Tuesday, January 6, 2015

ई-कचरा क्या है? इसका निपटारा कैसे होता है?

आपने ध्यान दिया होगा कि घरों से निकलने वाले कबाड़ में अब पुराने अखबारों, बोतल, डिब्बों, लोहा-लक्कड़ के अलावा पुराने कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, सीडी, टीवी, अवन, रेफ्रिजरेटर, एसी जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक आइटम जगह बनाते जा रहे हैं। पहले बड़े आकार के कम्प्यूटर, मॉनिटर आते थे, जिनकी जगह स्लिम और फ्लैट स्क्रीन वाले छोटे मॉनिटरों ने ले ली है। माउस, की-बोर्ड या अन्य उपकरण जो चलन से बाहर हो गए हैं, वे ई-वेस्ट की श्रेणी में आते हैं। फैक्स, मोबाइल, फोटो कॉपियर, कम्प्यूटर, लैप-टॉप, कंडेंसर, माइक्रो चिप्स, पुरानी शैली के कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों तथा अन्य उपकरणों के बेकार हो जाने के कारण इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। अमेरिका में हरेक घर में साल भर में औसतन छोटे-मोटे 24 इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदे जाते हैं। इन पुराने उपकरणों का फिर कोई उपयोग नहीं होता। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका में कितना इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता होगा। बदलती जीवन शैली और बढ़ते शहरीकरण के कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है। इससे पैदा होने वाले इलेक्ट्रॉनिक कचरे के दुष्परिणाम से हम बेखबर हैं। ई-कचरे से निकलने वाले रासायनिक तत्त्व लीवर, किडनी को प्रभावित करने के अलावा कैंसर, लकवा जैसी बीमारियों का कारण बन रहे हैं। उन इलाकों में रोग बढ़ने का अंदेशा ज्यादा है जहाँ अवैज्ञानिक तरीके से ई-कचरे की रीसाइक्लिंग की जा रही है। ई-वेस्ट से निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। फसलों और पानी के जरिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर बीमारियों को जन्म देते हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने कुछ साल पहले जब सर्किट बोर्ड जलाने वाले इलाके के आसपास शोध कराया तो पूरे इलाके में बड़ी तादाद में जहरीले तत्व मिले थे, जिनसे वहां काम करने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका जताई गई, जबकि आसपास के लोग भी फसलों के जरिए इससे प्रभावित हो रहे थे।

भारत सहित कई अन्य देशों में हजारों की संख्या में महिला पुरुष व बच्चे इलेक्ट्रॉनिक कचरे के निपटान में लगे हैं। इस कचरे को आग में जलाकर इसमें से आवश्यक धातु आदि भी निकाली जाती हैं। इसे जलाने के दौरान जहरीला धुआँ निकलता है, जो घातक होता है। सरकार के अनुसार 2004 में देश में ई-कचरे की मात्रा एक लाख 46 हजार 800 टन थी जो बढ़कर वर्ष 2012 तक आठ लाख टन से ज्यादा हो गई है। विकसित देश अपने यहाँ के इलेक्ट्रॉनिक कचरे की गरीब देशों को बेच रहे हैं। गरीब देशों में ई-कचरे के निपटान के लिए नियम-कानून नहीं बने हैं।  इस कचरे से होने वाले नुकसान का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसमें 38 अलग प्रकार के रासायनिक तत्व शामिल होते हैं जिनसे काफी नुकसान भी हो सकता है। इस कचरे को आग में जलाकर या तेजाब में डुबोकर इसमें से आवश्यक धातु आदि निकाली जाती है।
यों ई-वेस्ट के सही निपटान के लिए जब तक व्यवस्थित ट्रीटमेंट नहीं किया जाता, वह पानी और हवा में जहर फैलता रहेगा। कुछ समय पहले दिल्ली के एक कबाड़ी बाजार में एक उपकरण से हुए रेडिएशन के बाद इस खतरे की और ध्यान गया है।


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