Thursday, April 27, 2017

भारत में पिनकोड की शुरुआत कब से हुई?

पिनकोड माने पोस्टल इंडेक्स नम्बर. भारत में यह 15 अगस्त 1972 में लागू किया गया. इसके अंतर्गत देश को आठ भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है. सेना डाकघर और फील्ड डाकघर नवाँ क्षेत्र है. पिनकोड की पहली संख्या भौगोलिक क्षेत्र को और पहली दो संख्याएं राज्य को, उसके बाद शहर या शहरी इलाके को, मुहल्लों, कॉलोनियों वगैरह को व्यक्त करतीं हैं. प्राय: बड़े राज्यों के नाम आबंटित पहली दो संख्याएं ही ज्यादा होतीं हैं. बिहार-झारखंड की पहली दो संख्याएं 80 से 85 हैं. इसी तरह उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के पिनकोड नम्बर 20 से 28 हैं.

आलू की खेती की शुरुआत कहां से हुई?

वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता लगा है कि सबसे पहले लैटिन अमेरिकी देश पेरू के दक्षिणी हिस्से में सबसे पहले आलू पैदा हुआ. यह बात करीब दस-ग्यारह हजार साल पहले की है. यूरोप से स्पेन के लोगों ने जब इस इलाके पर विजय हासिल की तो वे अपने साथ यूरोप इसे लाए. भारत में भी आलू यूरोप से आया है.

मोबाइल फोन के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द एसएआर (SAR) लेबल क्या है?


मोबाइल टेलीफोन सेवा के कारण मोबाइल टावरों और हैंडसेटों में भी इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक रेडिएशन होता है. इस रेडिएशन को शरीर कितना जज्ब कर सकता है इसे लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने कुछ मानक बनाए हैं। इन्हें स्पेसिफिक एब्जॉर्प्शन रेट (एसएआर) कहते हैं. अलग-अलग देशों में इसकी अलग-अलग सीमा है. इन फोनों की बिक्री राष्ट्रीय मानकों की सीमा के भीतर ही सम्भव है.

माया सभ्यता किस देश से संबंधित है?

लैटिन अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थित थी. इसका कार्यकाल ईसा के 2000 साल पहले से लेकर सोलहवीं सदी तक का था. सत्रहवीं सदी में स्पेन ने इस इलाके में अपने उपनिवेश स्थापित किए. यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी. आज की तारीख में भी मध्य अमेरिका के उष्णकटिबंधीय जंगलो में मानव जीवन संभव नहीं है, लेकिन मनुष्य ने इन जंगलो में एक ऐसी सभ्यता की रचना की थी, जिसे देखकर आश्चर्य होता है. माया सभ्यता के शहर, उनकी इमारतें और पिरामिड देखकर आश्चर्य होता है कि उन्हें किस तरह बनाया गया होगा.

कागज़ की खोज किसने की?

कागज़ चीन की देन है. इसके आविष्कार का श्रेय वहाँ के छाई-लुन नामक व्यक्ति को दिया जाता है. वह प्राचीन चीन के पूर्वी हान वंश (20-220 ई.) के दरबार में अधिकारी था. छाई-लुन ने पेड़ों की छाल, सन के चिथड़ों और मछली पकड़ने के जालों से काग़ज़ बनाने के तरीक़े की 105 ई. में जानकारी दी थी.

वास्तव में छाई-लुन से भी बहुत पहले चीन में पटसन के रेशे से कागज बनाया जाने लगा था. कच्चे माल के अभाव के कारण कागज बहुत महँगा था. छाई-लुन ने पुरानी तकनीक को सुधारकर आसानी से मिल सकने वाले पेड़ के छिलके,चीथड़े,जाल के टुकड़े और पटसन के छोटे रेशों से कागज बनाने का प्रयोग शुरू किया. अलबत्ता रेशम, बाँस और लकड़ी की पट्टियों जैसी परम्परागत लेखन-सामग्री के स्थान पर वहाँ काग़ज़ का व्यापक इस्तेमाल ईसा की चौथी सदी से ही सम्भव हो सका.

दूसरी सदी में काग़ज़ कोरिया में पहुँचा और तीसरी सदी में जापान. भारत में काग़ज़ का प्रवेश सम्भवतः ईसा की सातवीं सदी में हुआ. चीनी बौद्ध भिक्षु ई-चिंग ने 671-694 ई. में भारत की यात्रा की. उसके चीनी संस्कृत कोश में जानकारी दी गई है कि काग़ज़ के लिए चीनी शब्द त्वे के लिए संस्कृत में काकलि शब्द चलता था. कुछ विद्वानों ने काकलि शब्द को काग़द या काग़ज़ शब्द से जोड़ा है. मूलतः काग़ज़ अरबी शब्द है. इसी से फ़ारसी में ‘काग़द’ शब्द बना.

इंदिरा गांधी को प्रियदर्शिनी क्यों कहा जाता है?

इंदिरा गांधी का पूरा नाम था इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू. कहते हैं गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उन्हें प्रियदर्शिनी नाम दिया था. फीरोज़ गांधी से विवाह के कारण उनके नाम के साथ गांधी शब्द जुड़ गया. प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

5 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हास्य दिवस - अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व हास्य दिवस - अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. बहुत अच्छी जानकारी ..

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  4. बहुत ही अच्छा सूचनाप्रदायक लेख लिखा है आपने मुझे काफी समय से इस बारे में जानने की जिज्ञासा थी इससे पहले कि मै इसे कहीं और खोजता आपकी वेबसाइट के माध्यम से मुझे इसका ज्ञान आसानी से हो गया इस जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बुद्ध पूर्णिमा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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