आप और अन्य सभी लोग अक्सर दूसरों को अच्छी तरह से समझने की बात करते हैं। ऐसा संभव होता है, बॉडी लैंग्वेज के माध्यम से। दरअसल बॉडी लैंग्वेज अपने आप में एक समूची भाषा है, जो आपके व्यक्तित्व से लेकर आपके मन मे क्या चल रहा है, यह सब बता सकती है। बॉडी लैंग्वेज या कहें आपके हाव-भाव, एक तरह की शारीरिक भाषा है, जिसमें शब्द भले न हों, लेकिन यह बहुत कुछ कहती है। यह आपके व्यक्तित्व को दर्शाती है।
हर हाव-भाव का एक अलग अर्थ होता है। यह आपके दिल-दिमाग में क्या चल रहा है, बता देती है। मसलन, किसी वक्त आपके अंदर गुस्सा, उदासी, मनोरंजन, खुशी जैसे भावों यह बॉडी लैंग्वेज आसानी से बता सकती है। सबसे महत्वपूर्ण है चेहरे का अध्ययन। चेहरे पर आए भाव नाराजगी, खुशी, जलन, चिंता और चंचलता को सामने ला देते हैं। कुछ पसंद नहीं आ रहा हो तो नाक सिकोड़ते हैं, मुंह फुला लेते हैं।
आँखों को बॉडी लैंग्वेज समझने का सबसे अहम हिस्सा कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। अगर आप संतुलित व सीधी अवस्था में हैं, तो यह आपके आत्मविश्वास को दर्शाती है। इसी प्रकार आपके बैठने की अवस्था भी बॉडी लैंग्वेज का अनिवार्य हिस्सा है। बैठने के दौरान अगर आप आगे की ओर झुक कर बैठते हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप दोस्ताना हैं। अगर आप सिर उठाते समय मुस्कराते हैं, तो यह आपके चंचल मन होने की निशानी है। या फिर आप मजाकिया स्वभाव के भी हो सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार इंसान चेहरे पर 2,50,000 हाव-भाव उत्पन्न कर सकता है। झूठ बोलने वाला इंसान नजरें मिलाकर बात नहीं कर सकता।
ट्रैफिक लाइट्स सबसे पहले कहाँ लगीं?
ट्रैफिक सिग्नल की शुरूआत रेलवे से हुई है। रेलगाड़ियों को एक ही ट्रैक पर चलाने के लिए बहुत ज़रूरी था कि उनके लिए सिग्नलिंग की व्यवस्था की जाए। 10 दिसम्बर 1868 को लंदन में ब्रिटिश संसद भवन के सामने रेलवे इंजीनियर जेपी नाइट ने ट्रैफिक लाइट लगाई। पर यह व्यवस्था चली नहीं। सड़कों पर व्यवस्थित रूप से ट्रैफिक सिग्नल सन 1912 में अमेरिका सॉल्ट लेक सिटी यूटा में शुरू किए गए। सड़कों पर बढ़ते यातायात के साथ यह व्यवस्था दूसरे शहरों में भी शुरू होती गई।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति कितनी पुरानी है?
आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह अथर्ववेद का उपवेद है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संचार की प्राचीनतम् पुस्तक ऋग्वेद है । विभिन्न विद्वानों ने इसका रचना काल ईसा के 3000 से भी ज्यादा साल पहले का माना है। इस संहिता में भी आयुर्वेद के अति महत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं। इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है।
‘आयुर्वेद’ का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञान’-और यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है। आयु+वेद अर्थात आयुर्वेद। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनी कुमार माने जाते हैं जिन्होंने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैं— अश्विनी कुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पाराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक।
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