गत 13 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि देश के
उच्चतम न्यायाधीश भी नागरिकों के सूचना पाने के अधिकार के अंतर्गत सार्वजनिक
प्राधिकार (पब्लिक अथॉरिटी) हैं. पाँच न्यायाधीशों के एक पीठ ने सन 2010 के दिल्ली
हाईकोर्ट के एक फैसले को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल तथा
केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) की तीन याचिकाओं को खारिज कर दिया. यह
निर्णय जानकारी पाने की तीन अर्जियों से जुड़ा है. तीनों अर्जियाँ आरटीआई
एक्टिविस्ट सुभाष अग्रवाल ने दी थीं, जिनकी परिणति इस फैसले के रूप में हुई. इनमें
से एक प्रार्थना पत्र में सुभाष अग्रवाल ने पूछा था कि सन 1997 में पारित एक
प्रस्ताव के बाद क्या सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपनी संपत्ति और जिम्मेदारियों
का विवरण चीफ जस्टिस को दे दिया है? उन्होंने उस
विवरण की माँग नहीं की थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट के सीपीआईओ ने जवाब दिया कि आरटीआई
एक्ट के अंतर्गत चीफ जस्टिस का कार्यालय सार्वजनिक प्राधिकार नहीं है. इसपर यह
मामला मुख्य सूचना अधिकारी (सीआईसी) के पास गया, जहाँ तत्कालीन सीआईसी वज़ाहत
हबीबुल्ला की अध्यक्षता में पूरी बेंच ने 6 जनवरी, 2009 को सूचना देने का निर्देश
दिया. सीआईसी के निर्देश के विरोध में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारी दिल्ली हाईकोर्ट
गए.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस रवीन्द्र भट्ट ने (जो बाद में
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने) 2 सितंबर, 2009 के आदेश में कहा कि चीफ जस्टिस का
कार्यालय आरटीआई के दायरे में आता है. यह मामले इसके बाद हाईकोर्ट की ज्यादा बड़ी
बेंच के पास गया, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अजित प्रकाश
शाह, जस्टिस विक्रमजीत सेन और जस्टिस एस मुरलीधर शामिल थे. इस बेंच ने 13 जनवरी,
2010 को कहा कि जस्टिस भट्ट का आदेश उचित है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के
पदाधिकारियों ने 2010 में ही मामला अपनी अदालत में उठाया. शुरू में यह मामला
खंडपीठ के सामने रखा गया, जिसने फैसला किया कि इसे संविधान पीठ के सामने रखा जाए.
इसके बाद क्या हुआ?
संविधान पीठ का गठन हुआ नहीं था कि सुभाष अग्रवाल ने एक और
आरटीआई प्रार्थना पत्र दिया. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दिया कि संविधान पीठ के
संदर्भ में आदेशों की प्रतीक्षा है. चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन, एसएच कपाडिया,
अल्तमस कबीर, पी सदाशिवन, आरएम लोढा, एचएल दत्तू, टीएस ठाकुर, जेएस खेहर और दीपक
मिश्रा के कार्यकाल में संविधान पीठ का गठन लंबित रहा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने
पिछले साल इस मामले में बेंच गठित की, जिसने इस साल 4 अप्रेल को इस मामले में अपना
आदेश रिजर्व कर दिया. अब यह गत 13 नवंबर को सुनाया गया. अदालत ने यह फैसला सुनाने
के साथ यह भी कहा कि आरटीआई को सर्विलांस का औजार न बनाया जाए और पारदर्शिता के
आग्रहों के साथ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखा जाए.
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