स्टेम सेल बहुकोशिकीय
जीवों के शरीर की कोशिकाएं हैं। इनकी विशेषता है माइटोटिक सेल डिवीज़न के तहत इनका
बढ़ना। नाभि-रज्जु (अम्ब्लिकल कॉर्ड) या अस्थि मज्जा(बोन मैरो) से रक्त कोशिका लेकर
उनके कल्चर के बाद शरीर के क्षतिग्रस्त अंगों का इलाज सम्भव है। इनकी सहायता से
शरीर के भीतर अनेक अंगों को फिर से विकसित
किया जा सकता है। साठ के दशक में टोरंटो विवि के अर्नेस्ट ए मैक्युलॉक और जेम्स ई
टिल ने इस सिलसिले में बुनियादी अनुसंधान किया था। तब से चिकित्सा के क्षेत्र में
स्टेम सेल ने क्रांति ला दी है।
ऑस्ट्रेलिया को Oz और दक्षिणी अफ्रीका को PROTEAS क्यों लिखा जाता है?
आस्ट्रेलिया को संक्षेप
में Aussie या ऑज़ी कहते हैं। इसे और छोटा करके Oz भी लिखते हैं। आमतौर पर हम जिसे जेड कहते हैं
उसका उच्चारण ज़ी होता है। यानी ओज़ी। दक्षिण अफ्रीका को प्रोटिएस कहने की वजह है फूलों
की एक प्रजाति जिसका नाम है प्रोटिएस। इसे दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रीय फूल माना
जाता है। दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के प्रतीक चिह्न में भी यह फूल शामिल है। यों
पहले दक्षिण अफ्रीका की टीम को स्प्रिंगबोक भी कहा जाता था। स्प्रिंगबोक दक्षिण
अफ्रीका के हिरनों की एक प्रजाति है। यह हिरन हवा में बहुत ऊँचा उठ जाता है। इसी
तरह आस्ट्रेलिया की टीम को कैंगरू या कंगारू भी कहा जाता है।
कैलेंडर क्यों
बने और कितने प्रकार के होते हैं?
समय को क्रमबद्ध करने की
व्यवस्था का नाम कैलेंडर है। इस व्यवस्था की ज़रूरत सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,
प्रशासनिक, खेती-बाड़ी, तकनीकी और
वैज्ञानिक कारणों से पैदा होती है। सब कुछ स्थिर नहीं है, बल्कि चलायमान है। इस गति को नापने के स्केल बने। उनकी
व्यवस्था कैलेंडर है। वर्ष महीने, सप्ताह, दिन, घंटे, मिनट और सेकंड समय नापने
के कुछ पैमाने हैं। यह समय चक्र चंद्रमा या सूर्य या दोनों की गतियों से तय होता
है। चंद्रमा के अपने पूर्ण आकार लेने से गायब होने तक और फिर क्रमशः पूर्ण आकार
लेने के चौदह-चौदह दिन के दो पखवाड़ों से महीने बने। इसके विपरीत पृथ्वी द्वारा
सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने पर एक वर्ष बना। चन्द्र मास के बारह महीने 365 दिन नहीं लेते। इसलिए चन्द्र-व्यवस्था के
कैलेंडरों में एक अतिरिक्त महीने का चक्र भी शामिल किया गया। दुनिया भर की
सभ्यताओं और संस्कृतियों ने अपने-अपने कैलेंडर बनाए हैं।
कैलेंडर सभ्यताओं के प्राचीनतम
आविष्कार हैं। प्राचीन मिस्र, भारत, चीन और मेसोपोटामिया में कैलेंडर बन गए थे।
भारतीय कैलेंडर आमतौर पर चन्द्र या सौर-चन्द्र व्यवस्था पर केंद्रित हैं। भारत में
इन्हें पंचांग कहते हैं। पंचांग माने तिथि, वासर, नक्षत्र, योग और करण का विवरण देने वाली व्यवस्था। वेदों
में पंचांग का उल्लेख हैं। भारत में अनेक पद्धतियों के पंचांग हैं, पर सबसे ज्यादा प्रचलित विक्रम और शक या
शालिवाहन पंचांग हैं। दुनिया में आमतौर पर प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर है। यह ईसाई
कैलेंडर है। इसके सुधरे रूप जूलियन कैलेंडर को आमतौर पर दुनिया के ज्यादातर संगठन
मान्यता देते हैं। इस्लामिक और चीनी कैलेंडर भी अपनी-अपनी जगह प्रचलित हैं।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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