क्रिकेट के खेल
का संचालन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल करती है, पर इसके नियमों
का कस्टोडियन मैरिलेबोर्न क्रिकेट क्लब (एमसीसी) है. चूंकि नियमों का नियंता
एमसीसी है इसलिए गेंद के रंग और आकार आदि का निर्णय भी उसी का है. क्रिकेट की गेंद
परम्परा से ही लाल है. फैसला करने वालों ने इसे लाल क्यों माना इसपर कोई आधिकारिक
विवरण मुझे नहीं मिला. दो बातें समझ में आती हैं. एक तो यह कि चमड़े की अधिकतर
वस्तुएं लाल या काली होती हैं. क्रिकेट की गेंद चमड़े से मढ़ी होती है. इसका लाल रंग
भी कई बार कालिमा, नीलिमा और पीलिमा लिए होता है.
एक दिनी क्रिकेट
के प्रादुर्भाव के बाद से गेंद का रंग लाल से सफेद किया गया है, पर वह टेस्ट और प्रथम श्रेणी के क्रिकेट में लाल ही होती है.
एक दिनी क्रिकेट में गेंद का रंग सफेद रखने के पीछे सबसे बड़ा कारण आँखों को नज़र
आने लायक बनाना था. एक दिनी क्रिकेट दिन और रात में खेला जाता है. रात को कृत्रिम
रोशनी में लाल रंग की गेंद देखने में दिक्कत थी. दिन में लाल रंग देखना आसान होता
है. उसकी लाल पॉलिश ज्यादा देर तक चढ़ी रहती है और उसपर घास का हरा रंग चढ़ नहीं
पाता. यों जुलाई 2009 में इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की महिलाओं के
बीच एक मैच में गुलाबी गेंद का इस्तेमाल भी हो चुका है.
अष्ट धातु क्या
है?
अष्टधातु नाम से
ही स्पष्ट है कि यह आठ धातुओं की बात है. इसमें आठ धातु हैं सोना, चांदी, तांबा, रांगा, जस्ता, सीसा, लोहा और पारा. सुश्रुत
संहिता में केवल सात धातुओं का उल्लेख है. शायद सुश्रुत पारे को धातु नहीं मानते
होंगे. बहरहाल अष्टधातु परम्परा से भारतीय
संस्कृति में पवित्र माने जाते रहे हैं. हमारे यहाँ प्रतिमाओं का निर्माण अष्टधातु
से किया जाता था. भारतीय फलित ज्योतिष में नवग्रहों के प्रभाव घटाने या बढ़ाने के
लिए अष्टधातु की अंगूठी, कड़े आदि पहनने का विधान
है.
कोल्ड
ड्रिंक्स पर लिखा एफपीओ क्या होता है?
केवल पेय ही नहीं, किसी भी प्रकार की प्रसंस्करित खाद्य या पेय सामग्री को पैकेज कर बेचने के लिए
भारत में इस निशान को लगाना अनिवार्य है. यह इस बात को बताता है कि पैकेजबंद
सामग्री को तैयार करते वक्त फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट-2006 के मानकों को
पूरा किया गया है. यह मानक हालांकि फ्रुट प्रोडक्ट्स ऑर्डर (एफपीओ) के अंतर्गत
1955 से चला आ रहा है, पर सन 2006 के कानून के बाद देश में खाद्य सामग्री की प्रोसेसिंग का उद्योग
शुरू करने के पहले एफपीओ लाइसेंस लेना ज़रूरी है.
एटीएम की मशीन सबसे
पहले कहाँ बनी?
एटीएम का अर्थ
होता है ऑटोमेटेड टैलर मशीन. इसका जन्म सेल्फ सर्विस की धारणा के साथ हुआ है, जिससे काम आसान हो और अनावश्यक कर्मचारियों को लगाना न पड़े.
इस मशीन के आविष्कार का श्रेय आर्मेनियाई मूल के अमेरिकन लूथर जॉर्ज सिमियन को
मिलना चाहिए. यों इसके विकास में कुछ और लोगों का भी हाथ है. एटीएम की परिकल्पना
उसने 1939 में ही कर ली थी और बैंकमैटिक नाम से एक मशीन
बनाई. जिसे पेटेंट मिला फरवरी 1963 में. इस बीच उसने सिटी
बैंक ऑफ न्यूयॉर्क(आज का सिटी बैंक) के अधिकारियों को इस बात के लिए राजी किया कि
वे इस मशीन को परीक्षण के तौर पर लगाकर देखें. सिटी बैंक ने छह महीने के ट्रायल पर
मशीन लगाई, पर उसे लोकप्रियता नहीं मिली. इसकी लोकप्रियता
जापान से बढ़ी वह भी क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल के कारण. एटीएम के साथ-साथ चॉकलेट, कोल्ड ड्रिंक और अन्य कई वस्तुओं के डिस्पेंसर भी उसी दौरान
बने हैं.
भारत में पिनकोड
की शुरुआत कब हुई?
पिनकोड माने
पोस्टल इंडेक्स नम्बर. भारत में यह 15 अगस्त 1972 में लागू किया गया. इसके अंतर्गत देश को आठ भौगोलिक
क्षेत्रों में बाँटा गया है. सेना डाकघर और फील्ड डाकघर नवाँ क्षेत्र है. पिनकोड
की पहली संख्या भौगोलिक क्षेत्र को और पहली दो संख्याएं राज्य को, उसके बाद शहर या शहरी इलाके को, मुहल्लों, कॉलोनियों वगैरह को व्यक्त
करतीं हैं. प्राय: बड़े राज्यों के नाम आबंटित पहली दो संख्याएं ही ज्यादा होतीं
हैं. बिहार-झारखंड की पहली दो संख्याएं 80 से 85 हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के पिनकोड नम्बर 20 से 28 हैं.
एक किलो शहद के लिए कितने
फूलों की जरूरत होती है??
मधुमक्खियाँ
जैसा कि आप जानते हैं श्रम और श्रम विभाजन का बेहतरीन उदाहरण हैं. एक श्रमिक मक्खी
औसतन एक दिन में तकरीबन दस उड़ानें भरकर शहद लाती है. हर ट्रिप में वह तकरीबन 1000
फूलों पर बैठती है. इस तरह तकरीबन 65,000 ट्रिप में 6.5 करोड़ फूलों की यात्रा से
एक किलोग्राम शहद तैयार होता है.
प्रमोद जी आपने अपने इस लेख में क्रिकेट मैच में उपयोग होने वाली लाल गेंद का वर्णन किया कि ऐसा क्यों हैं कि लाल गेंद का उपयोग क्यूं होता है........ऐसी अनोखी बात का आज तक किसी ने ध्यान न दिया होगा.........ऐसी ही अनोखी रचना आप शब्दनगरी के माध्यम से पढ़ व अपनी रचनाएं व लेखों को लिख सकतें हैं.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी
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