व्यापक स्तर पर यह व्यवस्था
18वीं सदी में बड़े स्तर पर सामने आई, जब यूरोप और उत्तरी अमेरिका में सांविधानिक
व्यवस्थाओं के तहत प्रतिनिधियों के चुनाव की जरूरत महसूस की गई. यों चुनाव-पद्धति का
विकास हो ही रहा है और तकनीकी-विकास के साथ इसका रूप बदल रहा है. चुनाव प्राचीन
यूनान, रोम और भारत में भी होते थे, पर वे आधुनिक चुनाव जैसे नहीं थे. बादशाह और
धर्मगुरु यानी पोप के चुनाव होते थे. वैदिक युग में भारत में गण (यानी जनजाति) के
प्रमुख के रूप में राजा के चुनाव का वर्णन मिलता है. पाल राजा गोपाल (750-770 के
बीच शासन) का चुनाव सामंतों ने किया था. शब्द-व्युत्पत्ति पर लिखने वाले अजित
वडनेरकर के अनुसार हिंदी में निर्वाचन की जगह चुनाव शब्द का इस्तेमाल ज्यादा होता है.
चुनाव शब्द बना है चि धातु से जिससे चिनोति, चयति, चय जैसे शब्द बनते हैं, जिनमें उठाना, चुनना, बीनना, ढेर लगाना जैसे भाव
हैं. निश्चय, निश्चित जैसे
शब्द भी इसी कड़ी के हैं जो निस् उपसर्ग के प्रयोग से बने हैं जिनमें तय करना, संकल्प करना, निर्धारण करना शामिल
है. संस्कृत में निर्वचन शब्द का मतलब है व्याख्या, व्युत्पत्ति या अभिप्राय लगाना. गूढ़ वचनों
में छिपे संदेश को चुनना. स्पष्ट है कि निर्वचन में चुनने का भाव ही प्रमुख है.
जनमत-संग्रह और चुनाव में अंतर?
दोनों प्रक्रियाएं जनता
की राय से जुड़ी हैं, पर दोनों के उद्देश्यों में बुनियादी अंतर है. सामान्यतः
चुनाव एक समयबद्ध सांविधानिक-प्रक्रिया है, जबकि जनमत-संग्रह ‘प्रश्न-विशेष’ या विषय पर केन्द्रित
है. जैसे कि सन 2015 में ब्रिटेन की जनता ने यूरोपियन यूनियन से हटने का फैसला
जनमत-संग्रह के माध्यम से किया. शुरू में सांविधानिक-व्यवस्थाओं को स्वीकार करने
के लिए व्यापक स्तर पर जनमत-संग्रह की व्यवस्था ने भी जन्म लिया. ऑस्ट्रेलिया और
स्विट्जरलैंड में अब तक दर्जनों जनमत-संग्रह हो चुके हैं. जनमत-संग्रह के लिए
अंग्रेजी में रेफरेंडम (Referendum) शब्द का इस्तेमाल होता है. कई बार इसके लिए प्लेबिसाइट
(Plebiscite)
शब्द का इस्तेमाल भी
होता है. कई जगह इन दोनों में अंतर किया जाता है. मसलन ऑस्ट्रेलिया में संविधान
में बदलाव के लिए होने वाले जनमत-संग्रह को रेफरेंडम कहते हैं, और जो जनमत-संग्रह
संविधान को प्रभावित नहीं करता, उसे प्लेबिसाइट. आयरलैंड में संविधान को अंगीकार
करने के लिए जो पहला जनमत-संग्रह हुआ, उसे रेफरेंडम कहा गया. फिर संविधान में
बदलाव के लिए जो हुआ, उसे प्लेबिसाइट.
मताधिकार क्या है?
वोट देने का अधिकार भी
सबको एक साथ नहीं मिला. नागरिकों के बीच श्वेत-अश्वेत, स्त्री-पुरुष, आयु और
सम्पत्ति के आधार पर भेद को खत्म होने में भी लम्बा समय लगा. आधुनिक चुनाव-पद्धतियों
में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को मान्यता दी जाती है, पर इस अधिकार को बीसवीं सदी
में ही मान्यता मिल पाई. ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों को सन 1962 में मताधिकार
मिला. महिलाओं को मताधिकार देने वाला पहला देश न्यूजीलैंड था, जहाँ 1893 में महिलाओं को
वोट का अधिकार मिला. यूरोप में स्विट्जरलैंड आखिरी देश था, जहाँ 1971 में
स्त्रियों को वोट देने का अधिकार मिला.
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