Thursday, December 5, 2019

जीडीपी और जीवीए क्या हैं?


ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल राष्ट्रीय उत्पाद का सूचकांक आर्थिक उत्पादन की जानकारी देता है. इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध विदेशी व्यापार (निर्यात और आयात का फर्क) शामिल होता है. पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक विकास की दर के आकलन के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) का इस्तेमाल होने लगा है. जीवीए से अर्थ-व्यवस्था के किसी खास अवधि में सकल आउटपुट और उससे होने वाली आय का पता लगता है. यानी इनपुट लागत और कच्चे माल का दाम निकालने के बाद कितने के सामान और सर्विसेज का उत्पादन हुआ. मोटे तौर पर जीडीपी में सब्सिडी और टैक्स निकालने के बाद जो आंकड़ा मिलता है, वह जीवीए होता है. जीवीए से उत्पादक यानी सप्लाई साइड से होने वाली आर्थिक गतिविधियों का पता चलता है जबकि जीडीपी में डिमांड या उपभोक्ता की नजर से तस्वीर नजर आती है. जरूरी नहीं कि दोनों ही आंकड़े एक से हों क्योंकि इन दोनों में नेट टैक्स के ट्रीटमेंट का फर्क होता है. उपादान लागत या स्थायी लागत (फैक्टर कॉस्ट) के आधार पर जीडीपी का मतलब होता है कि औद्योगिक गतिविधि में-वेतन, मुनाफे, किराए और पूँजी-यानी विभिन्न उपादान के मार्फत सकल प्राप्ति. इस लागत के अलावा उत्पादक अपने माल की बिक्री के पहले सम्पत्ति कर, स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क वगैरह भी देता है. जीडीपी में ये सब शामिल होते हैं, जीवीए में नहीं. जीवीए में वह लागत शामिल होती है, जो उत्पाद को बेचने के पहले लगी थी.
जीडीपी स्लोडाउन क्या है?
जीडीपी संवृद्धि दर में लगातार गिरावट को स्लोडाउन माना जा रहा है. गत 30 अगस्त को घोषित आंकड़ों के अनुसार इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रेल से जून के दौरान जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई थी. अब 29 नवम्बर को घोषित आँकड़ों के अनुसार दूसरी तिमाही (जुलाई, अगस्त, सितम्बर) में यह दर कम होकर 4.5 प्रतिशत हो गई है. दूसरी तिमाही में जीवीए की दर 4.3 फीसदी रही. इन दोनों तिमाहियों के आधार पर इस साल के पहले छह महीनों की औसत जीडीपी संवृद्धि दर 4.8 प्रतिशत है, जबकि पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 में पहले छह महीनों की औसत दर 7.5 फीसदी थी.
इसे लेकर चिंता क्यों?
पिछली 26 तिमाहियों में यह सबसे कम दर है. इससे पहले जनवरी-मार्च 2012-13 की तिमाही में जीडीपी संवृद्धि की दर 4.3 प्रतिशत थी. देश की जीडीपी की औसत सालाना दर को 5.00 फीसदी बनाए रखने के लिए अगली दो तिमाहियों यानी छह महीने में औसत विकास दर 5.2 प्रतिशत रखनी होगी. अर्थशास्त्रियों के नजरिए से इस धीमी संवृद्धि की बड़ी वजह है ग्रामीण क्षेत्र की घटती माँग. कृषि उत्पादों की कम कीमतों और खेती के लगातार अलाभकारी होते जाने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता सामग्री की माँग कम हुई है.



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