रीजनल
कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप का अंग्रेजी में संक्षिप्त नाम है ‘आरसीईपी’ सामान्य बोलचाल में इसे आरसेप कहा जा रहा है. मोटे तौर पर
यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच व्यापारिक सहयोग का प्रस्तावित समझौता
है. इस पर दस आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को हस्ताक्षर करने थे. ये सभी छह
देश आसियान के फ्री ट्रेड पार्टनर हैं. मुक्त व्यापार का अर्थ है सदस्य देशों के बीच
आयात-निर्यात टैक्स शून्य, या बहुत कम. गत 31 अक्तूबर से 3 नवंबर तक आरसीईपी का
तीसरा और आसियान का 35वाँ शिखर सम्मेलन थाईलैंड में हुआ. 4 नवंबर को भारत ने घोषणा
की कि हम इसमें शामिल नहीं होंगे. समझौते का उद्देश्य इन 16 देशों के बीच विश्व
में सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना है. भारत के हट जाने के बाद इनकी
संख्या 15 रह गई है. इस समझौते पर विमर्श की शुरुआत नवंबर 2012 में कम्बोडिया में
हुए आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी. सन 2017 में इन 16 देशों की जनसंख्या 3.4 अरब
और सकल घरेलू आय 49.4 ट्रिलियन डॉलर थी. इस प्रकार दुनिया की करीब आधी आबादी और 39
फीसदी अर्थव्यवस्था इसके भीतर आ जाती.
भारत क्यों नहीं?
प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक में कहा कि भारत अधिक से अधिक क्षेत्रीय एकीकरण, मुक्त व्यापार और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थक
है, पर जब मैं सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर इसे देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता. भारत में किसान और
व्यापारी संगठन इसका यह कहते हुए विरोध कर रहे थे कि किसान और छोटे व्यापारी तबाह
हो जाएंगे, क्योंकि बाहर का, खासतौर से चीन का सस्ता सामान देश में भर जाएगा. भारत
चाहता था कि उसे कुछ चीजों पर विशेष टैक्स लगाने का अधिकार हो. साथ ही
सेवा-क्षेत्र में कुछ सुविधाएं चाहता था. न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों
में भारतीयों को काम करने के अवसर भी.
अब क्या होगा?
भारत भविष्य में
भी इसमें शामिल हो सकता है. चीन ने कहा है कि हम भारत की चिंताएं दूर करने के
प्रयास करेंगे. देश के कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को यह अवसर छोड़ना नहीं
चाहिए, क्योंकि अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने का यह अच्छा अवसर है. हमें अपने
उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाना चाहिए, ताकि वैश्विक बाजार में हम चीन का मुकाबला
कर सकें. आने वाले समय में एक देश से आने वाले माल में सुधार करके उसे बाहर भेजा
जा सकता है. मसलन बाइक में चीन, जापान और भारत के पुर्जे लगाकर उसे अरब देशों में
बेचा जा सकता है. जैसे चीन से कपड़ा खरीदकर बांग्लादेश रेडीमेड कपड़ों को वैश्विक बाजार में बेचता है. इसे ‘ग्लोबल वैल्यू चेन’ (जीवीसी) कहा जाता है.
भविष्य में अलग-अलग देश कुछ खास चीजों में विशेषज्ञता हासिल करेंगे. इस जीवीसी में
भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है.
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