फेसबुक के स्वामित्व वाले वॉट्सएप ने गत 29 अक्तूबर को अमेरिका में कैलिफोर्निया की संघीय अदालत में इसरायली फर्म एनएसओ के खिलाफ मुकदमा दायर किया है कि उसने
वॉट्सएप का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका और कुछ अन्य देशों में करीब 1400 लोगों के
मोबाइल फोनों और उपकरणों पर मैलवेयर भेजकर उनकी जासूसी की. इस मैलवेयर का नाम
पेगासस है. इसमें टार्गेट यूजर के पास एक लिंक भेजा जाता है. जैसे ही
यूजर लिंक को क्लिक करता है, उसके फोन पर प्रोग्राम इंस्टॉल हो जाता है. बताया
जाता है कि वायरस के नवीनतम संस्करण में यूजर के क्लिक की जरूरत भी नहीं होती. पेगासस
इंस्टॉल होने के बाद यूजर की जानकारियाँ इसे भेजने वाले को मिलने लगती हैं. फोन के
माइक्रोफोन और कैमरा का इस्तेमाल भी होने लगता है. एनएसओ की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि
हमारा एकमात्र उद्देश्य लाइसेंस प्राप्त सरकारी ख़ुफ़िया और क़ानून लागू करने वाली
एजेंसियों को आतंकवाद और गंभीर अपराध से लड़ने में मदद करने के लिए टेक्नोलॉजी
देना है. हमारी तकनीक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने
के लिए डिज़ाइन नहीं की गई है और न इसकी इजाज़त है.
इसका पता कैसे लगा?
पेगासस के बारे में सबसे पहले 2016 में खबरें आई थीं. तब
पता लगा था कि यूएई के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर के आईफोन 6 पर एक
एसएमएस भेजकर उसे हैक किया गया था. इसके बाद एपल ने अपने ऑपरेटिंग सिस्टम में एक ‘पैच’ डालकर इस दोष को दूर कर लिया था. सितंबर 2018 में टोरंटो
विवि के मंक स्कूल की सिटिजन लैब ने बताया कि यूजर की जानकारी के बगैर और उसकी
अनुमति के बगैर भी पेगासस को इंस्टॉल किया जा सकता है. इसे ‘जीरो डे एक्सप्लॉइट’ कहा गया. यानी कि जैसे ही किसी
ऑपरेटिंग सिस्टम में मामूली सा दोष नजर आए, उसी वक्त हमला. उस दोष को दूर करने का
समय भी फोन कंपनी को नहीं मिलता.
इसके शिकार कौन हैं?
स्पाईवेयर पेगासस
के शिकार हुए लोगों में वैश्विक स्तर पर राजनयिक, सरकारों के राजनीतिक विरोधी, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी शामिल हैं.
जिनकी जासूसी की गई है उनमें भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल
हैं. वॉट्सएप ने यह साफ़ नहीं किया है कि किसके कहने पर पत्रकारों और सामाजिक
कार्यकर्ताओं के फ़ोन हैक किए गए. कंपनी ने कहा कि मई में उसे एक ऐसे साइबर हमले
का पता चला जिसमें उसकी वीडियो कॉलिंग के ज़रिए एप का इस्तेमाल करने वाले लोगों को
मैलवेयर (वायरस) भेजा गया. अप्रेल से मई के महीने में
20 देशों के यूजर्स के फोन हैक किए गए. कंपनी ने भारत में इससे प्रभावित लोगों की संख्या नहीं बताई
है, लेकिन कहा है कि उनमें भारतीय यूजर्स भी हैं.
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