मनुष्य धरती पर रहने के लिए ही बना है. दूसरे शब्दों में उसका विकास धरती के प्राणी के रूप में ही हुआ है. मनुष्य के पक्षी के रूप में उड़ने के लिए काफी बड़े पंख, मजबूत हड्डियों और दमदार मांसपेशियों की जरूरत होगी. यदि आप तुलनात्मक रूप से देखें तो एक पक्षी के वजन और उसके पंखों के आकार में एक अनुपात होता है. प्राकृतिक विकास इसी रूप में हुआ है इसलिए पक्षी एक सीमा से बड़े या भारी नहीं मिलते. अतीत में लगभग सात करोड़ साल पहले जब डायनोसौर धरती पर विचरण करते थे, उड़ने वाले क्वेजाकोटलस होते थे. वे विशाल प्राणी थे, पर उनके वजन और पंखों का अनुपात देखें तो पता लगेगा कि वे सामान्य डायनोसौरों के मुकाबले काफी हल्के थे. इनके पंखों का विस्तार 10 से 16 मीटर यानी 33 से 52 फुट तक था, जबकि वजन 70 से 200 किलोग्राम तक था. आज भी पक्षियों की कई श्रेणियाँ जैसे बत्तख, मुर्गी, मोर और शतुरमुर्ग वगैरह पंख और वजन के असंतुलन और हड्डियों तथा मांसपेशियों की संरचना के कारण उड़ने में असमर्थ हैं.
बादल फटना क्या होता है?
बादल फटने का मतलब एक छोटे से इलाके में कुछ मिनटों के भीतर भारी
बरसात होना है. मैदानी
क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रों में बादल ज्यादा फटते हैं. मौसम वैज्ञानिकों
के मुताबिक, प्रति घंटा 100 मिली मीटर (3.94 इंच)
के बराबर या उससे ज्यादा बारिश होना बादल फटना है. इस दौरान जो बादल बनता है वह जमीन
से 15 किलोमीटर की ऊंचाई तक जा सकता है. बादल फटने के दौरान कुछ मिनटों में 20 मिली
मीटर से ज्यादा बरसात हो सकती है. जब वातावरण में बहुत ज्यादा नमी हो और बादलों को
आगे बढ़ने की जगह न मिले तब ऐसा होता है. भारी मात्रा के साथ क्यूम्यूलोनिम्बस या कपासी
वर्षी बादल जब ऊपर उठते हैं और उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिलता तो उनमें मौजूद
पानी नीचे गिर जाता है. यह एक तरीके से पानी भरे बैलून का फटना है. इसकी दूसरी वजहें
भी होती हैं. जैसे कि सर्द और गर्म हवाओं का टकराना. 26 जुलाई 2005 को मुम्बई में इसी
तरह से बादल फटा था.
कीड़े-मकौड़े पानी पर बिना डूबे कैसे
चलते रहते हैं?
आमतौर पर कीड़ों का वजन इतना कम होता
है कि वे पानी के पृष्ठ तनाव या सरफेस टेंशन को तोड़ नहीं पाते. पानी और दूसरे द्रवों
का एक गुण है जिसे सरफेस टेंशन कहते हैं. इसी गुण के कारण किसी द्रव की सतह किसी दूसरी
सतह की ओर आकर्षित होती है. पानी का पृष्ठ तनाव दूसरे द्रवों के मुकाबले बहुत ज्यादा
होता है. इस वजह से बहुत से कीड़े मकोड़े आसानी से इसके ऊपर टिक सकते हैं. इन कीड़ों
का वजन पानी के पृष्ठ तनाव को भेद नहीं पाता. सरफेस टेंशन एक काम और करता है. पेन की
रिफिल या कोई महीन नली लीजिए और उसे पानी में डुबोएं. आप देखेंगे कि पानी नली में काफी
ऊपर तक चढ़ आता है. पेड़ पौधे ज़मीन से पानी इसी तरीके से हासिल करते है? उनकी जड़ों से बहुत पतली-पतली नलियां निकलकर
तने से होती हुई पत्तियों तक पहुंच जाती हैं. सन 1995 में गणेश प्रतिमाओं के दूध पीने
की खबर फैली थी. वस्तुतः पृष्ठ तनाव के कारण चम्मच का दूध पत्थर की प्रतिमा में ऊपर
चढ़ जाता था.
पानी या ओस की बूँदें गोल क्यों होती
हैं?
पानी की बूँदों के गोल होने का कारण
भी पृष्ठ तनाव है. यों तो पानी जिस पात्र में रखा जाता है उसका आकार ले लेता है, पर
जब वह स्वतंत्र रूप से गिरता है तो धार जैसा लगता है, क्योंकि गुरुत्वाकर्षण शक्ति
के कारण जैसे–जैसे उसकी मात्रा धरती की ओर जाती है उसी क्रम में आकार लेती है. इसके
अलावा पानी के मॉलीक्यूल एक-दूसरे को अपनी ओर खींचते हैं और यह क्रिया केन्द्र की ओर
होती है, इसलिए पानी टूटता नहीं. जैसे-जैसे पानी की बूँद का आकार छोटा होता है, वह
गोल होती जाती है. यों आपने कुछ बड़ी बूँद को हल्का सा नीचे की ओर लटका हुआ भी पाया
होगा.
कॉकटेल शब्द का अर्थ क्या है?
कॉकटेल ऐसी शराब है जिसमें कई तरह की
शराब, फलों के रस और शर्बत मिलाए जाते हैं. इस शब्द का सबसे पुराना लिखित प्रमाण
20 मार्च 1798 के लंदन के ‘द मॉर्निंग पोस्ट एंड गजेटियर’ में मिलता है.
ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी
के अनुसार इस शब्द का जन्म अमेरिका में हुआ. इसे ऐसे पेय के रूप में पेश किया जाता
है, जिसे पीने के बाद इंसान कुछ भी पी सकता है. पर इसका नाम ऐसा क्यों पड़ा? कुछ लोग कहते हैं कि जो शराब का मिश्रण बनाया
जाता था उसे मुर्गे की पूँछ से हिलाकर मिलाया जाता था. इसे नाम पड़ा कॉकटेल. ऐसा भी
कहा जाता है कि यह शब्द फ्रांसीसी शब्द कॉकते से बना है जिसका मतलब था अंडे का कप.
फ्रांस में किसी ने इसी किस्म के मिश्रित पेय को अंडों के कप में ढालकर दिया और कप
ने पेय का नाम ले लिया. बहरहाल अब यह किसी किस्म की मिली-जुली चीज का पर्याय बन गया
है. विभिन्न तेजाबों और विस्फोटकों से बने बम का नाम है मोलोतोव कॉकटेल.
रोमन संख्या 7 को लिखते समय ज्यादातर
बीच से काट क्यों दिया जाता है? हिन्दी के अंकों में नहीं काटा जाता.
यूरोप और खासतौर से फ्रांस में 7 की संख्या
के बीच में एक छोटी सी क्षैतिज रेखा खींच दी जाती है. इसका कारण 7 को 1 से अलग दिखाना
है. फ्रांस में 1 की संख्या सिखाते समय बच्चों को शीर्ष से एक छोटी सी रेखा जो 45 अंश
का कोण बनाती हुई नीचे की ओर खींचना सिखाते हैं. इसके साथ ही 7 की संख्या के मध्य में
काटती हुई रेखा खींचते हैं ताकि दोनों भिन्न लगें. 1 के शिखर पर छोटी सी रेखा उसे सात
जैसा बना देती है. फ्रांस के अलावा जर्मनी, रोमानिया, पोलैंड और रूस के स्कूलों में
बच्चों को हाथ से गिनती लिखने का अभ्यास कराते समय यह रेखा खींचने का अभ्यास भी कराया
जाता है.