Thursday, March 14, 2019

यूनीवर्सल बेसिक इनकम क्या है?


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इसका मतलब है नागरिकों को राज्य की ओर से एक न्यूनतम आय उपलब्ध कराना. सामाजिक कल्याण की यह एक अवधारणा है, जिसपर चार सौ साल से ज्यादा समय से दुनिया विचार कर रही है. सोलहवीं सदी में अंग्रेज न्याय-शास्त्री सर टॉमस मोर ने अपनी किताब यूटोपिया में आदर्श राज्य की परिकल्पना की थी, जिसमें हरेक व्यक्ति को न्यूनतम आय की गारंटी हो. अठारहवीं सदी में अंग्रेज विचारक टॉमस स्पेंस और अमेरिकी चिंतक टॉमस पेन ने ऐसी व्यवस्था का समर्थन किया था. बीसवीं सदी में ब्रिटिश विचारक बरट्रेंड रसेल ने इसका समर्थन किया. सन 1946 में यूनाइटेड किंगडम में बच्चों के नाम पर पारिवारिक एलाउंस देने की व्यवस्था शुरू हुई, जिसे सत्तर के दशक में चाइल्ड बेनिफिट का नाम दिया गया. साठ और सत्तर के दशक में अमेरिका और कनाडा में निगेटिव इनकम टैक्सेशन की व्यवस्था शुरू हुई, जिसमें निर्धारित स्तर से कम आय वाले लोगों को राज्य की ओर से धनराशि देने की व्यवस्था की गई. ब्राजील में सन 2008 से बोल्जा फैमीलिया नाम से एक स्कीम चल रही है.



क्या यह व्यवस्था सफल है?

अक्तूबर 2013 में स्विट्जरलैंड के नागरिकों के बीच एक जनमत संग्रह कराया गया कि क्या हमें अपने देश में ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए. इसपर 76.9 प्रतिशत नागरिकों की राय थी कि इसकी जरूरत नहीं है. इससे जुड़े कई सवाल हैं. मसलन लोगों को बैठे-ठाले पैसा मिलेगा तो वे काम नहीं करेंगे, जिससे राज्य की आय खत्म हो जाएगी. फिर भी दुनिया से गरीबी खत्म करने और एक खुशहाल दुनिया कायम करने की धारणा को पुष्ट करने के लिए इस विचार के पक्ष में आमराय बनाई जा रही है. ऐसे अनेक संगठन हैं, जो इसपर शोध कर रहे हैं. बेसिक इनकम अर्थ नेटवर्क के नाम से एक वैश्विक संस्था इसपर काम कर रही है. जिस तरह समाजवाद की अवधारणा है उसी तरह एक विचार यह भी है कि पूँजीवाद की चरम स्थिति में प्रत्येक नागरिक को एक न्यूनतम आय उपलब्ध होगी.



भारत में इसका संदर्भ क्या है?

खबर है कि भारत सरकार यूनीवर्सल बेसिक इनकम जैसा कोई कार्यक्रम घोषित कर सकती है. सिक्किम ने घोषणा की है कि वह देश का पहला राज्य होगा, जो अपने नागरिकों को न्यूनतम आय उपलब्ध कराएगा. यह कार्यक्रम 2022 से लागू करने की योजना है. इसके पहले भारत में सन 2017-18 का बजट पेश करने के पहले रखी गई 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में एक अध्याय इस विषय पर था. इसमें सरकार को सुझाव दिया गया था कि युनीवर्सल बेसिक इनकम स्कीम लागू की जानी चाहिए. यदि यह सभी नागरिकों के लिए सम्भव न हो तो गरीबी की रेखा के नीचे के नागरिकों के लिए शुरू की जा सकती है. पिछले कुछ साल से सरकार सब्सिडी की रकम को व्यक्ति के खाते में डालने का प्रयास कर रही है. क्यों न उसे निश्चित आय की शक्ल दी जाए? ‘आधार’ और ‘जन-धन’ योजना इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं. इसमें मनरेगा को भी जोड़ा जा सकता है.





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