिगो वेसपुच्ची के नाम पर है, जो कोलंबस की यात्रा के सात साल बाद 1499 में चार पोतों के एक यात्री दल के साथ अटलांटिक पार करके दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर पहुँचा। जब वह वापस आया तो उसने इस नई जगह को नाम दिया ‘मुंडस नोवस’ यानी नई दुनिया। वेसपुच्ची ने यह साबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि कोलंबस जहाँ गए, वह एशिया का मार्ग नहीं था, बल्कि एक अलग महाद्वीप था। 1507 में जर्मन कार्टोग्राफर मार्टिन वॉल्डसीम्यूलर और उनके सहयोगी मठायस रिंगमान ने नए नक्शे में इस ‘नई दुनिया’ को दिखाया। इसका नाम लिखा अमेरिका, जो अमेरिगो से प्रेरित था। शुरू में उनके नक्शे में दक्षिण अमेरिका ही था। बाद में उत्तरी अमेरिका भी इसमें शामिल किया गया। भूगोलवेत्ता जेराल्ड मर्केटर ने 1538 में दोनों भूखंडों को एक नाम दिया अमेरिका। कुछ अन्य व्याख्याएं भी हैं, पर वेसपुच्ची सिद्धांत व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 5 अप्रेल, 2025 को प्रकाशित



Saturday, March 29, 2025

दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी

माना जाता है कि अमेरिकी डॉलर दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है। हार्ड करेंसी के रूप में वह है भी, पर आज की तारीख में कुवैती दीनार दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा है। स्थिरता इसकी ताकत है। इसके मूल्य में मामूली उतार-चढ़ाव आता है। कुवैत के मज़बूत तेल निर्यात और वित्तीय प्रबंधन के कारण यह मुद्रा स्थिर रहती है। किसी करेंसी को वैश्विक रैंकिंग में ऊपर ले जाने वाले कई कारक होते हैं। कम मुद्रास्फीति, मजबूत अर्थव्यवस्था, ब्याज दरें और निर्यात वगैरह इसके कारक हैं। मोटे तौर पर विनिमय दर एक बड़ा आधार है। पिछले छह महीनों में जहाँ दुनियाभर की अनेक मुद्राओं का मूल्य डॉलर के मुकाबले कम हुआ है वहीं कुवैती दीनार का मूल्य स्थिर रहा है। गत 14 मार्च को एक कुवैती दीनार का मूल्य 3.25 अमेरिकी डॉलर था। पिछले छह महीनों में इसकी सबसे ऊँची कीमत 20 सितंबर, 2024 को 3.28 डॉलर थी। विनिमय दर के आधार पर दुनिया की पहली दस मुद्राएँ इस क्रम में मानी जाती हैं: कुवैती दीनार, बहरीनी दीनार, ओमानी रियाल, जॉर्डन दीनार, ब्रिटिश पाउंड, जिब्राल्टर पाउंड, केमैन आइलैंड्स डॉलर, स्विस फ़्रैंक, यूरो और अमेरिकी डॉलर। 

 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 29 मार्च, 2025 को प्रकाशित



Saturday, March 22, 2025

स्पेस स्टेशन क्या है

स्पेस स्टेशन उपग्रह हैं जो अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए बनाए गए हैं। पहला स्पेस स्टेशन सैल्यूत-1 था जिसे 1971 में सोवियत संघ ने छोड़ा था। इसे पहले धरती पर बनाया गया, फिर छोड़ा गया। अमेरिका का पहला स्टेशन ‘स्काईलैब’ था, जिसे ‘नासा’ ने 14 मई, 1973 को अंतरिक्ष में भेजा। 1977-78 में सौर लपटों से इसे नुकसान पहुँचा और जुलाई, 1979 में जलकर इसके अवशेष समुद्र में गिर गए। 1986 में सोवियत संघ ने ‘मीर’ स्टेशन भेजा, जिसने सन 2001 तक काम किया। वह मॉड्यूलर था, यानी कि इसका एक हिस्सा पहले भेजा गया, फिर धीरे-धीरे अंतरिक्ष में छोटे हिस्से सैटेलाइटों में रखकर भेजे गए और उन्हें जोड़कर बड़ा बनाया गया। अमेरिका ने 80 के दशक में ‘फ्रीडम’ नाम से मॉड्यूलर स्पेस स्टेशन भेजने की योजना बनाई थी, जो फलीभूत नहीं हुई। इसके बाद ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ भेजा गया, जिसमें ‘नासा’ के साथ रूसी, जापानी, कनाडा और यूरोपियन स्पेस एजेंसियों ने मिलकर काम किया। इस समय चीन का स्टेशन ‘तियांगोंग’ भी कक्षा में है, जिसका पहला मॉड्यूल 29 अप्रैल 2021 को भेजा गया था। भारत ने भी 2035 तक स्पेस स्टेशन स्थापित करने की तैयारी की है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 22 मार्च, 2025 को प्रकाशित

इस आलेख के साथ इस जानकारी को भी पढ़ें

अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के नौ महीने बाद धरती पर वापस लौट आने के साथ ही इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) भी चर्चा में बना हुआ है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का मिशन 2031 में ख़त्म हो जाएगा. आईएसएस 1998 में अपने प्रक्षेपण के बाद से स्पेस इंडस्ट्री की तरक्की का प्रतीक रहा है. पृथ्वी से लगभग 400-415 किलोमीटर की ऊँचाई पर मौजूद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 109 मीटर लंबा (एक फुटबॉल मैदान के आकार का) है और इसका वजन चार लाख किलोग्राम (400 टन और लगभग 80 अफ्रीकी हाथियों के बराबर) से अधिक है.





Saturday, March 8, 2025

डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी का अर्थ

इसे डिसरप्टिव इनोवेशन या परिवर्तनकारी नवाचार कहते हैं। जैसे सृजन के लिए संहार जरूरी है वैसे ही परिवर्तन के संदर्भ में इसके मायने सकारात्मक है। इनोवेशन, नयापन लाने के लिए पुराने को खत्म करता है। जैसे सीएफएल ने परंपरागत बल्ब को खत्म किया और एलईडी ने सीएफएल को। ‘डिसरप्टिव इनोवेशन’ शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल अमेरिकी शिक्षाविद क्लेटन क्रिस्टेनसेन ने 1995 में किया था। उनके इस विचार के आधार पर ‘इकोनॉमिस्ट’ ने उन्हें ‘अपने समय का सबसे प्रभावशाली मैनेजमेंट-विचारक’ बताया। विस्तार से इस अवधारणा का उल्लेख रिचर्ड एन फॉस्टर की किताब ‘इनोवेशन: द अटैकर्स एडवांटेज’ और जोसेफ शुम्पेटर  की ‘कैपिटलिज्म, सोशलिज्म एंड डेमोक्रेसी’ में हुआ। सभी नवाचार विघटनकारी नहीं होते, भले ही वे क्रांतिकारी हों। बीसवीं सदी के शुरू में कार का आविष्कार क्रांतिकारी था, पर उसने घोड़ागाड़ी के परंपरागत परिवहन को तत्काल खत्म नहीं किया, क्योंकि मोटरगाड़ी महंगी थी। 1908 में फोर्ड के सस्ते मॉडल टी के आगमन के बाद घोड़ागाड़ी खत्म होने की प्रक्रिया शुरू हुई जो तकरीबन तीस साल तक चली। इसके मुकाबले मोबाइल फोन ने परंपरागत फोन को जल्दी खत्म किया। अब सुनाई पड़ रहा है कि मोबाइल फोन को खत्म करने वाली तकनीक आने वाली है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 8 मार्च, 2025 को प्रकाशित




Saturday, March 1, 2025

आर्टेमिस कार्यक्रम

बाहरी अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए अमेरिका की पहल पर शुरू हुआ यह अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम है। इसमें 2027 तक चंद्रमा पर मनुष्य की यात्रा का प्रयास शामिल है। इसके अलावा इसका लक्ष्य मंगल ग्रह और उससे आगे अंतरिक्ष अन्वेषण का विस्तार करना है। 21 जनवरी 2025 को इस समझौते में फिनलैंड के प्रवेश के साथ, 53 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें यूरोप के 27, एशिया के नौ, दक्षिण अमेरिका के सात, उत्तरी अमेरिका के  पाँच, अफ्रीका के तीन और ओसनिया के दो देश शामिल हैं। समझौते पर मूल रूप से 13 अक्तूबर 2020 को आठ देशों की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए गए थे। ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्ज़ेम्बर्ग, संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जून 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस कार्यक्रम के समांतर चीन और रूस के नेतृत्व में इंटरनेशनल ल्यूनर रिसर्च स्टेशन (आईआरएलएस) नाम से एक और समझौता भी है। इसका इरादा भी चंद्र सतह पर या चंद्र कक्षा में व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण करना है। इसमें 13 सदस्य देश हैं। भारत इसमें शामिल नहीं है।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 मार्च, 2025 को प्रकाशित


Saturday, February 22, 2025

अमेरिकी-स्मारक माउंट रशमोर

आपने अमेरिका के एक पहाड़ की तस्वीर देखी होगी, जिसमें कुछ लोगों के चेहरे बने हैं। दुनिया में राष्ट्रीय नेताओं की याद में बना यह अनोखा स्मारक है। इस पहाड़ को माउंट रशमोर कहते हैं। इस पर अमेरिका के चार पूर्व राष्ट्रपतियों जॉर्ज वॉशिंगटन, टॉमस जैफ़रसन, थियोडोर रूज़वेल्ट और अब्राहम लिंकन के चेहरे बनाए गए हैं। साठ फ़ुट लंबे ये चेहरे 5,725 फ़ुट की ऊँचाई पर बने हैं और काफी दूर से दिखाई देते हैं।1923 में इतिहासकार डोने रॉबिनसन के दिमाग में साउथ डकोटा में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए माउंट रशमोर का विचार आया था। देश के 30वें राष्ट्रपति (1923-1929) केल्विन कूलिज का आग्रह था कि पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन के साथ, दोनों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। मूर्तिकार गुट्ज़ॉन बोर्गलम और 400 कर्मियों ने यह काम 1927 में शुरू करके 1941 में पूरा किया। यह काम पूरा हो ही रहा था कि मार्च 1941 में बोर्गलम का निधन हो गया। तब उनके बेटे लिंकन बोर्गलम ने इस काम को पूरा किया। मूलतः इसमें कमर तक की प्रतिमाएँ बनाने की योजना थी, पर अपर्याप्त धन के कारण इसे इतना ही बनाया जा सका। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 22 फरवरी, 2025 को प्रकाशित


Saturday, February 15, 2025

ध्रुव तारा क्या है?

साहित्य में अक्सर ‘ध्रुव-सत्य’ का इस्तेमाल अटल या अपरिवर्तनीय सत्य के रूप में होता। वास्तव में यह एक तारा नहीं है, बल्कि तारामंडल है, जिसमें छह मुख्य तारे हैं। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में 50वाँ सब से चमकदार तारा है, और लगभग 434 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। मुख्य ध्रुवतारा पोलरिस एए एफ7 श्रेणी का महादानव नक्षत्र है, जो उर्सा माइनर तारामंडल में स्थित है। इसके दो छोटे साथी हैं। पोलरिस एए का द्रव्यमान हमारे सूर्य का 5.4 गुना है। पोलरिस बी का 1.39 सौर द्रव्यमान है। एफ3वी श्रेणी का यह तारा 2400 खगोलीय इकाइयों (एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट) की दूरी पर पोलरिस एए की परिक्रमा कर रहा है। धरती से सूरज की दूरी को एक एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट माना जाता है। तीसरा पोलरिस एबी एफ6 तारा है, जिसका द्रव्यमान 1.26 सौर द्रव्यमान है। चूंकि पोलरिस एए सीध में केवल मामूली झुकाव के साथ उत्तरी ध्रुव के ऊपर है इसलिए उसकी स्थिति हमेशा एक जैसी लगती है। सन 3100 के आसपास एक दूसरा तारा-मंडल उसका स्थान ले लेगा। मंदाकिनियों के विस्तार की वजह से धरती और सौरमंडल की स्थिति धीरे-धीरे बदलती है। तीन हजार साल पहले ध्रुव तारा वही नहीं था, जो आज है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 15 फरवरी, 2025 को प्रकाशित



Sunday, February 9, 2025

यूनिकोड फॉन्ट क्या है?

जब धातु से ढाले गए अक्षरों या फॉन्ट के माध्यम से छपाई होती थी, तब छापाखाने में हरेक भाषा के अलग-अलग केस होते थे। अलग-अलग पॉइंट के, अलग-अलग टाइप फेस को रखना आसान काम नहीं था। कंप्यूटर के आगमन से यह काम कुछ आसान हो गया, पर इंटरनेट के आगमन के बाद गैर-अंग्रेजी, खासतौर से भारतीय भाषाओं के सामने समस्या आई। उन्हें पढ़ने के लिए फॉन्ट को डाउनलोड करने की जरूरत होती थी। यूनिकोड वैश्विक-मानक सॉफ़्टवेयर है, जिसे अमेरिका के यूनिकोड कंसोर्शियम ने वर्णों की एक व्यापक श्रेणी का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिज़ाइन किया है। यह सभी भाषाओं के टेक्स्ट को एक ही तरीके से कोडित और प्रदर्शित करने का काम करता है। इसका इस्तेमाल सभी प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम, ब्राउज़र, सर्च इंजन, लैपटॉप, स्मार्टफ़ोन, और पूरे इंटरनेट में होता है। यह फ़ॉन्ट, ग्लिफ़ (यानी लिपि और दूसरे चिह्नों) को यूनिकोड मानक में परिभाषित कोड बिंदुओं पर मैप करता है। इसमें हर अक्षर के लिए एक खास संख्या होती है, जिसे यूनिकोड वर्ण कोड कहते हैं। इंटरनेट का विकास और विस्तार निजी क्षेत्र की कंपनियों ने किया है। इस लिहाज से इसकी उपलब्धि, महत्वपूर्ण और विश्वव्यापी है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 8 फरवरी, 2025 को प्रकाशित



Tuesday, February 4, 2025

खेल प्रतियोगिताओं के मेडल

खेल की दुनिया का सबसे बड़ा समारोह होता है ओलंपिक। इसकी प्रेरणा यूनान के पुराने खेल समारोहों से ली गई है, जो ईसा से आठ सदी पहले से लेकर ईसा की चौथी सदी तक ओलंपिया में होते रहे। यानी तकरीबन बारह सौ साल तक ये खेल यूनान में हुए। पुराने यूनान में सिर्फ ओलंपिक ही नहीं, चार खेल समारोह होते थे। इन खेलों में विजेता को पदक नहीं दिए जाते थे, बल्कि उनके माथे पर जैतून के उस पेड़ की पत्तियों को बाँधा जाता था, जो ओलंपिया में लगा था। जब 1896 में आधुनिक ओलंपिक खेल शुरू हुए तो जैतून की पत्तियों की जगह मेडल ने ली। 1896 के पहले और सन 1900 के दूसरे ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल नहीं दिए गए। उनमें चाँदी और ताँबे के मेडल क्रमशः विजेता और उपविजेता को दिए गए। 1904 में अमेरिका के मिज़ूरी में तीन मेडलों का चलन शुरू हुआ। ओलंपिक के गोल्ड मेडल का आकार, डिजाइन और वज़न अलग-अलग ओलंपिक खेलों में बदलता रहता है। पदकों के अलावा खेलों में टीमों को ट्रॉफी और शील्ड भी दी जाती हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 फरवरी, 2025 को प्रकाशित



Tuesday, January 28, 2025

लड़ाकू विमानों की पीढ़ियाँ

जेट लड़ाकू विमानों की पाँचवीं या छठी पीढ़ियाँ विकास में प्रमुख प्रौद्योगिकी छलाँगों को व्यक्त करती हैं। लड़ाकू विमानों के लिए जेनरेशन या पीढ़ी शब्द पहली बार 1990 के दशक में इस्तेमाल में आया। पहला जेट लड़ाकू विमान, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में विकसित हुआ था। इसकी मुख्य विशेषता जेट  इंजन के रूप में थी। बाकी मामलों में वह प्रोपेपलर विमानों जैसा ही था। उसमें कोई एवियॉनिक्स-रेडार नहीं था। दूसरी पीढ़ी के विमानों में स्वैप्ट विंग्स, ट्रांससोनिक स्पीड, शुरूआती गन टार्गेटिंग सिस्टम, पहली हीटसीकिंग मिसाइलें थीं। तीसरी पीढ़ी में अधिक उन्नत रेडार प्रणालियाँ, इंफ्रारेड सर्च एंड ट्रैक, रेडार गाइडेड मिसाइलें, सीमित बियोंड विजुअल रेंज मिसाइलें इस्तेमाल में आने लगीं। मैक 2 गति के लिए आफ्टर बर्निंग इंजन का इस्तेमाल हुआ। चौथी पीढ़ी में बेहतर रेडार प्रणाली, लुक डाउन शूट डाउन और कंप्यूटर की सहायता से उड़ान, फ्लाई बाई वायर आदि। चौथी पीढ़ी के बाद 4.5 पीढ़ी के विमानों में एईएसए रेडार, नेटवर्किंग आदि शामिल हुए। पाँचवीं पीढ़ी में सबसे बड़ा तत्व स्टैल्थ यानी लोपन का जुड़ा। विमानों के बीच नेटवर्किंग शुरू हुई। अब छठी पीढ़ी की बातें हैं, पर उसकी विभाजक रेखा अभी स्पष्ट नहीं है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 25 जनवरी 2025 को प्रकाशित



Monday, January 20, 2025

ग्रैंड मास्टर कौन होते हैं?

ग्रैंड मास्टर (जीएम) विश्व शतरंज संगठन फिडे (फ्रेंच फेडरेशन इंटरनेशनेल द एचे) द्वारा प्रदत्त सर्वोच्च उपाधि है। यह उपाधि जीवन भर के लिए होती है।  जीएम बनने की योग्यताएँ बदलती रही हैं। इस समय आधार है 2500+ फिडे क्लासिकल (या मानक) रेटिंग। मानदंड के कई नियम हैं। व्यक्ति को नौ-राउंड वाले फिडे टूर्नामेंट में प्रदर्शन रेटिंग की जरूरत होती है। ग्रैंड मास्टर के अलावा सुपर-ग्रैंडमास्टर शब्द भी प्रचलन में है, पर यह अनौपचारिक है। इसका तात्पर्य 2700+ रेटिंग वाले खिलाड़ी से है। 1950 में दुनिया के 27 खिलाड़ियों को पहला जीएम खिताब दिया गया था। ग्रैंड मास्टर्स में बड़ी संख्या पुरुषों की है।  2024 तक कुल 2000 ग्रैंड मास्टर में से 42 महिलाओं को यह खिताब मिला। महिला ग्रैंडमास्टर खिताब भी होता है, जिसके मापदंड कम कठोर हैं। भारत में 84 ग्रैंड मास्टर हैं, जिनमें तीन महिलाएँ हैं। इसके अलावा 136 इंटरनेशनल मास्टर हैं, जिनमें नौ महिलाएँ हैं। 18 महिला ग्रैंड मास्टर और 43 महिला अंतर्राष्ट्रीय मास्टर भे हैं। मैनुअल आरोन पहले भारतीय थे, जिन्हें 1961 में इंटरनेशनल मास्टर खिताब मिला। विश्वनाथन आनंद 1988 में पहले भारतीय ग्रैंडमास्टर बने।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 18 जनवरी, 2025 को प्रकाशित



Saturday, January 11, 2025

फुलस्टॉप या हिंदी का पूर्ण विराम?

हिंदी में हम जिन विराम चिह्नों का प्रयोग करते हैं, उनमें अधिकतर यूरोप से आए हैं। संस्कृत से हमें केवल खड़ी पाई के रूप में विराम चिह्न मिला है। अल्प विराम, कोलन, सेमी कोलन, डैश, कोष्ठक और उद्धरण चिह्न इनवर्टेड कॉमा विदेशी हैं। पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई का इस्तेमाल पहले से होता रहा है और यह सबसे ज्यादा प्रचलित है। कुछ लोग रोमन ‘डॉट’ से भी पूर्ण विराम बनाते हैं। देवनागरी की अपनी अंक-प्रणाली भी है, पर अब ज्यादातर रोमन अंकों का इस्तेमाल होने लगा है। इसकी वजह है, हमारे संविधान का अनुच्छेद 343 जिसके अनुसार, ‘संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। शासकीय प्रयोजनों में भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप का इस्तेमाल होगा।’ निजी तौर पर अंकों और विराम चिह्नों का प्रयोग व्यक्ति पर निर्भर करता है। हालांकि फांट निर्माता रोमन अंक ‘1’ और विराम चिह्न ‘।’ के रूपांकन में अंतर रखते हैं, फिर भी कई बार भ्रम हो सकता है। वाक्य 101 पर खत्म हो तो 101 को ‘101।’ यानी एक हजार ग्यारह भी पढ़ा जा सकता है। इसमें सही या गलत का कोई मतलब नहीं। दोनों रूप चलते हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 11 जनवरी, 2025 को प्रकाशित



Saturday, January 4, 2025

राज्य-विहीन लोग कौन हैं?

सरल शब्दों में राज्य-विहीन व्यक्ति (स्टेटलैस पीपुल) वह है, जिसके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं होती। कई बार भौगोलिक सीमाओं में बदलाव के बाद भी ऐसा होता है। मसलन पाकिस्तान में लाखों की संख्या में ऐसे बांग्लादेशी हैं, जिन्हें नागरिक नहीं माना जाता। किसी देश का नागरिक बनने की कुछ बुनियादी शर्तें हैं। एक, भूमि-पुत्र, यानी जहाँ व्यक्ति का जन्म हो। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस सिद्धांत को मानते हैं। दूसरे वंशज होना। माता-पिता की नागरिकता को ग्रहण करने वाले। दुनिया के ज्यादातर देश इस सिद्धांत को मानते हैं। व्यक्ति के पास दोनों के प्रमाण नहीं हों, तो वह राज्य विहीन हो जाता है। लंबे अरसे तक बड़ी संख्या में यहूदी राज्य-विहीन रहे। जब लोग उन देशों से बाहर निकलते हैं जहाँ वे पैदा हुए थे, तो राष्ट्रीयता कानूनों के टकराव से राज्य-विहीनता का जोखिम बढ़ता है। कई जगह देश केवल जन्म के आधार पर राष्ट्रीयता की अनुमति नहीं देते, या मूल देश माता-पिता को विदेश में जन्मे बच्चों को राष्ट्रीयता हस्तांतरित करने की अनुमति नहीं देते हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 2024 तक राज्य-विहीनता समाप्त करने का लक्ष्य रखा है, पर यह समस्या बनी हुई है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 4 जनवरी, 2025 को प्रकाशित


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