Sunday, February 9, 2025

यूनिकोड फॉन्ट क्या है?

जब धातु से ढाले गए अक्षरों या फॉन्ट के माध्यम से छपाई होती थी, तब छापाखाने में हरेक भाषा के अलग-अलग केस होते थे। अलग-अलग पॉइंट के, अलग-अलग टाइप फेस को रखना आसान काम नहीं था। कंप्यूटर के आगमन से यह काम कुछ आसान हो गया, पर इंटरनेट के आगमन के बाद गैर-अंग्रेजी, खासतौर से भारतीय भाषाओं के सामने समस्या आई। उन्हें पढ़ने के लिए फॉन्ट को डाउनलोड करने की जरूरत होती थी। यूनिकोड वैश्विक-मानक सॉफ़्टवेयर है, जिसे अमेरिका के यूनिकोड कंसोर्शियम ने वर्णों की एक व्यापक श्रेणी का प्रतिनिधित्व करने के लिए डिज़ाइन किया है। यह सभी भाषाओं के टेक्स्ट को एक ही तरीके से कोडित और प्रदर्शित करने का काम करता है। इसका इस्तेमाल सभी प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम, ब्राउज़र, सर्च इंजन, लैपटॉप, स्मार्टफ़ोन, और पूरे इंटरनेट में होता है। यह फ़ॉन्ट, ग्लिफ़ (यानी लिपि और दूसरे चिह्नों) को यूनिकोड मानक में परिभाषित कोड बिंदुओं पर मैप करता है। इसमें हर अक्षर के लिए एक खास संख्या होती है, जिसे यूनिकोड वर्ण कोड कहते हैं। इंटरनेट का विकास और विस्तार निजी क्षेत्र की कंपनियों ने किया है। इस लिहाज से इसकी उपलब्धि, महत्वपूर्ण और विश्वव्यापी है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 8 फरवरी, 2025 को प्रकाशित



Tuesday, February 4, 2025

खेल प्रतियोगिताओं के मेडल

खेल की दुनिया का सबसे बड़ा समारोह होता है ओलंपिक। इसकी प्रेरणा यूनान के पुराने खेल समारोहों से ली गई है, जो ईसा से आठ सदी पहले से लेकर ईसा की चौथी सदी तक ओलंपिया में होते रहे। यानी तकरीबन बारह सौ साल तक ये खेल यूनान में हुए। पुराने यूनान में सिर्फ ओलंपिक ही नहीं, चार खेल समारोह होते थे। इन खेलों में विजेता को पदक नहीं दिए जाते थे, बल्कि उनके माथे पर जैतून के उस पेड़ की पत्तियों को बाँधा जाता था, जो ओलंपिया में लगा था। जब 1896 में आधुनिक ओलंपिक खेल शुरू हुए तो जैतून की पत्तियों की जगह मेडल ने ली। 1896 के पहले और सन 1900 के दूसरे ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल नहीं दिए गए। उनमें चाँदी और ताँबे के मेडल क्रमशः विजेता और उपविजेता को दिए गए। 1904 में अमेरिका के मिज़ूरी में तीन मेडलों का चलन शुरू हुआ। ओलंपिक के गोल्ड मेडल का आकार, डिजाइन और वज़न अलग-अलग ओलंपिक खेलों में बदलता रहता है। पदकों के अलावा खेलों में टीमों को ट्रॉफी और शील्ड भी दी जाती हैं। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 1 फरवरी, 2025 को प्रकाशित



Tuesday, January 28, 2025

लड़ाकू विमानों की पीढ़ियाँ

जेट लड़ाकू विमानों की पाँचवीं या छठी पीढ़ियाँ विकास में प्रमुख प्रौद्योगिकी छलाँगों को व्यक्त करती हैं। लड़ाकू विमानों के लिए जेनरेशन या पीढ़ी शब्द पहली बार 1990 के दशक में इस्तेमाल में आया। पहला जेट लड़ाकू विमान, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में विकसित हुआ था। इसकी मुख्य विशेषता जेट  इंजन के रूप में थी। बाकी मामलों में वह प्रोपेपलर विमानों जैसा ही था। उसमें कोई एवियॉनिक्स-रेडार नहीं था। दूसरी पीढ़ी के विमानों में स्वैप्ट विंग्स, ट्रांससोनिक स्पीड, शुरूआती गन टार्गेटिंग सिस्टम, पहली हीटसीकिंग मिसाइलें थीं। तीसरी पीढ़ी में अधिक उन्नत रेडार प्रणालियाँ, इंफ्रारेड सर्च एंड ट्रैक, रेडार गाइडेड मिसाइलें, सीमित बियोंड विजुअल रेंज मिसाइलें इस्तेमाल में आने लगीं। मैक 2 गति के लिए आफ्टर बर्निंग इंजन का इस्तेमाल हुआ। चौथी पीढ़ी में बेहतर रेडार प्रणाली, लुक डाउन शूट डाउन और कंप्यूटर की सहायता से उड़ान, फ्लाई बाई वायर आदि। चौथी पीढ़ी के बाद 4.5 पीढ़ी के विमानों में एईएसए रेडार, नेटवर्किंग आदि शामिल हुए। पाँचवीं पीढ़ी में सबसे बड़ा तत्व स्टैल्थ यानी लोपन का जुड़ा। विमानों के बीच नेटवर्किंग शुरू हुई। अब छठी पीढ़ी की बातें हैं, पर उसकी विभाजक रेखा अभी स्पष्ट नहीं है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 25 जनवरी 2025 को प्रकाशित



Monday, January 20, 2025

ग्रैंड मास्टर कौन होते हैं?

ग्रैंड मास्टर (जीएम) विश्व शतरंज संगठन फिडे (फ्रेंच फेडरेशन इंटरनेशनेल द एचे) द्वारा प्रदत्त सर्वोच्च उपाधि है। यह उपाधि जीवन भर के लिए होती है।  जीएम बनने की योग्यताएँ बदलती रही हैं। इस समय आधार है 2500+ फिडे क्लासिकल (या मानक) रेटिंग। मानदंड के कई नियम हैं। व्यक्ति को नौ-राउंड वाले फिडे टूर्नामेंट में प्रदर्शन रेटिंग की जरूरत होती है। ग्रैंड मास्टर के अलावा सुपर-ग्रैंडमास्टर शब्द भी प्रचलन में है, पर यह अनौपचारिक है। इसका तात्पर्य 2700+ रेटिंग वाले खिलाड़ी से है। 1950 में दुनिया के 27 खिलाड़ियों को पहला जीएम खिताब दिया गया था। ग्रैंड मास्टर्स में बड़ी संख्या पुरुषों की है।  2024 तक कुल 2000 ग्रैंड मास्टर में से 42 महिलाओं को यह खिताब मिला। महिला ग्रैंडमास्टर खिताब भी होता है, जिसके मापदंड कम कठोर हैं। भारत में 84 ग्रैंड मास्टर हैं, जिनमें तीन महिलाएँ हैं। इसके अलावा 136 इंटरनेशनल मास्टर हैं, जिनमें नौ महिलाएँ हैं। 18 महिला ग्रैंड मास्टर और 43 महिला अंतर्राष्ट्रीय मास्टर भे हैं। मैनुअल आरोन पहले भारतीय थे, जिन्हें 1961 में इंटरनेशनल मास्टर खिताब मिला। विश्वनाथन आनंद 1988 में पहले भारतीय ग्रैंडमास्टर बने।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 18 जनवरी, 2025 को प्रकाशित



Saturday, January 11, 2025

फुलस्टॉप या हिंदी का पूर्ण विराम?

हिंदी में हम जिन विराम चिह्नों का प्रयोग करते हैं, उनमें अधिकतर यूरोप से आए हैं। संस्कृत से हमें केवल खड़ी पाई के रूप में विराम चिह्न मिला है। अल्प विराम, कोलन, सेमी कोलन, डैश, कोष्ठक और उद्धरण चिह्न इनवर्टेड कॉमा विदेशी हैं। पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई का इस्तेमाल पहले से होता रहा है और यह सबसे ज्यादा प्रचलित है। कुछ लोग रोमन ‘डॉट’ से भी पूर्ण विराम बनाते हैं। देवनागरी की अपनी अंक-प्रणाली भी है, पर अब ज्यादातर रोमन अंकों का इस्तेमाल होने लगा है। इसकी वजह है, हमारे संविधान का अनुच्छेद 343 जिसके अनुसार, ‘संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। शासकीय प्रयोजनों में भारतीय अंकों के अंतरराष्ट्रीय रूप का इस्तेमाल होगा।’ निजी तौर पर अंकों और विराम चिह्नों का प्रयोग व्यक्ति पर निर्भर करता है। हालांकि फांट निर्माता रोमन अंक ‘1’ और विराम चिह्न ‘।’ के रूपांकन में अंतर रखते हैं, फिर भी कई बार भ्रम हो सकता है। वाक्य 101 पर खत्म हो तो 101 को ‘101।’ यानी एक हजार ग्यारह भी पढ़ा जा सकता है। इसमें सही या गलत का कोई मतलब नहीं। दोनों रूप चलते हैं।

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 11 जनवरी, 2025 को प्रकाशित



Saturday, January 4, 2025

राज्य-विहीन लोग कौन हैं?

सरल शब्दों में राज्य-विहीन व्यक्ति (स्टेटलैस पीपुल) वह है, जिसके पास किसी भी देश की नागरिकता नहीं होती। कई बार भौगोलिक सीमाओं में बदलाव के बाद भी ऐसा होता है। मसलन पाकिस्तान में लाखों की संख्या में ऐसे बांग्लादेशी हैं, जिन्हें नागरिक नहीं माना जाता। किसी देश का नागरिक बनने की कुछ बुनियादी शर्तें हैं। एक, भूमि-पुत्र, यानी जहाँ व्यक्ति का जन्म हो। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस सिद्धांत को मानते हैं। दूसरे वंशज होना। माता-पिता की नागरिकता को ग्रहण करने वाले। दुनिया के ज्यादातर देश इस सिद्धांत को मानते हैं। व्यक्ति के पास दोनों के प्रमाण नहीं हों, तो वह राज्य विहीन हो जाता है। लंबे अरसे तक बड़ी संख्या में यहूदी राज्य-विहीन रहे। जब लोग उन देशों से बाहर निकलते हैं जहाँ वे पैदा हुए थे, तो राष्ट्रीयता कानूनों के टकराव से राज्य-विहीनता का जोखिम बढ़ता है। कई जगह देश केवल जन्म के आधार पर राष्ट्रीयता की अनुमति नहीं देते, या मूल देश माता-पिता को विदेश में जन्मे बच्चों को राष्ट्रीयता हस्तांतरित करने की अनुमति नहीं देते हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 2024 तक राज्य-विहीनता समाप्त करने का लक्ष्य रखा है, पर यह समस्या बनी हुई है। 

राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में 4 जनवरी, 2025 को प्रकाशित


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