केंद्रीय
मंत्रिमंडल ने बुधवार 4 दिसम्बर को व्यक्तिगत
डेटा संरक्षण विधेयक-2019 को अपनी मंजूरी दे दी. यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा.
संभव है कि इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक पेश कर दिया गया हो. विधेयक के पास हो जाने के बाद
भारतीय विदेशी कंपनियों को व्यक्तियों के बारे में प्राप्त व्यक्तिगत जानकारियों
के इस्तेमाल को लेकर कुछ मर्यादाओं का पालन करना होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार घोषित किया था, पर अभी तक देश में व्यक्तिगत सूचनाओं के बारे में कोई नियम
नहीं है. यह विधेयक एक उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया
था. इस समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बीएन
श्रीकृष्ण ने की थी. विधेयक के महत्व को समझने के पहले सूचनाओं के महत्व को समझना
भी जरूरी होगा. जैसे-जैसे इंटरनेट का विस्तार हो रहा है और जीवन में उसकी भूमिका
बढ़ रही है, वैसे-वैसे जीवन में सुविधाओं और सहूलियतों के साथ-साथ कई तरह की
पेचीदगियाँ भी बढ़ रही हैं. हालांकि देशों ने इंटरनेट के इस्तेमाल को अपने-अपने
तरीके से नियंत्रित किया है, पर इसपर हम विश्व-नागरिक के रूप में भ्रमण करते हैं,
इसलिए इसकी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिधियों पर भी विचार करना होगा. साथ ही
हमें गूगल जैसे सर्च इंजनों की दुविधाओं को भी समझना होगा, जिनका कार्यक्षेत्र
पूरा विश्व है.
कानून में क्या
है?
यह कानून पास हो
जाने के बाद कम्पनियों को कुछ समय इसके लिए दिया जाएगा, ताकि वे अपनी व्यवस्थाएं
कर सकें. इस विधेयक में संवेदनशील डेटा, वित्तीय डेटा, स्वास्थ्य डेटा, आधिकारिक पहचान, लैंगिक रुझान, धार्मिक या जातीय डेटा, बायोमीट्रिक डेटा तथा अनुवांशिकी डेटा जैसी जानकारियों को
परिभाषित किया गया है. कंपनियों के लिए ये जरूरी नहीं होगा कि वे तमाम तरह के निजी
डेटा को भारत में ही स्टोर और प्रोसेस करें. संवेदनशील और क्रिटिकल निजी डेटा को
लेकर भौगोलिक बंदिशों का प्रावधान बिल में है. यानी किस प्रकार की सूचनाओं को देश
के बाहर भी प्रोसेस किया जा सकता है और किस प्रकार के बेहद महत्वपूर्ण डेटा को
केवल देश में ही प्रोसेस किया जा सकता है.
सोशल मीडिया पर
असर?
देश के
टेक्नोलॉजी उद्योग ने इस विधेयक पर खुशी भी जाहिर की है और अपने अंदेशे भी जाहिर
किए हैं. विधेयक में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर यूजर्स के स्वैच्छिक वैरीफिकेशन
का प्रस्ताव किया है. साथ ही कंपनियों से कहा है कि वे अपने गोपनीय डेटा की
जानकारी सरकार को दें. वैरीफिकेशन की जरूरत सोशल मीडिया को और ज्यादा जिम्मेदार
बनाने के लिए है. उससे जुड़ी कंपनियों से कहा जाएगा कि वे ऐसी व्यवस्थाएं बनाएं, जिसमें यूजर्स खुद ही वैरीफाई करें और जो खुद को वैरीफाई
नहीं करें, उनकी पहचान अलग कर दी जाए. इससे फेक एकाउंटों
का पहचान हो सकेगी.
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१५ -१२ -२०१९ ) को "जलने लगे अलाव "(चर्चा अंक-३५५०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी