भारतीय नागरिकता संशोधन विधेयक 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में
पेश किया गया था. इसके माध्यम से देश के नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन का
प्रस्ताव है. इसके अंतर्गत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में रह रहे
अल्पसंख्यक शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी. इनमें मुसलमान शामिल नहीं
होंगे. इस विधेयक में शरणार्थियों को भारत में निवास की अवधि 11 वर्ष से कम करके 6
वर्ष करने का प्रस्ताव भी है. भारतीय जनता पार्टी ने अपने 2014 के घोषणापत्र में
यह वायदा किया था. इस विधेयक का भारत के पूर्वोत्तर में विरोध किया जा रहा है,
क्योंकि आने वाले ज्यादातर शरणार्थी इन्हीं इलाकों में हैं, जो बांग्लादेश से आए
हैं और जिन्हें नागरिकता मिल जाने के बाद वे इस क्षेत्र के निवासी हो जाएंगे. इसका
विरोध इस आधार पर भी किया जा रहा है कि इसमें धर्म के धार पर शरणार्थियों में
विभेद किया गया है. जुलाई 2016 में पेश होने के बाद विधेयक को अगस्त में संसद की
संयुक्त समिति को सौंप दिया गया. समिति ने 7 जनवरी 2019 को इसपर अपनी रिपोर्ट दी,
जिसके बाद 8 जनवरी को विधेयक लोकसभा ने पास कर दिया. गत 3 जून 2019 को सोलहवीं
लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद यह विधेयक लैप्स हो गया. अब गत 20 नवंबर को
गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा है कि हम इस विधेयक को फिर से पेश करेंगे और
पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) भी लागू करेंगे.
एनआरसी क्या है?
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) भारतीय नागरिकों की सूची
है. भारत में असम अकेला राज्य है, जहाँ सन 1951 में इसे जनगणना के बाद तैयार किया गया था.
भारत में नागरिकता संघ सरकार की सूची में है, इसलिए एनआरसी से जुड़े सारे कार्य केंद्र सरकार
के अधीन होते हैं. यह कार्य देश के रजिस्ट्रार जनरल के अधीन है. सन 1951 में देश
के गृह मंत्रालय के निर्देश पर असम के सभी गाँवों, शहरों के निवासियों के नाम
और अन्य विवरण इसमें दर्ज किए गए थे. इस एनआरसी को अपडेट करने की जरूरत सन 1985
में हुए असम समझौते को लागू करने की प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसे लागू
करने के लिए सन 2005 में एक और समझौता हुआ था.
एनआरसी संवर्धन क्यों?
सन 2009 में एक एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स ने सुप्रीम कोर्ट
में याचिका डाली कि अवैध नागरिकों के नाम वोटर सूची से हटाए जाएं. यह प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में चली. पहले दो ड्राफ्ट जारी होने के बाद इस साल 31 अगस्त को अंतिम रूप से जारी की गई असम की एनआरसी से करीब 19 लाख लोग बाहर रह गए हैं. इसमें उन
व्यक्तियों के नाम हैं जो या तो 1951 की सूची में थे, या 24 मार्च
1971 की मध्य रात्रि के पहले असम के निवासी रहे हों. इसके बाहर जो लोग रह गए हैं,
उनके पास अभी विकल्प हैं. विदेशी
न्यायाधिकरण इसका फैसला करेगा. उसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती
है. अभी यह तय नहीं है कि जिनके नाम इसमें नहीं हैं उनका क्या
होगा.
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