नाम रखने की परम्परा कब से शुरू हुई?
यह बताना मुश्किल है कि नाम रखने का चलन कब और कहाँ से शुरू हुआ। इतना समझ में आता है कि नाम का रिश्ता पहचान से है। नाम व्यक्ति का ही नहीं वस्तु, वर्ग, समूह, समुदाय, स्थान, जाति, विषय वगैरह-वगैरह के होते हैं। यानी पहली बात पहचान की है। इस पहचान को कोई ध्वनि दी गई। वही नाम है। शुरू में नाम किसी जानवर को दिया गया होगा या किसी फल को या किसी तालाब, नदी या पेड़ को। पेड़ और फल को अलग-अलग पहचानने के लिए ऐसा करना पड़ा होगा। बस्ती और बस्ती का फर्क करने के लिए नाम रखा गया होगा। नदी और नदी, झील और झील। जबतक थोड़े से लोग होंगे नाम की जरूरत नहीं रही होगी, पर जब लोगों की संख्या बढ़ी होगी तब नाम भी बने होंगे। भाषा और लेखन का विकास होने पर इसमें सुधार हुए होंगे। बहरहाल दुनिया की सभी सभ्यताओं में व्यक्तियों के नाम मिलते हैं। यानी मनुष्य का नामकरण प्रागैतिहासिक काल में हो गया था।
एनालॉग सिग्नल्स और डिजिटल सिग्नल्स में क्या अंतर होता है?
हिन्दी में एनालॉग को अनुरूप और डिजिटल को अंकीय सिग्नल कहते हैं। दोनों सिग्नलों का इस्तेमाल विद्युतीय सिग्नलों के मार्फत सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए किया जाता है। दोनों में फर्क यह है कि एनालॉग तकनीक में सूचना विद्युत स्पंदनों के मार्फत जाती है। डिजिटल तकनीक में सूचना बाइनरी फॉर्मेट (शून्य और एक) में बदली जाती है। कम्प्यूटर द्वयाधारी संकेत (बाइनरी) ही समझता है। इसमें एक बिट दो भिन्न दिशाओं को व्यक्त करती है। इसे आसान भाषा में कहें तो कम्प्यूटर डिजिटल है और पुराने मैग्नेटिक टेप एनाल़ॉग। एनालॉग ऑडियो या वीडियो में वास्तविक आवाज या चित्र अंकित होता है जबकि डिजिटल में उसका बाइनरी संकेत दर्ज होता है, जिसे प्ले करने वाली तकनीक आवाज या चित्र में बदलती है। टेप लीनियर होता है, यानी यदि आपको कोई गीत सुनना है जो टेप में 10वें मिनट में आता है तो आपको बाकायदा टेप चलाकर 9 मिनट, 59 सेकंड पार करने होंगे। इसके विपरीत डिजिटल सीडी या कोई दूसरा फॉर्मेट सीधे उन संकेतों पर जाता है। पुराने रिकॉर्ड प्लेयर में सुई जब किसी ऐसी जगह आती थी जहाँ आवाज में झटका लगता हो तो वास्तव में वह आवाज ही बिगड़ती थी। डिजिटल सिग्नल में आवाज सुनाने वाला उपकरण डिजिटल सिग्नल पर चलता है। मैग्नेटिक टेप में जेनरेशन लॉस होता है। यानी एक टेप से दूसरे टेप में जाने पर गुणवत्ता गिरती है। डिजिटल प्रणाली में ऐसा नहीं होता।
प्रॉक्सी युद्ध क्या होता है?
प्रॉक्सी माने किसी के बदले काम करना। मुख्तारी, किसी का प्रतिनिधित्व। वह चाहे वोट देना हो या युद्ध लड़ना। दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर लड़ना या लड़ाना। यह युद्ध दो गुटों के बीच हो सकता है। या एक किसी का प्रॉक्सी युद्ध दूसरे से लड़ा जाए।
गारंटी और वॉरंटी में क्या अंतर है?
सामान्य अर्थ में गारंटी है किसी वस्तु की पूरी जिम्मेदारी। वह खराब हो तो या तो दुरुस्त करने या पूरी तरह बदलने का आश्वासन। वॉरंटी का मतलब है एक कीमत लेकर उस वस्तुगत को कारगर बनाए रखने का वादा।
पोक्सो कानून क्या है?
पोक्सो कानून से आशय है लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस)। 19 जून 2012 से लागू इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्सुअल बर्ताव इसके दायरे में आता है। इसके तहत लड़के और लड़की, दोनों को ही संरक्षण दिया गया है। इस तरह के मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है और बच्चों के साथ होने वाले अपराध के लिए उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
राजस्थान पत्रिका के मी नेक्स्ट में प्रकाशित 26 अक्टूबर 2014
यह बताना मुश्किल है कि नाम रखने का चलन कब और कहाँ से शुरू हुआ। इतना समझ में आता है कि नाम का रिश्ता पहचान से है। नाम व्यक्ति का ही नहीं वस्तु, वर्ग, समूह, समुदाय, स्थान, जाति, विषय वगैरह-वगैरह के होते हैं। यानी पहली बात पहचान की है। इस पहचान को कोई ध्वनि दी गई। वही नाम है। शुरू में नाम किसी जानवर को दिया गया होगा या किसी फल को या किसी तालाब, नदी या पेड़ को। पेड़ और फल को अलग-अलग पहचानने के लिए ऐसा करना पड़ा होगा। बस्ती और बस्ती का फर्क करने के लिए नाम रखा गया होगा। नदी और नदी, झील और झील। जबतक थोड़े से लोग होंगे नाम की जरूरत नहीं रही होगी, पर जब लोगों की संख्या बढ़ी होगी तब नाम भी बने होंगे। भाषा और लेखन का विकास होने पर इसमें सुधार हुए होंगे। बहरहाल दुनिया की सभी सभ्यताओं में व्यक्तियों के नाम मिलते हैं। यानी मनुष्य का नामकरण प्रागैतिहासिक काल में हो गया था।
एनालॉग सिग्नल्स और डिजिटल सिग्नल्स में क्या अंतर होता है?
हिन्दी में एनालॉग को अनुरूप और डिजिटल को अंकीय सिग्नल कहते हैं। दोनों सिग्नलों का इस्तेमाल विद्युतीय सिग्नलों के मार्फत सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने के लिए किया जाता है। दोनों में फर्क यह है कि एनालॉग तकनीक में सूचना विद्युत स्पंदनों के मार्फत जाती है। डिजिटल तकनीक में सूचना बाइनरी फॉर्मेट (शून्य और एक) में बदली जाती है। कम्प्यूटर द्वयाधारी संकेत (बाइनरी) ही समझता है। इसमें एक बिट दो भिन्न दिशाओं को व्यक्त करती है। इसे आसान भाषा में कहें तो कम्प्यूटर डिजिटल है और पुराने मैग्नेटिक टेप एनाल़ॉग। एनालॉग ऑडियो या वीडियो में वास्तविक आवाज या चित्र अंकित होता है जबकि डिजिटल में उसका बाइनरी संकेत दर्ज होता है, जिसे प्ले करने वाली तकनीक आवाज या चित्र में बदलती है। टेप लीनियर होता है, यानी यदि आपको कोई गीत सुनना है जो टेप में 10वें मिनट में आता है तो आपको बाकायदा टेप चलाकर 9 मिनट, 59 सेकंड पार करने होंगे। इसके विपरीत डिजिटल सीडी या कोई दूसरा फॉर्मेट सीधे उन संकेतों पर जाता है। पुराने रिकॉर्ड प्लेयर में सुई जब किसी ऐसी जगह आती थी जहाँ आवाज में झटका लगता हो तो वास्तव में वह आवाज ही बिगड़ती थी। डिजिटल सिग्नल में आवाज सुनाने वाला उपकरण डिजिटल सिग्नल पर चलता है। मैग्नेटिक टेप में जेनरेशन लॉस होता है। यानी एक टेप से दूसरे टेप में जाने पर गुणवत्ता गिरती है। डिजिटल प्रणाली में ऐसा नहीं होता।
प्रॉक्सी युद्ध क्या होता है?
प्रॉक्सी माने किसी के बदले काम करना। मुख्तारी, किसी का प्रतिनिधित्व। वह चाहे वोट देना हो या युद्ध लड़ना। दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर लड़ना या लड़ाना। यह युद्ध दो गुटों के बीच हो सकता है। या एक किसी का प्रॉक्सी युद्ध दूसरे से लड़ा जाए।
गारंटी और वॉरंटी में क्या अंतर है?
सामान्य अर्थ में गारंटी है किसी वस्तु की पूरी जिम्मेदारी। वह खराब हो तो या तो दुरुस्त करने या पूरी तरह बदलने का आश्वासन। वॉरंटी का मतलब है एक कीमत लेकर उस वस्तुगत को कारगर बनाए रखने का वादा।
पोक्सो कानून क्या है?
पोक्सो कानून से आशय है लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस)। 19 जून 2012 से लागू इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्सुअल बर्ताव इसके दायरे में आता है। इसके तहत लड़के और लड़की, दोनों को ही संरक्षण दिया गया है। इस तरह के मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में होती है और बच्चों के साथ होने वाले अपराध के लिए उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
राजस्थान पत्रिका के मी नेक्स्ट में प्रकाशित 26 अक्टूबर 2014
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