Thursday, December 27, 2018

कैटोविस सम्मेलन क्या है?



पोलैंड के कैटोविस में 2 से 15 दिसम्बर, 2018 तक वैश्विक जलवायु सम्मेलन हुआ, जिसमें सन 2015 में हुई पेरिस संधि को 2020 तक लागू करने के तौर-तरीकों पर विचार हुआ. यह संधि सन 2020 में क्योटो संधि का स्थान लेगी. इस सम्मेलन को कॉप-24 यानी 24वीं कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज टु द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के नाम से भी पहचाना जाता है. इस सम्मेलन में पेरिस समझौते को लागू करने के लिए 196 देशों ने मिलकर नियम-पुस्तिका तय की है. पेरिस समझौते के बाद अमेरिका ने इस संधि से हाथ खींच लिया था. जब संधि हो रही थी, जब अमेरिका में बराक ओबामा राष्ट्रपति थे, पर डोनाल्ड ट्रम्प के आने के बाद स्थितियाँ बदल गईं. पेरिस संधि के समय वैश्विक बिरादरी काफी उत्साहित थी. पर पिछले तीन वर्षों में अमीर देश अपनी प्रतिबद्धता से हटते हुए नजर आए.



असहमति किन बातों पर है?

ग़रीब देशों और अमीर देशों के कार्बन उत्सर्जन की सीमा को लेकर शुरू से ही विवाद था. एक सबसे बड़ी असहमति इंटर-गवर्नमेंटल पैनल की जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक रिपोर्ट को लेकर है. कुछ देशों के समूह, जिनमें सऊदी अरब, अमरीका, कुवैत और रूस ने आईपीसीसी की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया है. नवम्बर के महीने में जारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर 405 पीपीएम( पार्ट्स पर मिलियन) हो गया. पृथ्वी में ऐसी स्थिति पिछले तीस से पचास लाख साल में पहली बार आई है. अक्तूबर 2018 में इंटर-गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी विशेष रिपोर्ट में कहा है कि धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. आईपीसीसी ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर जो सीमा तय की है उस पर कई देशों के बीच मतभेद हैं. भारत ने 2030 तक 30-35 फ़ीसदी कम कार्बन उत्सर्जन करने की बात कही है.



क्या तय हुआ?

सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने 156 पेज का जो दस्तावेज तैयार किया है, उसमें यह बताया गया है कि देश किस प्रकार उत्सर्जन रोकने के प्रयासों को कैसे  मापेंगे, रिपोर्ट करेंगे और पुष्टि करेंगे. पेरिस संधि में देशों के लिए स्वैच्छिक अंशदान तय किया गया था, जिसे नेशनली डिटर्मिंड कंट्रीब्यूशन (एनडीसी) कहा गया. भारत के मामले में एनडीसी संशोधन 2030 में होना है. चूंकि सभी देशों के ग्रीनहाउस गैसों (जीएचसी) के बारे में अपने-अपने मानक और परिभाषाएं थीं, इसलिए परिणाम एक जैसे नहीं हो सकते थे. अब नियम-पुस्तिका के अनुसार हस्ताक्षर करने वाले देश मानकों पर दृढ़ रहेंगे. वित्तीय-व्यवस्था की कुछ विसंगतियों को दूर किया गया है. बावजूद इसके छोटे द्वीपों पर बसे देश परेशान हैं, क्योंकि अमीर देश ग्रीन क्लाइमेट फंड के लिए हर साल 100 अरब डॉलर की धनराशि केवल 2025 तक ही देने को तैयार हैं. पेरिस समझौते में जिस कार्बन मार्केट को बनाने की बात कही गई थी, उसके बारे में कोई रूपरेखा नहीं बनी है. इसपर फैसला कॉप-25 में होगा.  















Saturday, December 22, 2018

कश्मीर में शासन


हालांकि जम्मू-कश्मीर देश के दूसरे राज्यों की तरह एक राज्य है, पर हमारे संविधान ने इसे विशेष राज्य का दर्जा दिया है. इस वजह से यहाँ की प्रशासनिक व्यवस्था शेष राज्यों से अलग है. देश का यह अकेला राज्य है, जिसका अपना अलग संविधान भी है. संविधान के अनुच्छेद 370 के अनुसार देश की संसद और संघ शासन का जम्मू-कश्मीर पर सीमित क्षेत्राधिकार है. जो मामले संघ सरकार के क्षेत्राधिकार में नहीं हैं, वे राज्य की विधायिका के अधीन हैं. देश के शेष राज्यों की तुलना में जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा अंतर 30 मार्च, 1965 तक और था. जहाँ अन्य राज्यों में राज्यपाल का पद होता था, वहाँ जम्मू-कश्मीर में सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री के स्थान पर वजीर-ए-आज़म (प्रधानमंत्री) का पद होता था. जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार सदर-ए-रियासत का चुनाव राज्य की विधायिका के मार्फत जनता करती थी. सन 1965 में जम्मू-कश्मीर के संविधान में हुए छठे संशोधन के बाद सदर-ए-रियासत के पद को राज्यपाल का नाम दे दिया गया और उसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं.



राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन?

इस साल जून में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद जम्मू-कश्मीर में जब राज्यपाल शासन लागू किया गया, तब यह सवाल उठा था कि क्या यह अन्य राज्यों में लागू होने वाले राष्ट्रपति शासन से अलग है? वास्तव में यह अलग है. जहाँ अन्य राज्यों में राष्ट्रपति शासन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत लागू किया जाता है, वहीं जम्मू-कश्मीर के संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत राज्यपाल शासन लागू किया जाता है. यह राज्यपाल शासन छह महीने के लिए लागू होता है. इन छह महीनों के दौरान विधान सभा स्थगित रहती है या राज्यपाल चाहें तो भंग भी की जा सकती है. छह महीने के राज्यपाल शासन के बाद या तो नई विधानसभा चुनकर आ सकती है, अन्यथा वहाँ अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है.



दोनों में अंतर?

बुनियादी तौर पर कोई अंतर नहीं है. दोनों परिस्थितियों में राज्यपाल केन्द्र सरकार के निर्देश पर प्रशासन चलाते हैं. पर जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन फौरन नहीं लगता. पहले राज्यपाल शासन लगता है. यदि राज्यपाल इस दौरान विधानसभा भंग करते हैं, तो उसके छह महीने के भीतर चुनाव होने चाहिए. छह महीने के भीतर चुनाव नहीं होते हैं, तो कारण स्पष्ट करने होते हैं. राज्य में राज्यपाल शासन के छह महीने की अवधि 20 दिसम्बर को पूरी होने वाली है. तबतक वहाँ विधानसभा चुनाव नहीं हो पाएंगे, इसलिए राज्यपाल वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करेंगे. इस सिफारिश पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल विचार करेगा और इसके लिए संसद के दोनों सदनों की मंजूरी लेनी होगी. यह मंजूरी राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दो महीने के भीतर मिल जानी चाहिए. संसद से मंजूरी के बाद राष्ट्रपति शासन छह महीने तक लागू रह सकता है. इसकी अवधि फिर बढ़ाई जा सकती है. सन 1990 में लागू हुआ राष्ट्रपति शासन छह साल तक चला था. इस दौरान राज्य सूची के 61 विषयों पर कानून देश की संसद बना सकेगी. 




Wednesday, December 19, 2018

‘यलो जैकेट’ आंदोलन क्या है?


फ्रांस में इन दिनों पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आंदोलन चल रहा है, जो यलो जैकेट (ज़िले ज़ोन) या पीली कमीज आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ है. इसकी शुरूआत 17 नवम्बर को हुई थी, जिसमें तीन लाख से ज्यादा लोगों ने देश के अलग-अलग शहरों में जाम लगाए और रैलियाँ कीं. देखते ही देखते इस आंदोलन ने बगावत की शक्ल ले ली. आंदोलनकारियों ने यातायात रोका, पेट्रोल डिपो घेरे और पुलिस पर हमले किए. कुछ आंदोलनकारियों की मौत भी हुई. आंदोलन उग्र होता गया और 21 नवम्बर तक इस आंदोलन के कारण 585 नागरिकों के और 113 पुलिसकर्मियों के घायल होने की खबरें आईं. आंदोलन फ्रांस तक ही सीमित नहीं था, बल्कि हिंद महासागर में फ्रांस प्रशासित द्वीप रियूनियन में दंगे हुए. वहाँ तीन दिन के लिए स्कूल बंद कर दिए गए. सेना तैनात करनी पड़ी. आंदोलन के कारण सरकार ने दबाव में आकर टैक्स में वृद्धि वापस ले ली है. मध्य वर्ग का यह गुस्सा फ्रांस में ही नहीं है, यूरोप के दूसरे देशों में भी है. ऐसे ही आंदोलन इटली, बेल्जियम और हॉलैंड में भी शुरु हुए हैं.



यलो जैकेट नाम क्यों?

अंग्रेजी में बर्र या ततैया के लिए यलो जैकेट शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. इस आंदोलन से जुड़े लोगों का व्यवहार बर्र जैसा है. पर केवल इसी वजह से इस आंदोलन को यलो जैकेट नाम नहीं मिला. वस्तुतः सन 2008 से देश में मोटर-चालकों के लिए अपनी गाड़ी में पीले रंग के चमकदार जैकेट रखना अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि आपदा की स्थिति में दूर से पहचाना जा सके. आंदोलन में शामिल लोग पीली जैकेट पहनते हैं. अब यह जैकेट आंदोलन प्रतीक बन गया है. पचास के दशक से फ्रांस में मोटर वाहनों की खरीद को बढ़ावा दिया गया. डीजल इंजनों के निर्माण पर सब्सिडी दी गई. कम्पनियों को मोटर-वाहन खरीदने पर टैक्स में छूट दी गई. इस वजह से गाड़ियों की भरमार हो गई. इससे देश में मोटर-वाहन उद्योग को बढ़ावा मिला. समृद्धि भी बढ़ी.



आंदोलन क्यों?

आंदोलन के पीछे बुनियादी तौर पर अपनी व्यवस्था के प्रति रोष है. इनमें सबसे ज्यादा मध्यवर्ग के गोरे लोग हैं, जो मानते हैं कि व्यवस्था ने उन्हें भुला दिया है. उनका कहना है कि हम सबसे ज्यादा टैक्स भरते हैं, फिर भी हमसे ही सारी वसूली की जाती है. उन्हें पूँजीवादी व्यवस्था से भी शिकायत है. संयोग से पिछले कुछ वर्षों में पेट्रोलियम की कीमतें बढ़ीं और फ्रांस सरकार ने अपने खर्चे पूरे करने के लिए टैक्स बढ़ाए. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर सन 2014 से सरकार ने जीवाश्म-आधारित तेल की खपत कम करने के लिए भी पेट्रोलियम के उपभोग पर कार्बन टैक्स बढ़ा दिया. इतना ही नहीं सन 2019 में और नए टैक्स लगाने की योजना है. इन सब बातों का मिला-जुला प्रभाव यह हुआ कि नागरिकों के मन में नाराजगी बढ़ने लगी. यह महंगाई पिछले राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के समय में शुरू हो गई थी, पर नाराजगी पिछले महीने भड़की.





Thursday, December 6, 2018

ब्रेक्ज़िट क्या है?

ब्रेक्ज़िट शब्द अंग्रेजी वाक्यांश ब्रिटिश एक्ज़िट (यानी ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होना) का संक्षिप्त रूप है. यूरोपीय संघ (ईयू) यूरोप के 28 देशों का राजनीतिक और आर्थिक संघ है. यूरोपीय संघ के विकास की पृष्ठभूमि को अलग से समझना होगा. मोटे तौर पर इतना समझ लें कि सन 1993 की मास्ट्रिख्ट संधि के बाद इस संघ ने व्यावहारिक शक्ल ली. उसके पहले यूरोपीय समुदाय के रूप में एक व्यवस्था थी, जिसमें यूके 1973 में शामिल हुआ था. सत्तर के दशक में देश के वामपंथी दल यूरोपीय समुदाय से अलग होने की माँग भी करते रहे थे. इसके बाद नब्बे के दशक में कुछ दक्षिणपंथी दलों ने भी ऐसी माँग शुरू कर दी. हाल के वर्षों में युनाइटेड किंगडम में माँग की जा रही थी कि इस संघ से हमें अलग हो जाना चाहिए. यह माँग उठती रही और सन 2015 के चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी ने वादा किया कि इस सवाल पर जनमत संग्रह कराएंगे. इसके बाद प्रधानमंत्री डेविड केमरन ने इस माँग पर फैसला करने के लिए देश में 23 जून 2016 को जनमत संग्रह कराया, जिसमें 52 फीसदी लोगों ने अलग होने की माँग का समर्थन किया.
कैसे होगा यह अलगाव?
केमरन व्यक्तिगत रूप से संघ में बने रहने के पक्षधर थे. जनमत संग्रह का परिणाम आने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह टेरेसा में ने ली, जिन्होंने कुछ समय बाद मध्यावधि चुनाव करा लिए. चुनाव में उनकी पार्टी अल्पसंख्या में आ गई. अब उनकी सरकार डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी के समर्थन से चल रही है. जनमत संग्रह के बाद 29 मार्च, 2017 से यूके सरकार ने ईयू संधि के अनुच्छेद 50 के तहत संघ से अलग होने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इसके अंतर्गत युनाइटेड किंगडम 29 मार्च, 2019 को यूके के समय के अनुसार रात्रि में 11 बजे ईयू से अलग हो जाएगा. यदि दोनों पक्ष समय को और आगे बढ़ाने पर सहमत नहीं होते हैं, तो यह संघ से अलग होने के संदर्भ में विमर्श की अंतिम सीमा है.
अब विवाद क्या है?
सवाल है कि यह अलगाव बगैर किसी समझौते के होना चाहिए या अलगाव के संधिकाल के लिए कोई समझौता होना चाहिए. प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने जिस समझौते की रूपरेखा बनाई है, उसे लेकर उनके सहयोगियों के बीच भारी मतभेद हैं. यूरोपीय संघ के सदस्यों ने रविवार 25 नवम्बर को ब्रेक्जिट समझौते को मंजूरी दे दी. समझौते को ईयू के 27 नेताओं ने इस संक्षिप्त बैठक में स्वीकार कर लिया. युनाइटेड किंगडम की संसद में इस प्रस्ताव पर 4 दिसंबर से विचार-विमर्श शुरू होगा और 11 दिसंबर को मतदान होगा. लेबर, लिबरल-डेमोक्रेटिक, स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी), डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी (डीयूपी) और टेरेसा में की अपनी कंजर्वेटिव पार्टी के काफी सांसदों ने पहले से घोषणा कर दी है कि हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे. 


Friday, November 23, 2018

चाबहार बंदरगाह कहाँ है?

चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी में ईरान के दक्षिण पूर्व में स्थित है. यह ईरान का गहरे सागर का एकमात्र बंदरगाह है. इसमें दो बंदरगाह हैं. एक है शहीद कलंतारी और दूसरा शहीद बेहश्ती. दोनों में पाँच-पाँच बर्थ हैं. यह बंदरगाह भारत-ईरान और अफ़ग़ानिस्तान तीन देशों के समझौते के अधीन विकसित किया जा रहा है. यह एक दीर्घकालीन परियोजना है, जो बाद में इस इलाके को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के मार्फत मध्य एशिया के रास्ते यूरोप तक से जोड़ने का कार्य कर सकती है. इस बंदरगाह के विकास की परिकल्पना सन 1973 में ईरान के अंतिम शाह ने की थी. सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद इसका काम धीमा पड़ गया था. इसका पहला चरण सन 1983 में पूरा हुआ. इस बंदरगाह में ईरान की दिलचस्पी की एक वजह यह थी कि इराक़ के साथ युद्ध के कारण ईरान ने अपने समुद्री व्यापार को पूर्व की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया था. शहीद बेहश्ती बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत और ईरान के बीच समझौता 2003 में हुआ था.

अमेरिकी पाबंदियाँ

सन 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से अमेरिका और ईरान के रिश्ते बिगड़ते गए जिनके कारण अमेरिका ने ईरान पर कई बार पाबंदियाँ लगाईं. हाल में अमेरिका ने 5 नवंबर से ईरान पर फिर से बड़ी पाबंदियाँ लगाने का फैसला किया है. पर उसने चाबहार बंदरगाह का विकास करने के भारतीय कार्यक्रम को उन पाबंदियों से छूट दी है. मई 2016 में भारत और ईरान के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत भारत शहीद बेहश्ती बंदरगाह की एक बर्थ के पुनरुद्धार और 600 मीटर लंबे एक कंटेनर क्षेत्र का पुनर्निर्माण करेगा. भारत इस बंदरगाह के कंटेनर रेलवे ट्रेक का निर्माण भी कर रहा है और चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे लाइन भी तैयार कर रहा है. इसके बाद ज़ाहेदान से अफ़ग़ानिस्तान के ज़रंज तक रेलवे लाइन का विस्तार होगा. ईरान में भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तरी-दक्षिणी कॉरिडोर को बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है. यह परिवहन कॉरिडोर 7,200 किलोमीटर लंबा नेटवर्क होगा, जिसमें पोत, रेल और सड़क मार्ग से माल का परिवहन होगा. इस परियोजना पर 16 मई 2002 को भारत, रूस और ईरान के बीच समझौता हुआ था. यह नेटवर्क भारत, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया के रास्ते यूरोप को जोड़ेगा.

अफ़ग़ानिस्तान की भूमिका

अमेरिका मानता है कि युद्ध-प्रभावित अफ़ग़ानिस्तान के हितों की रक्षा के लिए चाबहार बंदरगाह का विकास करना जरूरी है. चूंकि अफ़ग़ानिस्तान के पास समुद्र तट नहीं है, इसलिए यह उसके व्यापार के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह साबित होगा. भारत के सीमा सड़क संगठन ने अफ़ग़ानिस्तान में जंरंज से डेलाराम तक 215 किलोमीटर लम्बे मार्ग का निर्माण पूरा कर लिया है, जो निमरोज़ प्रांत की पहली पक्की सड़क है. पिछले साल अक्तूबर में भारत ने चाबहार के रास्ते अफ़ग़ानिस्तान को गेहूँ की पहली खेप भेजकर इस व्यापार मार्ग की शुरुआत कर भी दी है.


Friday, November 2, 2018

मानव विकास सूचकांक

मानव विकास सूचकांक या ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों (दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक पहुँच तथा जीवन के एक सभ्य स्तर) द्वारा प्रगति का आकलन करने का एक वैश्विक मानक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) हर साल जारी करता है। इसमें कई तरह की सूचनाओं के आधार पर हरेक देश को अंक दिए जाते हैं। मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, स्त्रियों की स्थिति, आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर, संचार के साधन वगैरह। इसके आधार पर अलग-अलग देशों का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता है। यह सूचकांक अलग-अलग शहरों या अलग-अलग प्रदेशों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी तैयार किया जा सकता है। इस साल यह रिपोर्ट 14 सितम्बर, 2018 को जारी हुई। सन 1990 से यह रपट जारी हो रही है। इसे बनाने की पहल पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूबुल हक ने की थी। इसमें भारत के अमर्त्य सेन के अलावा पॉल स्ट्रीटेन, फ्रांसिस स्टीवर्ट, गुस्ताव रेनिस और कीथ ग्रिफिथ जैसे अर्थशास्त्री भी जुड़े रहे हैं।

‘घुटने टेको’ आंदोलन
अमेरिका में जातीय अन्याय के खिलाफ संघर्ष इन दिनों ‘टेक द नी’ या घुटने टेको आंदोलन की शक्ल में सामने आ रहा है। बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने तब कहा जा रहा था कि अमेरिका में नए युग की शुरुआत हो गई है। ओबामा के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अश्वेतों की शिकायतें बढ़ी हैं। उनके चुनाव में अश्वेतों ने उनके खिलाफ वोट दिया था। धीरे-धीरे यह चर्चा ठंडे बस्ते में दब भी गई थी लेकिन हाल में अमेरिकी फुटबॉलर कॉलिन कैपरनिक को प्रतीक बनाकर यह चर्चा फिर से शुरू हुई है। सोशल मीडिया के कारण यह आंदोलन बड़ी तेजी से फैल रहा है। अभी तक हाथ में मोमबत्तियाँ लेकर विरोध विरोध जताया जाता था। अब राष्ट्रीय गीत के दौरान एक घुटना जमीन पर टिकाकर विरोध जताने का नया तरीका सामने आया है। माना जाता है कि देश से बढ़कर कुछ नहीं, पर राष्ट्रगीत के दौरान ऐसा करने का मतलब है व्यक्ति हर उस चीज का विरोध कर रहा है जिसके कारण उसे अपने ही देश से नाराजगी है।

नाइके की पहल
हाल में खेल से जुड़ी चीजें, खासतौर से स्पोर्ट्स शूज़ बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी नाइके ने कॉलिन कैपरनिक को एक लम्बे विज्ञापन अभियान के लिए अनुबंधित किया है। कॉलिन 2011 से इस कम्पनी के साथ जुड़े हैं, पर इस नए अनुबंध के राजनीतिक निहितार्थ हैं। कम्पनी के इस अभियान को समर्थन मिला है, इसे देश-विरोधी गतिविधि माना जा रहा है। नाइके के उत्पादों को जलाया जा रहा है। कॉलिन ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ (बीएलएम) नामक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के समर्थक भी हैं, जो अमेरिकी-अफ्रीकी समुदाय के सवालों को उठाता है। सन 2013 से सोशल मीडिया पर ‘हैशटैग ब्लैक लाइव्स मैटर’ नाम से अभियान भी चल रहा है। 
http://epaper.patrika.com/1862427/Me-Next/Me-Next#dual/2/1

ग्रीन पटाखों का मतलब?

अदालत ने जिन ग्रीन और सेफ पटाखों की बात कही है उसका मतलब है कि उन्हें बनाने में ऐसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाएगा, जो कम खतरनाक होती है. ऐसे पटाखों की घोषणा इस साल जनवरी में विज्ञान और तकनीकी मंत्री हर्ष वर्धन ने की थी. ग्रीन पटाखों की इस अवधारणा को देश की वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं ने आगे बढ़ाया. इनमें कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर), सेंट्रल इलेक्ट्रो केमिकल इंस्टीट्यूट, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट और नेशनल केमिकल लैबोरेटरी शामिल हैं. सीएसआईआर के नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ राकेश कुमार इस परियोजना के कोऑर्डिनेटर हैं. उन्होंने बताया कि हमने तीन-चार रासायनिक सूत्र तैयार किए हैं, जिनमें 30 से 40 फीसदी ऐसी नुकसानदेह सामग्री कम की जा सकती है. इनसे पर्यावरण-मित्र अनार और बिजली क्रैकर बनाए जा सकते हैं.

ई-पटाखे कैसे काम करते हैं?

वैज्ञानिकों ने ऐसे बम बनाए हैं, जो आवाज करते हैं, पर माहौल में सल्फर डाईऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते. ये धुएं की जगह भाप या हवा छोड़ते हैं. पेट्रोलियम और विस्फोटकों की सुरक्षा से जुड़ा संगठन इनपर परीक्षण कर रहा है. एक अवधारणा ई-क्रैकर या इलेक्ट्रॉनिक पटाखों की भी है. इनमें हाई वोल्टेज माइक्रो जेनरेटर काम करते हैं, जो रह-रहकर तेज आवाज करते हैं. इनमें तार से जुड़े पटाखों की लड़ी होती है, जिसके साथ एलईडी लाइट भी होती है. धमाके के साथ चमक भी होती है. यह तकनीक महंगी है. भारतीय बाजारों में विदेशी ई-क्रैकर उपलब्ध हैं, पर उनकी कीमत काफी ज्यादा है. चीनी ई-पटाखे भी तीन हजार रुपये या उससे भी ज्यादा दाम के हैं. भारतीय प्रयोगशालाओं ने भी तकनीक विकसित की है, जिनका सीएसआईआर की पिलानी प्रयोगशाला में परीक्षण चल रहा है. वैज्ञानिकों को लगता है कि इन्हें लोग पसंद नहीं करेंगे, क्योंकि ये धमाकों की रिकॉर्डिंग जैसे लगेंगे.

क्या देश में पटाखों पर पूरी रोक है?

व्यावहारिक रूप से पूरी रोक है. पिछली 23 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री और पटाखे चलाने से सम्बद्ध कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं. अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को जो निर्देश दिए हैं उनके अनुसार कम उत्सर्जन वाले पटाखों को दागा जा सकेगा. केवल ग्रीन और सेफ पटाखे ही बेचे जाएंगे. इसके साथ ही ऑनलाइन पटाखों की बिक्री पर भी रोक लगा दी गई है. पटाखों की बिक्री से जुड़े ये निर्देश सभी त्योहारों तथा शादियों पर भी लागू होंगे. दीवाली के अवसर पर पटाखे रात को 8 बजे से 10 बजे के बीच ही चलाए जा सकेंगे. नए साल पर रात में 11.55 से 12.30 तक ही पटाखे जलाए जा सकेंगे। यह समय सीमा पूरे देश पर लागू होगी. जिस याचिका पर अदालत ने यह फैसला सुनाया है, उसपर 28 अगस्त को जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने दलील पूरी होने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.





Thursday, November 1, 2018

तीन समझदार बंदर?


जापान के निक्को स्थि‍त तोशोगु की समाधि पर ये तीनों बंदर बने हैं. वहाँ से ही वे दुनियाभर में प्रसिद्ध हुए. ये बंदर बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न बोलो की समझदारी को दर्शाते हैं. मूलतः यह शिक्षा ईसा पूर्व के चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की थी. वहाँ से यह विचार जापान गया. उस समय जापान में शिंटो संप्रदाय का बोलबाला था. शिंटो संप्रदाय में बंदरों को काफी सम्मान दिया जाता है. शायद इसीलिए इस विचारधारा को बंदरों का प्रतीक दे दिया गया. ये बंदर युनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है. ऐसे ही विचार जापान के कोशिन मतावलम्बियों के हैं जो चीनी ताओ विचार से प्रभावित हैं. जापानी में इन बंदरों के नाम हैं मिज़ारू, किकाज़ारू और इवाज़ारू. महात्मा गांधी ने इन तीन के मार्फत नैतिकता की शिक्षा दी, इसलिए कुछ लोग इन्हें गांधीजी के बंदर भी कहते हैं.

सीता-स्वयंवर का धनुष

इसे शिव-धनुष कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह शिव का प्रिय धनुष था जिसका नाम पिनाक था. इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना इसलिए खास था क्योंकि यह धनुष स्वयं शिव का था और बहुत अधिक वजनी था. धनुष के वजन के संबंध में तुलसी दास ने लिखा है कि स्वयंवर में उपस्थित हजारों राजा एक साथ मिलकर भी उस धनुष को हिला तक नहीं पाए थे. वहीं श्रीराम ने शिव धनुष की प्रत्यंचित किया. स्वयंवर में इतनी कठिन शर्त रखने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं. शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा ने दो दिव्य धनुष बनाए थे एक विष्णु के लिए और एक शिव के लिए. एक का नाम शारंग तथा दूसरे का नाम पिनाक था. उन्होंने शारंग भगवान विष्णु को तथा पिनाक भगवान शिव को दिया था. इसके अलावा भी कहानियाँ हैं. शिव ने यह धनुष परशुराम को भेंट में दिया था. परशुराम ने इस धनुष को जनक के पूर्वज देवराज के यहां रखवा दिया था. राजा जनक के यहां बचपन में सीता ने इस धनुष को उठा लिया. यह देखकर जनक समझ गए कि सीता असाधारण कन्या है. इसका विवाह किसी असाधारण वर से होगा.

रावण क्यों दशानन?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था. कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे. कुछ के अनुसार वह छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी कहा जाता था. दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए. जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं. उक्त नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था.
http://epaper.prabhatkhabar.com/1869938/Awsar/Awsar#page/6/1

Thursday, October 25, 2018

एस-400 मिसाइल प्रणाली


यह मिसाइल प्रणाली हवाई हमलों से बचाव के लिए है. यह सचल वाहन पर तैनात होती है. इसमें मल्टी फंक्शनल रेडार, ऑटोनॉमस डिटैक्शन और टार्गेटिंग सिस्टम, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लांचर और एक कंट्रोल सेंटर शामिल है. इसे रूस के अल्माज़ सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो ने बनाया है. हवाई हमलों से रक्षा के लिए एस-400 में चार किस्म की मिसाइलें तैनात हैं. बहुत लंबी रेंज यानी 400 किलोमीटर तक मार करने वाली 40एन6, लंबी रेंज 250 किलोमीटर तक मार करने वाली 48एन6, मीडियम रेंज 120 किलोमीटर तक मार करने वाली 9एम96ई2 और 40 किलोमीटर तक की छोटी दूरी तक मार करने वाली 9एम96ई मिसाइल तैनात हैं. इस प्रणाली में एक कमांड और कंट्रोल सेंटर है, जिसके रेडार 600 किलोमीटर तक की दूरी पर हो रही गतिविधियों को पकड़ लेते है. यह 8 गुणा 8 पहियों वाले एक विशेष ट्रक पर तैनात होता है. इसका एस बैंड सिस्टम एकसाथ 300 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है. इसके एक सिस्टम में 72 मिसाइलें तैनात होती हैं.

स्वदेशी प्रणाली

भारत ने हवाई हमलों से रक्षा के लिए अपनी प्रणालियाँ भी विकसित की हैं. ये प्रणालियाँ दो परतों वाली (टू-टियर) हैं. ज्यादा ऊँचाई के लिए प़थ्वी एयर डिफेंस सिस्टम (पीएडी) और कम ऊँचाई के लिए एडवांस्ड एयर डिफेंस (एएडी). इन दोनों प्रणालियों का परीक्षण 2006 और 2007 में पूरा हो गया और भारत दुनिया में चौथा ऐसा देश है, जिसके पास अपनी एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रणाली है. शेष तीन देश हैं रूस, अमेरिका और इसरायल. इस प्रणाली के दूसरे चरण पर काम चल रहा है. स्वदेशी एंटी-बैलिस्टिक मिसाइलों में प्रद्युम्न, अश्विन और आकाश प्रमुख हैं. भारत के सामने पाकिस्तान और चीन का दोहरा खतरा खड़ा है. चीन ने सन 2015 में एस-400 की छह बटालियनें खरीदने का समझौता किया था. ये मिसाइलें चीन को इस साल जनवरी से मिलनी शुरू हो भी गई हैं. कभी दोनों देशों के साथ युद्ध की स्थिति पैदा हुई तो भारत के सामने दिक्कतें पैदा हो जाएंगी, इसलिए रूसी सिस्टम खरीदने का फैसला किया गया है.

काट्सा क्या है?

अमेरिकी संसद ने ईरान, उत्तर कोरिया और रूस पर पाबंदियाँ लगाने के लिए सन 2017 में काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस एक्ट (काट्सा)पास किया था. इसका उद्देश्य यूरोप में रूस के बढ़ते प्रभाव को रोकना भी है. इसकी धारा 231 के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति के पास किसी भी देश पर 12 किस्म की पाबंदियाँ लगाने का अधिकार है. अमेरिका ने रूस की 39 संस्थाओं को चिह्नित किया है, जिनके साथ कारोबार करने वालों को पाबंदियों का सामना करना पड़ सकता है. इनमें ज्यादातर संस्थाएं रक्षा उपकरणों को तैयार करती हैं. भारत के सबसे ज्यादा रक्षा-उपकरण रूसी हैं. इस अधिनियम के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति के पास राष्ट्रीय हित में किसी देश को इन पाबंदियों से छूट देने का अधिकार भी है.  
http://epaper.prabhatkhabar.com/1865927/Awsar/Awsar#page/6/1

Thursday, October 11, 2018

गिर के शेर खबरों में क्यों?

गुजरात के गिर में एक के बाद कई शेरों की मौत ने वन प्रशासन को हिलाकर रख दिया है. यहाँ 12 सितंबर के बाद से 21 शेरों की मृत्यु होने की खबरें हैं. ये शेर कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) के शिकार थे. यह जानलेवा वायरस कुत्तों से जंगली जानवरों में फैलता है. इसके कारण तंजानिया में 1994 में 1000 शेरों की मौत हो गई थी. पहली खबरें तब आईं, जब पता लगा कि 12 से 19 सितंबर के दौरान डालखानिया रेंज में शावकों समेत 11 शेरों की मौत हो गई. गिर के शेर दो साल पहले भी खबरों में थे, जब कुछ शेरों ने इंसानों पर हमले करके उन्हें मार दिया. इंसान पर हमले की जो घटनाएं घटीं, उनके पीछे गिर के जंगलों के आसपास बसे गांवों में हो रहे ग़ैरक़ानूनी 'लॉयन शो' जिम्मेदार थे, जिनमें छोटे जानवरों को मार कर शेरों को आकर्षित किया जाता है. 'लॉयन शो' में आसानी से भोजन मिलने लगा. वे खेतों में सो रहे इंसानों को वे अपना शिकार समझने लगे.

गिर के जंगल की विशेषता
गुजरात का गिर राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्यप्राणी अभयारण्य एशिया में सिंहों का एकमात्र निवास स्थान होने के कारण प्रसिद्ध है. विश्व में सिंहों की कम हो रही संख्या की समस्या से निपटने और एशियाटिक सिंहों के रक्षण का अकेला स्थान होने के कारण इसे पहचाना जाता है. इस जंगल को सन 1969 में वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया और इसके छह वर्ष बाद इसका 140.4 वर्ग किलोमीटर में विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित कर दिया गया. अब यह लगभग 248.71 वर्ग किलोमीटर इलाके तक फैल चुका है. सन 1974 में यहाँ सिंहों की संख्या 180 होने का अनुमान था, जिसके 2010 तक 400 और अब 500 से ऊपर होने का अनुमान है.

सिंह और बाघ में अंतर

बाघ (टाइगर), शेर (लॉयन), तेंदुआ (लैपर्ड) और चीते को पहचानने में हम अक्सर गलती करते हैं. कैट यानी बिल्ली प्रजाति के होते हुए भी चारों में अंतर है. सिंह की पहचान है उसके गले में चारों ओर का क्राउन या बालों का घेरा. इनके शरीर पर धारियां नहीं होतीं. क्राउन केवल नर शेर की गर्दन पर होता है, शेरनी की गर्दन पर नहीं. ये ऐसे जंगल में रहते हैं, जो बहुत सघन नहीं होते और जहाँ घास के मैदान होते हैं. भारत में शेर सिर्फ गुजरात के गिर अभयारण्य में हैं. इनके अलावा पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका में ये मिलते हैं. शेरों की सामाजिक व्यवस्था होती है. वे अमूमन झुंड में रहते हैं, जिन्हें प्राइड्स कहा जाता है. सामान्यतः शेरनी शिकार करती है और सब मिलकर खाते हैं. बाघ के शरीर की नारंगी रोएंदार खाल पर काली समांतर धारियां होती हैं. गले से लेकर नीचे तक का हिस्सा कई जगह सफेद होता है. ये सिंहों की तुलना में अकेले रहना पसंद करते हैं, और खुद शिकार करते हैं. भारत, बांग्लादेश और दक्षिण कोरिया में बाघ को राष्ट्रीय पशु माना जाता है. 

Saturday, October 6, 2018

एशिया कप क्रिकेट

हाल में हुई एशिया कप क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत की टीम ने बांग्लादेश को तीन विकेट से हराकर चैम्पियनशिप जीत। एशिया क्रिकेट कौंसिल की इस प्रतियोगिता की योजना सन 1983 में बनी थी। उसी साल एशिया क्रकेट कौंसिल का गठन हुआ था। पहला एशिया कप टूर्नामेंट 1984 में शारजाह में हुआ। वहीं पर एशिया क्रिकेट कौंसिल का मुख्यालय था, जो 1995 तक वहाँ रहा। यह प्रतियोगिता एक दिनी और टी-20 दोनों फॉर्मेट में आ.जित होती है। शुरू में यह एकदिनी प्रतियोगता ही थी, जो हर दो साल में होती थी। अब यह एकबार एकदिनी और अगली बार टी-20 फॉर्मेट पर होती है। सन 2015 में इंटरनेशनल क्रिकेट कौंसिल ने तय किया कि 2016 के बाद से इस प्रतियोगिता का फॉर्मेट बदलेगा। सन 2016 में टी-20 विश्वकप के ठीक पहले एशिया कप हुआ। पहले एशिया कप में भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका की तीन टीमों ने भाग लिया था। हाल में हुई एकदिनी प्रतियोगिता में छह टीमों ने भाग लिया। एशिया में पाँच टीमों को टेस्ट मैच खेलने का अधिकार प्राप्त है। ये टीमें हैं भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान। इन पाँचों टीमों को इस प्रतियोगिता में सीधे प्रवेश दिया गया। इनके अलावा छठी टीम के प्रवेश के लिए हांगकांग, मलेशिया, नेपाल, ओमान, सिंगापुर और यूएई की टीमों कदिनी के बीच एक प्रतियोगिता हुई, जिसमें हांगकांग की टीम जीतकर आई।

चैम्पियन टीमें

एशिया कप की एकदिनी प्रतियोगिताओं में सबसे सफल भारत की टीम है, जो सात बार चैम्पियन रही। इसके बाद दूसरे नम्बर पर श्रीलंका है, जिसने पाँच बार इस प्रतियोगिता में जीत हासिल की। सन 2016 में पहली बार हुई टी-20 प्रतियोगिता भारतीय टीम ने जीती। पाकिस्तान की टीम दो बार चैम्पियन बनी है। सन 1986 की प्रतियोगिता में मेजवान देश श्रीलंका से बिगड़े रिश्तों के कारण भारत ने हिस्सा नहीं लिया। तब इसमें बांग्लादेश को भी शामिल कर लिया गया। सन 1990 की प्रतियोगिता भारत में हुई, जिसमें पाकिस्तान ने भाग नहीं लिया। सन 1993 की प्रतियोगिता भारत और पाकिस्तान के बिगड़े रिश्तों के कारण हो नहीं पाई। 1988 का तीसरा कप बांग्लादेश में हुआ। इस प्रतियोगिता में भारत की टीम ने फाइनल में श्रीलंका को हराया। सन 2000 में बांग्लादेश में हुई चैम्पियनशिप में पहली बार भारत की टीम फाइनल तक नहीं पहुँची। उस साल पाकिस्तान की टीम श्रीलंका को हराकर चैम्पियन बनी।

पेंग्विन किस वर्ग का जीव है?

पेंग्विन एक प्रकार का पक्षी है जो उड़ नहीं पाता, पर काफी समय पानी के अंदर बिता सकता है। इनकी 17 प्रजातियाँ मिलती हैं। पेंग्विन के नाम पर हमें लगता है कि वे सिर्फ अंटार्कटिका के बर्फीले इलाकों में ही मिलते होंगे। ऐसा नहीं है। वे न्यूजीलैंड-ऑस्ट्रिलिया, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में भी मिलते हैं।

दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप कौन सा है?

यदि आशय महाद्वीप से नहीं है तब ग्रीनलैंड सबसे बड़ा द्वीप है जिसका क्षेत्रफल 21,30,800 वर्ग किलोमीटर है। इसके बाद न्यूगिनी है जिसका क्षेत्रफल 7,85, 753 वर्ग किलोमीटर है। इसके बाद बोर्नियो और मैडागास्कर द्वीप हैं। सबसे छोटे महाद्वीप ऑस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल 76,00,000 वर्ग किलोमीटर है।

Friday, October 5, 2018

अविश्वास और विश्वास मत


संसदीय अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार को पराजित करना होता है। यह प्रस्ताव विपक्ष लाता है। इसके विपरीत विश्वास का मत प्रायः सरकार के गठन के बाद पेश किया जाता है। इसे सत्तापक्ष लाता है। ब्रिटिश संसद में सम्राट के और भारतीय संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर वोट भी विश्वास मत की तरह है। उसमें किसी प्रकार का संशोधन सरकार को गिराने जैसा होता है। जब संसद अविश्वास प्रस्ताव पास करे या सरकार विश्वास मत हासिल करने में विफल रहती है, तो उसे इस्तीफा देना चाहिए। इसके अलावा सदन को भंग करने और आम चुनाव कराने का अनुरोध भी सरकार कर सकती है। इस अनुरोध पर फैसला परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यदि दूसरा पक्ष सरकार बनाने की स्थिति में हो तो उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। यदि सत्तापक्ष बहुमत में है और फिर भी वह संसद को भंग करने का अनुरोध करे तो सम्राट या राष्ट्रपति उसे स्वीकार कर लेते हैं। संसदीयप्रणाली मेंसरकार खुद इस्तीफा देने का फैसला करे या मजबूर होतो सम्राट विरोधी दल से पूछते हैं कि क्या वह सरकार बनाने के लिए तैयार है। भारत में भी यही व्यवस्था है।

वेस्टमिंस्टर प्रणाली

शासन की संसदीय प्रणाली। इसे यह नाम लंदन के पैलेस ऑफ़ वेस्टमिंस्टर के कारण दिया गया है, जो ब्रिटिश संसद का सभास्थल है। सिटी ऑफ़ वेस्टमिंस्टर लंदन का इलाका है, जो टेम्स नदी के किनारे है। यह इमारत एक शाही महल है। पहला शाही महल 11वीं सदी में बनाया गया था। 1512 में आग से नष्ट होने से पहले वेस्टमिंस्टर पैलेस सम्राट का लंदन निवास होता था। इसके बाद से इसे संसद भवन मान लिया गया। 13वीं सदी में यहां संसद की सभाएं होने लगी थीं। इस भवन में 1834 फिर भयानक में आग लगी। सन 1840 में इसका पुनर्निर्माण शुरू हुआ,जो 30 साल तक चला। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1941 में लंदन पर हुई बमबारी में भी इस इमारत को नुकसान पहुँचा। इसकी एक पहचान है क्लॉक टॉवर, जिसका विशाल घंटा बिग बेन के नाम से प्रसिद्ध है। सन 1987 से यह इमारत यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों का हिस्सा है।

बिग बेन

बिग बेन विशाल घंटे का नाम है और उस क्लॉक टावर का भी, जिसमें यह घंटा लगा है। सन 2012 में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की हीरक जयंती के मौके पर इस घंटाघर का नाम एलिजाबेथ टावर रख दिया गया। इस टावर का डिजाइन ऑगस्टस प्यूजिन ने तैयार किया था। इसका निर्माण 1859 में पूरा हुआ। उस वक्त यह दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे सही समय देने वाली क्लॉक टावर मानी गई। यह टावर 315 फुट ऊँची है और इसमें सबसे ऊपर तक जाने के लिए बनी सीढ़ी के 334 पायदान हैं। इस घड़ी की सूइयों का व्यास 23 फुट का है। 31 मई 2009 को इस घड़ी की 150वीं जयंती मनाई गई थी।

विजय चिह्न ‘वी’

किसी भी क्षेत्र में चाहे वो राजनीति हो, खेल या शिक्षा जीत होने पर दो उंगली ऊँची करके ‘वी’ बनाने का चलन बढ़ता जा रहा है। हाथ की मध्यमा और तर्जनी उंगलियों से बनने वाला अंग्रेजी का ‘वी’ विक्ट्री साइन माना जाता है। यानी विजय। पर इसका मतलब केवल विजय ही नहीं सफलता और शांति भी है। अंतरराष्ट्रीय सद्भाव के आंदोलन काउंटर कल्चर ने सन 1960 में इसे शांति के चिह्न के रूप में स्वीकार किया था। हालांकि इसका कोई नियम नहीं है, पर इसके लाक्षणिक अर्थ को समझने का प्रयास भी करना चाहिए। प्रायः हथेली को बाहर की ओर करके जब यह चिह्न बनाया जाता है तब विजय का सकारात्मक और शांतिपूर्ण अर्थ होता है। जब हथेली को भीतर की ओर करके इस निशान को बनाते हैं तब दम्भ और किसी को पराजित करने का भाव माना जाता है। यों हमारे यहाँ इस अंतर को बहुत कम हम देख पाते हैं।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित


एनआरसी के बारे में जानिए


सिद्धांततः नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) भारतीय नागरिकों की सूची है, पर भारत में असम अकेला राज्य है, जहाँ सन 1951 में इसे जनगणना के बाद तैयार किया गया था। भारत में नागरिकता संघ सरकार की सूची में है, इसलिए एनआरसी से जुड़े सारे कार्य केंद्र सरकार के अधीन होते हैं। यह कार्य देश के रजिस्ट्रार जनरल के अधीन है। सन 1951 में देश के गृह मंत्रालय के निर्देश पर असम के सभी गाँवों, शहरों के निवासियों के नाम और अन्य विवरण इसमें दर्ज किए गए थे। इस एनआरसी का अब संवर्धन किया जा रहा है, जिसका दूसरा ड्राफ्ट हाल में जारी किया गया है। एनआरसी को अपडेट करने की जरूरत सन 1985 में हुए असम समझौते को लागू करने की प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसे लागू करने के लिए सन 2005 में एक और समझौता हुआ था। सन 2009 में एक एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली कि अवैध नागरिकों के नाम वोटर सूची से हटाए जाएं। यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में चल रही है। एनआरसी संशोधन का पहला ड्राफ्ट 31 दिसम्बर 2017 को जारी हुआ था और दूसरा ड्राफ्ट अब जारी हुआ है। इसमें उन व्यक्तियों के नाम हैं जो या तो 1951 की सूची में थे, या 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि के पहले असम के निवासी रहे हों।
क्या यह अंतिम सूची है?
नहीं यह दूसरी ड्राफ्ट सूची है। यानी कि अब तक जो नाम इसमें शामिल किए जा चुके हैं उनकी सूची। इसके पहले 30 दिसम्बर 2017 को पहली ड्राफ्ट सूची जारी की गई थी। उसमें 1।9 करोड़ नाम शामिल थे। दूसरी सूची में 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं। कुल 3.29 करोड़ लोगों ने इसमें नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन किया है। अब तमाम शिकायतों को सुनने के बाद जो सूची जारी की जाएगी, वह अंतिम सूची होगी।उस सूची में भी नाम नहीं होने से कोई व्यक्ति विदेशी साबित नहीं हो जाएगा। विदेशी न्यायाधिकरण इसका फैसला करेगा। उसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
राज्य-विहीन लोग कौन हैं?
अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार राज्यविहीन व्यक्ति वह होता है, जिसे कोई भी देश अपना नागरिक नहीं मानता। ऐसे कुछ व्यक्तियों को शरणार्थी कह सकते हैं, पर सभी शरणार्थी राज्यविहीन नहीं होते। किसी देश का नागरिक बनने की कुछ बुनियादी शर्तें हैं। एक, भूमि-पुत्र होना। यानी जिस जमीन पर व्यक्ति का जन्म हो, वह उस देश का नागरिक हो। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस सिद्धांत को मानते हैं। दूसरे वंशज होना। माता-पिता की नागरिकता को ग्रहण करना। दुनिया के ज्यादातर देश इस सिद्धांत को मानते हैं। व्यक्ति के पास इस दोनों के प्रमाण नहीं होते, तो वह राज्य विहीन हो जाता है। दुनिया के देशों में नागरिकता नियम अलग-अलग हैं। जन्म के पंजीकरण की व्यवस्थाएं नहीं हैं, इस कारण जटिलताएं हैं। संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में इस समस्या के निराकरण पर विचार हो रहा है। दुनिया में एक करोड़ से ज्यादा राज्यविहीन लोग हैं।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Thursday, October 4, 2018

मी टू आंदोलन क्या है?

मी टू आंदोलन (जिसे अंग्रेजी में #MeToo लिखा जाता है) यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक वैश्विक अभियान है, जिसके अलग-अलग देशों में अलग-अलग रूप हैं. इसका सबसे प्रचलित अर्थ है कार्यक्षेत्र में स्त्रियों का यौन शोषण. हमारे देश में इसका इस्तेमाल सामान्य उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ भी हो रहा है. अक्तूबर 2017 में अमेरिकी फिल्म निर्माता हार्वे वांइंसटाइन पर कुछ महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाए. न्यूयॉर्क टाइम्स और न्यूयॉर्कर ने खबरें प्रकाशित कीं कि एक दर्जन से अधिक स्त्रियों ने वाइंस्टाइन पर यौन-विषयक परेशानियाँ पैदा करने, छेड़छाड़, आक्रमण और रेप के आरोप लगाए. इसके बाद कई और स्त्रियों ने ऐसे आरोप लगाए. इसके बाद कुछ और स्त्रियों ने कहा कि उनके साथ भी ऐसा हुआ है. पर इस वाक्यांश को लोकप्रियता दिलाई अमेरिकी अभिनेत्री एलिज़ा मिलानो ने, जिन्होंने हैशटैग के साथ इसका इस्तेमाल 15 अक्टूबर 2017 को ट्विटर पर किया. मिलानो ने कहा कि मेरा उद्देश्य है कि लोग इस समस्या की संज़ीदगी को समझें. इसके बाद इस हैशटैग का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर करोड़ों लोग कर चुके हैं.

पहला इस्तेमाल

वस्तुतः यह अब स्त्री-मुक्ति का आप्त-वाक्य बन चुका है. एलिज़ा मिलानो को इसे प्रचारित करने का श्रेय जाता जरूर है, पर इसका पहली बार इस्तेमाल सन 2006 में अमेरिकी सोशल एक्टिविस्ट और कम्युनिटी ऑर्गेनाइज़र टैराना बर्क ने किया था. बर्क का कहना है कि जब एक 13 साल की लड़की ने उन्हें अपने यौन उत्पीड़न की जानकारी दी, तो मेरे मुँह से निकला ‘मी टू.’ स्त्रियों के मन में एक-दूसरे की परेशानियों के प्रति हमदर्दी पैदा करने के उद्देश्य से उन्होंने सोशल मीडिया नेटवर्क माईस्पेस पर इसका इस्तेमाल किया. आज दुनिया के तमाम लोग इसका इस्तेमाल ‘हम तुम्हारे साथ हैं’ की भावना से कर रहे हैं. भारत में हाल में बॉलीवुड की अभिनेत्री तनुश्री दत्ता के मामले में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.

गणराज्य क्या होता है?

गणराज्य या गणतंत्र शासन पद्धति है, देश सार्वजनिक विषय होता है, शासकों की निजी संस्था या सम्पत्ति नहीं. यानी कि गणतंत्र के भीतर सत्ता पारिवारिक विरासत में नहीं मिलती. यानी राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता, बल्कि जनता द्वारा सीधे या परोक्ष पद्धति से चुना हुआ व्यक्ति होता है. यह सब सांविधानिक व्यवस्था के तहत होता है. आज दुनिया के अधिकतर देश स्वयं को गणराज्य मानते हैं. सन 2017 तक, दुनिया के 206 सम्प्रभु राज्यों में से 159 अपने आधिकारिक नाम के हिस्से में ‘रिपब्लिक’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे. यह भी समझ लिया जाना चाहिए कि राज्य प्रमुख यदि चुनाव से तय हो रहा है, पर राष्ट्राध्यक्ष सम्राट है, तो उस देश को गणराज्य नहीं कहेंगे। मसलन ब्रिटेन लोकतांत्रिक देश है, पर गणराज्य नहीं है, क्योंकि वहाँ राष्ट्राध्यक्ष राजा है. वहाँ सांविधानिक राजतंत्र है. ऐसा ही जापान में है.
प्रभात खबर अवसर में प्रकाशित

Friday, September 28, 2018

मानव विकास सूचकांक

मानव विकास सूचकांक या ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों (दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक पहुँच तथा जीवन के एक सभ्य स्तर) द्वारा प्रगति का आकलन करने का एक वैश्विक मानक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) हर साल जारी करता है. इसमें कई तरह की सूचनाओं के आधार पर हरेक देश को अंक दिए जाते हैं. मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, स्त्रियों की स्थिति, आर्थिक स्थिति, जीवन स्तर, संचार के साधन वगैरह. इसके आधार पर अलग-अलग देशों का तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता है. यह सूचकांक अलग-अलग शहरों या अलग-अलग प्रदेशों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी तैयार किया जा सकता है. इस साल यह रिपोर्ट 14 सितम्बर, 2018 को जारी हुई. सन 1990 से यह रपट जारी हो रही है. इसे बनाने की पहल पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूबुल हक ने की थी. इसमें भारत के अमर्त्य सेन के अलावा पॉल स्ट्रीटेन, फ्रांसिस स्टीवर्ट, गुस्ताव रेनिस और कीथ ग्रिफिथ जैसे अर्थशास्त्री भी जुड़े रहे हैं.

भारत का स्थान

हाल ही में नवीनतम मानव विकास रिपोर्ट में, वर्ष 2017 पर आधारित है, भारत को कुल 189 देशों में 130वाँ स्थान प्राप्त हुआ है. पिछले वर्ष भारत को इस सूचकांक में 131वाँ स्थान प्राप्त हुआ था. सूची में सबसे ऊपर पाँच देश क्रमश:- नॉर्वे (0.953), स्विट्ज़रलैंड (0.944), ऑस्ट्रेलिया(0.939), आयरलैंड(0.938) और ज़र्मनी(0.936) हैं. सबसे निचले स्थान पर अफ्रीकी देश नाइज़र (0.354) है. भारत की एचडीआई गणना 0.640 है, जो दक्षिण एशिया के औसत सूचकांक 0.638 से बेहतर है. अलबत्ता भारत के पड़ोसी देशों में श्रीलंका (0.770) 76वें स्थान पर, चीन (0.752) 86वें स्थान पर और मालदीव (0.717) 101वें स्थान पर हैं. बांग्लादेश (0.608) 136 और पाकिस्तान (0.562)150वें स्थान पर है. भूटान (0.612) 134वें और नेपाल (0.574) 149वें स्थान पर है.

भारत में असमानता

रिपोर्ट में असमानता को भारत के लिए प्रमुख चुनौती माना गया है. देश की असमानता के अंकों को कम करें तो भारत का एचडीआई 0.468 होगा. इस मामले में भी पाकिस्तान और बांग्लादेश का एचडीआई भारत से कम है, पर इन दोनों देशों में असमानता भारत से कम है. वर्ष 1990 से 2017 की अवधि में भारत में जीवन प्रत्याशा लगभग 11 साल बढ़ी है. स्कूली शिक्षा के मामले में भी स्थिति सुधरी है, जबकि 1990 और 2017 के बीच भारत की सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) प्रति व्यक्ति 266.6 प्रतिशत बढ़ी है. लैंगिक असमानता के सूचकांक (जीआईआई) में भारत (0.524)160 देशों की सूची में 127वें स्थान पर है, पाकिस्तान का स्थान 133 और बांग्लादेश का स्थान 134वाँ है. भारत में संसद की 11.6 प्रतिशत सीटें महिला सदस्यों को पास हैं, 36 फीसदी वयस्क महिलाएं कम से कम सेकंडरी स्तर की शिक्षा प्राप्त कर चुकी हैं. 63.5 प्रतिशत पुरुष इस स्तर तक शिक्षा प्राप्त हैं. भारत में प्रति 1,00,000 स्त्रियों में से 174 की प्रसव-जनित कारणों से मृत्यु हो जाती है.

Sunday, September 16, 2018

‘घुटने टेको’ आंदोलन


भारत में घुटने टेकने का मतलब झुक जाना माना जाता है, पर अमेरिका में इसे विरोध प्रदर्शन का एक माध्यम बनाया गया है. वहाँ जातीय या नस्ली अन्याय के खिलाफ संघर्ष इन दिनों टेक द नी या घुटने टेको आंदोलन की शक्ल में सामने आ रहा है. बराक ओबामा जब अमेरिका के राष्ट्रपति बने तब कहा जा रहा था कि अमेरिका में नए युग की शुरुआत हो गई है. ओबामा के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में अश्वेतों की शिकायतें बढ़ी हैं. उनके चुनाव में अश्वेतों ने उनके खिलाफ वोट दिया था. धीरे-धीरे यह चर्चा ठंडे बस्ते में दब भी गई थी लेकिन हाल में अमेरिकी फुटबॉलर कॉलिन कैपरनिक को प्रतीक बनाकर यह चर्चा फिर से शुरू हुई है. सोशल मीडिया के कारण यह आंदोलन बड़ी तेजी से फैल रहा है. अभी तक हाथ में मोमबत्तियाँ लेकर विरोध विरोध जताया जाता था. अब राष्ट्रीय गीत के दौरान एक घुटना जमीन पर टिकाकर विरोध जताने का नया तरीका सामने आया है. माना जाता है कि देश से बढ़कर कुछ नहीं, पर राष्ट्रगीत के दौरान ऐसा करने का मतलब है व्यक्ति हर उस चीज का विरोध कर रहा है जिसके कारण उसे अपने ही देश से नाराजगी है.
खेल-मैदान में विरोध
सन 2016 में एक मैच के दौरान जब अमेरिका का राष्ट्रगीत चल रहा था तो कॉलिन कैपरनिक ने एक घुटना जमीन पर टिका दिया. विरोध के इस तरीके पर सारी दुनिया ने गौर किया. मैच के बाद कॉलिन ने स्पष्ट किया कि यह अपने देश का विरोध नहीं है, बल्कि जातीय अन्याय का विरोध है. उन्होंने कहा, विरोध के थोड़े समय बाद ही कॉलिन को टीम से बाहर कर दिया गया था. नेशनल फुटबॉल लीग (एनएफएल) के मैचों में इस प्रकार के विरोध प्रदर्शन शुरू ही हुए थे कि राष्ट्रपति ट्रंप ने टीमों के मालिकों का आह्वान किया कि वे ऐसे खिलाड़ियों को बाहर कर दें. इस बयान ने आग में घी का काम किया. 24 सितम्बर 2007 को 200 खिलाड़ियों ने एक घुटना जमीन पर टिकाकर प्रदर्शन किया. घुटने टेकने की परम्परा कुछ पुरानी है. सन 1960 में साउथ कैरलीना में एक मैच के पहले हॉफ के दौरान अलबर्ट किंग डिक्सन जूनियर नामक खिलाड़ी घुटने टेके थे. तब उन्होंने इसे अपने दिवंगत कोच को श्रद्धांजलि कहा था. अलबत्ता 1965 में मार्टिन लूथर किंग ने जेल जाने से पहले विरोध का यह तरीका अपनाया था.
नाइके की पहल
हाल में खेल से जुड़ी चीजें, खासतौर से स्पोर्ट्स शूज़ बनाने वाली अमेरिकी कम्पनी नाइके ने कॉलिन कैपरनिक को एक लम्बे विज्ञापन अभियान के लिए अनुबंधित किया है. कॉलिन 2011 से इस कम्पनी के साथ जुड़े हैं, पर इस नए अनुबंध के राजनीतिक निहितार्थ हैं. कम्पनी के इस अभियान को समर्थन मिला है, इसे देश-विरोधी गतिविधि माना जा रहा है. नाइके के उत्पादों को जलाया जा रहा है. कॉलिन ब्लैक लाइव्स मैटर (बीएलएम) नामक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन के समर्थक भी हैं, जो अमेरिकी-अफ्रीकी समुदाय के सवालों को उठाता है. सन 2013 से सोशल मीडिया पर हैशटैग ब्लैक लाइव्स मैटर नाम से अभियान भी चल रहा है.



Saturday, September 15, 2018

आतंकवाद क्या है?

आतंकवाद एक हिंसात्मक गतिविधि है, जिसके पीछे आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक उद्देश्य हो सकते हैं. भय फैलाकर राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करना. दुनिया में इसके कई उदाहरण हैं, पर आज वैश्विक-आतंकवाद पर हमारा ज्यादा ध्यान है. ‘आतंकवादी’ और ‘आतंकवाद’ शब्दों का सबसे पहले इस्तेमाल 18वीं सदी में फ्रांसीसी राज्य क्रांति के दौरान हुआ. हाल के वर्षों में हम जिस अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का नाम सुन रहे हैं, वह 1983 में बेरुत बमबारी के बाद से प्रचलन में आया है. 11 सितम्बर 2001 को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले और फिर 2002 में बाली बमबारी के कारण यह सुर्खियों में रहा. भारत में अस्सी के दशक में खालिस्तानी हिंसा के कारण आतंकवाद सुर्खियों में था. सन 2001 में भारतीय संसद पर हुआ हमला और फिर 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुआ हमला बहुत बड़ी घटनाएं थीं. आतंकवाद की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है. इस हिंसा के समर्थक इसे युद्ध की शैली मानते हैं और इससे पीड़ित अनैतिक. संयुक्त राष्ट्र ने इसकी सर्वमान्य परिभाषा बनाने का प्रयास किया है, पर मतभेदों के कारण इसमें सफलता नहीं मिली है.

नक्सलवाद

नक्सलवाद मोटे तौर पर भारत की मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी की विचारधारा के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द है. यह पार्टी नब्बे के दशक में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से टूटकर बनी थी. नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहाँ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 में सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की.वे चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्जेदुंग के समर्थक थे. आज कई नक्सली संगठन वैधानिक रूप से स्वीकृत राजनीतिक पार्टी बन गए हैं और संसदीय चुनावों में भाग भी लेते है. बहुत से माओवादी संगठन हिंसक गतिविधियों में लिप्त हैं. इनका पुराने नक्सलवाद से सीधा सम्बन्ध नहीं है, पर अपनी हिंसक गतिविधियों के कारण वे नक्सलवादी माने जाते हैं. आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, उड़ीसा, झारखंड, महाराष्ट्र और बिहार इनके प्रभाव में हैं.

आतंक विरोधी कानून
देश में अस्सी के दशक में आतंकी गतिविधियाँ बढ़ने के बाद टैररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज़ एक्ट (टाडा)-1987 बनाया गया.इसके दुरुपयोग की शिकायतें मिलने के बाद 1995 में इसे लैप्स होने दिया गया.इस कानून में पुलिस के सामने कबूल की गई बातों को प्रमाण मान लिया जाता था.सन 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण और 2001 में संसद भवन पर हुए हमले के बाद प्रिवेंशन ऑफ टैररिज्म एक्ट (पोटा)-2002 बना.इसके दुरुपयोग की शिकायतों के बाद 2004 में इसे रद्द कर दिया गया. इन दोनों कानूनों के पहले देश में अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए)-1967 का कानून भी था. सन 2008 में मुम्बई हमले के बाद इस कानून में संशोधन करके इसका इस्तेमाल होने लगा. सन 2012 में इसमें और संशोधन किया गया.इसमें आतंकवाद की परिभाषा में बड़े बदलाव किए गए.देश की अर्थव्यवस्था को धक्का पहुँचाने, जाली नोटों का प्रसार करने जैसी बातें भी इसमें शामिल की गईं.इसमें आरोप पत्र दाखिल करने की अवधि तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने कर दी गई.

नया खेल ई-स्पोर्ट्स


इंडोनेशिया में हो रहे एशिया खेलों में पहली बार ई-स्पोर्ट्स को डिमांस्ट्रेशन स्पोर्ट्स के रूप में शामिल किया गया है. माना जा रहा है कि सन 2022 में हैंगझाओ, चीन में होने वाले 19वें एशिया खेलों में ई-स्पोर्ट्स प्रतियोगिता के रूप में शामिल होंगे. ई-स्पोर्ट्स का मतलब है इलेक्ट्रॉनिक स्पोर्ट्स. यानी वीडियो गेमिंग, प्रोफेशनल वीडियो गेमिंग. ये नए किस्म के खेल हैं, जिनमें व्यक्ति की प्रत्युत्पन्न मति और शूटिंग जैसी प्रतिभाओं की परीक्षा होती है. दुनिया में अब इन खेलों की प्रतियोगिताएं होने लगी हैं. सबसे ज्यादा प्रचलित खेल है रियल टाइम स्ट्रेटेजी (आरटीएस), फर्स्ट पर्सन शूटर (एफपीएस) और फाइटिंग एंड मल्टीप्लेयर ऑनलाइन बैटल एरेना (एमओबीए). इनकी लीग ऑफ लीजेंड्स वर्ल्ड चैम्पियनशिप, इवॉल्यूशन चैम्पियनशिप सीरीज और इंटेल एक्सट्रीम मास्टर्स जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं होती हैं.

एशियाई खेल
एशियाई खेलों को एशियाड के नाम से भी जाना जाता है. ये खेल हर चार साल में होते हैं. इन खेलों का नियामन एशियाई ओलम्पिक परिषद द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक परिषद के पर्यवेक्षण में किया जाता है. इनकी शुरुआत 1951 में हुई थी और पहले एशियाई खेलों का आयोजन दिल्ली, भारत में किया गया था. भारत ने 1982 में फिर इन खेलों की मेजबानी की थी. इस साल अठारहवें एशियाई खेल अगले एशियाई खेल इंडोनेशिया के दो शहरों में हो रहे हैं. इन खेलों में भारत के 572 खिलाड़ियों की टीम भाग ले रही है. इनका शुभारम्भ 18 अगस्त को हुआ है और समापन 2 सितम्बर को होगा. इसका उद्घाटन समारोह जकार्ता में हुआ है और समापन समारोह भी वहीं होगा. यह पहला मौका है, जब एशियाई खेल दो शहरों में आयोजित किए जा रहे हैं. इससे पहले सत्रहवें एशियाई खेल सन 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचेयान शहर में हुए थे.

सबसे अमीर देश

हाल में खबर थी कि दुनिया के सबसे अमीर इलाके के रूप में प्रसिद्ध कतर को चीन का द्वीप मकाऊ जल्द पीछे छोड़ने वाला है. दुनिया के इस कसीनो हब के निवासियों की औसत आय सन 2020 में 1,43,116 डॉलर (यानी करीब 75 लाख रुपये) हो जाएगी. यह अनुमान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का है. उस वक्त कतर के निवासियों की सालाना औसत आय 1,39,151 डॉलर होगी. अमीरी के लहाज से यूरोप के तीन देश लक्जमबर्ग, आयरलैंड और नॉर्वे दुनिया के दस सबसे अमीर देशों में होंगे. अमेरिका का स्थान 12वाँ होगा. फॉर्च्यून डॉट कॉम के अनुसार अमीरी के लिहाज से दुनिया के पहले पाँच देश इस प्रकार हैं:- 1.कतर (1,24,930 डॉलर), 2.लक्जमबर्ग (1,09,190), 3.सिंगापुर (90,530), 4.ब्रूनेई (76,740), 5.आयरलैंड (72,630).

Sunday, August 26, 2018

संसदीय विशेषाधिकार क्या होते हैं?

संसद के दोनों सदनों, उनके सदस्यों और समितियों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्‍त है।इन्हें इसलिए दिया गया है ताकि वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकें। सबसे महत्‍वपूर्ण विशेषाधिकार है सदन और समितियों में स्वतंत्रता के साथ विचार रखने की छूट।सदस्य द्वारा कही गई किसी बात के संबंध में उसके विरूद्ध किसी न्यायालय में कार्रवाई कार्यवाही नहीं की जा सकती।कोईसदस्य उस समय गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि उस सदन या समिति की बैठक चल रही हो, जिसका वह सदस्य है। अधिवेशन से 40 दिन पहले और उसकी समाप्ति से 40 दिन बाद भी उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

संसद परिसर में केवल अध्‍यक्ष/सभापति के आदेशों का पालन होता है। विशेषाधिकार भंग करने या सदन की अवमानना करने वाले को भर्त्सना, ताड़ना या निर्धारित अवधि के लिए कारावास की सज़ा दी जा सकती है। सदस्यों के मामले में सदन अन्य दो प्रकार के दंड दे सकता है। सदन की सदस्यता से निलंबन या बर्खास्तगी। दांडिक क्षेत्र सदनों तक और उनके सामने किए गए अपराधों तक ही सीमित न होकर सदन की सभी अवमाननाओं पर लागू होता है।

संविधान की अनुसूचियाँ कौन सी हैं?

अनुसूचियाँ जैसा कि नाम से स्पष्ट है कुछ सूचियाँ हैं, जिनमें प्रशासकीय कार्यों, गतिविधियों और नीतियों का वर्गीकरण हैं। 26 जनवरी 1950 को जब भारतीय संविधान लागू हुआ था, तब उसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। पहली अनुसूची में अनुच्छेद 1 और 4 के अंतर्गत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के नाम है। अनुच्छेद 246 के अंतर्गत सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्यों के बीच विधान बनाने के क्षेत्रों का विवरण है। अनुच्छेद 31ख के अंतर्गत नौवीं अनुसूची 18 जून 1951 को संविधान के पहले संशोधन के साथ जोड़ी गई थी। इसके बाद तीन अनुसूचियाँ और जोड़ी गईं। जनवरी 2018 तक की सूचना के अनुसार संविधान में 448 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं। पूरा संविधान 25 भागों में विभाजित है। संविधान में अबतक 101 संशोधन हो चुके हैं।

आठवीं अनुसूची खबरों में क्यों? 

हाल में खबर थी कि इस साल संसद के मॉनसून सत्र के साथ राज्यसभा के सदस्यों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में किसी में भी बोलने की अनुमति मिल गई है। इन 22 अनुसूचित भाषाओं में राज्यसभा में 12 भाषाओं के लिए एक ही समय में साथ-साथ अनुवाद की सेवा पहले से ही थी। इनमें असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, मराठी, ओडिया, पंजाबी, तमिल, तेलगु और उर्दू शामिल हैं।

अनुच्छेद 344(1) और 351 के तहत आठवीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख किया गया है। सन 1950 में इस अनुसूची में 14 भाषाएं (असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, मलयालम, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू) थीं। सन 1967 के 21वें संविधान संशोधन द्वारा सिंधी को इसमें जोड़ा गया। इसके बाद कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को 1992 में इस अनुसूची में स्थान मिला। फिर सन 2004 में बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को इसमें शामिल किया गया। अब भी देश के अलग-अलग इलाकों में 38 और भाषाओं को इस अनुसूची में शामिल करने की माँगें हैं।

ब्रिक्स क्या है?
ब्रिक्स (BRICS) दुनिया की पाँच उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इनके अंग्रेज़ी में नाम के प्रथमाक्षरों से इस समूह का यह नामकरण हुआ है। ब्रिक्स देशों में दुनिया की 43 फीसदी आबादी रहती है और यहाँ विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 30 फीसदी है। विश्व व्यापार में इसकी हिस्सेदारी 17 फीसदी है। सन 2010 में दक्षिण अफ्रीका के इसमें शामिल होने से पहले इसका नाम "ब्रिक"। रूस को छोडकर इस समूह के सभी सदस्य विकासशील या नव औद्योगिक देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। यह समूह बनाने के लिए शुरुआती चार ब्रिक देशों ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्री सितंबर 2006 में न्यूयॉर्क शहर में मिले और उच्च स्तरीय बैठकों की एक श्रृंखला की शुरुआत की। इसके बाद 16 मई 2008 एक बड़ा सम्मेलन येकतेरिनबर्ग, रूस में आयोजित किया गया था। इसके बाद 16 जून 2009 को ब्रिक समूह का पहला औपचारिक शिखर सम्मेलन, येकतेरिनबर्ग में ही हुआ। इसमें लुइज़ इनासियो लूला डा सिल्वा (ब्राजील), दिमित्री मेदवेदेव(रूस), डॉ मनमोहन सिंह (भारत) और हू जिन्ताओ (चीन) शामिल हुए। यह समूह आपसी सहयोग के अलावा वैश्विक अर्थ-व्यवस्था की दशा-दिशा पर विचार-विमर्श करता है।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Thursday, August 23, 2018

राज्य-विहीन लोग कौन हैं?

अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार राज्यविहीन व्यक्ति वह होता है, जिसे कोई भी देश अपना नागरिक नहीं मानता. ऐसे कुछ व्यक्तियों को शरणार्थी कह सकते हैं, पर सभी शरणार्थी राज्यविहीन नहीं होते. किसी देश का नागरिक बनने की कुछ बुनियादी शर्तें हैं. एक, भूमि-पुत्र होना. यानी जिस जमीन पर व्यक्ति का जन्म हो, वह उस देश का नागरिक हो. ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका इस सिद्धांत को मानते हैं. दूसरे वंशज होना. माता-पिता की नागरिकता को ग्रहण करना. दुनिया के ज्यादातर देश इस सिद्धांत को मानते हैं. व्यक्ति के पास इस दोनों के प्रमाण नहीं होते, तो वह राज्य विहीन हो जाता है. दुनिया के देशों में नागरिकता नियम अलग-अलग हैं. जन्म के पंजीकरण की व्यवस्थाएं नहीं हैं, इस कारण जटिलताएं हैं. संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में इस समस्या के निराकरण पर विचार हो रहा है. दुनिया में एक करोड़ से ज्यादा राज्यविहीन लोग हैं.

एनआरसी क्या है?
सिद्धांततः नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) भारतीय नागरिकों की सूची है. भारत में असम अकेला राज्य है, जहाँ सन 1951 में इसे जनगणना के बाद तैयार किया गया था. भारत में नागरिकता संघ सरकार की सूची में है, इसलिए एनआरसी से जुड़े सारे कार्य केंद्र सरकार के अधीन होते हैं. यह कार्य देश के रजिस्ट्रार जनरल के अधीन है. सन 1951 में देश के गृह मंत्रालय के निर्देश पर असम के सभी गाँवों, शहरों के निवासियों के नाम और अन्य विवरण इसमें दर्ज किए गए थे. इस एनआरसी का अब संवर्धन किया जा रहा है, जिसका दूसरा ड्राफ्ट हाल में जारी किया गया है. एनआरसी को अपडेट करने की जरूरत सन 1985 में हुए असम समझौते को लागू करने की प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसे लागू करने के लिए सन 2005 में एक और समझौता हुआ था. सन 2009 में एक एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली कि अवैध नागरिकों के नाम वोटर सूची से हटाए जाएं. यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में चल रही है. एनआरसी संशोधन का पहला ड्राफ्ट 31 दिसम्बर 2017 को जारी हुआ था और दूसरा ड्राफ्ट अब जारी हुआ है. इसमें उन व्यक्तियों के नाम हैं जो या तो 1951 की सूची में थे, या 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि के पहले असम के निवासी रहे हों.

क्या यह अंतिम सूची है?

नहीं यह दूसरी ड्राफ्ट सूची है. यानी कि अब तक जो नाम इसमें शामिल किए जा चुके हैं उनकी सूची. इसके पहले 30 दिसम्बर 2017 को पहली ड्राफ्ट सूची जारी की गई थी. उसमें 1.9 करोड़ नाम शामिल थे. दूसरी सूची में 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं. कुल 3.29 लाख लोगों ने इसमें नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन किया है. अब तमाम शिकायतों को सुनने के बाद जो सूची जारी की जाएगी, वह अंतिम सूची होगी.उस सूची में भी नाम नहीं होने से कोई व्यक्ति विदेशी साबित नहीं हो जाएगा. विदेशी न्यायाधिकरण इसका फैसला करेगा. उसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.



Sunday, August 12, 2018

संयुक्त राष्ट्र का बजट कितना है?

हाल में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा था कि हमारे पास धन की कमी होती जा रही है। उन्होंने सदस्य देशों से आग्रह किया कि वे अपने हिस्से का धन यथासम्भव जल्द से जल्द दें। उन्होंने इन देशों को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि संयुक्त राष्ट के कोर बजट में इस साल 13.9 करोड़ डॉलर की कमी पड़ रही है। ऐसा संकट पहले कभी नहीं आया। दिसम्बर 2017 में संरा महासभा की बजट समिति ने 2018-19 के लिए 5.4 अरब डॉलर का बजट तैयार किया था। 2016-17 के बजट की तुलना में यह धनराशि यों भी 28.5 करोड़ डॉलर कम थी। संरा बजट दो साल के लिए होता है। कोर बजट में संरा शांति प्रयासों के लिए धनराशि शामिल नहीं होती। नवीनतम सूचना के अनुसार इस साल 193 सदस्य देशों में से 112 ने ही अपना अंशदान किया है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका देता है, जो संरा के कुल बजट का करीब 22 फीसदी होता है। अमेरिकी अंश सबसे बाद में आता है, क्योंकि उसका वित्त वर्ष 1 अक्तूबर से शुरू होता है।, पर इस साल अमेरिका सहित संरा सुरक्षा परिषद के पाँचों स्थायी सदस्यों का अंशदान आ चुका है। संरा में अमेरिका की राजदूत निकी हेली ने इस साल जनवरी में कहा था कि संयुक्त राष्ट्र को सुधार करना चाहिए और अपने खर्चों में कमी भी करनी चाहिए। निरर्थक खर्चों के लिए हम अमेरिकी नागरिकों के धन को बर्बाद नहीं करेंगे।

शांति-स्थापना बजट

संरा कोर बजट के मुकाबले शांति-स्थापना बजट ज्यादा बड़ा है। यह सालाना आधार पर होता है। 1 जुलाई 2018 से 30 जून 2019 के वर्ष के लिए 6.7 अरब डॉलर का बजट है। यह धनराशि संयुक्त राष्ट्र के 14 में से 12 शांति-स्थापना मिशनों के लिए है। शेष दो मिशन हैं संयुक्त राष्ट्र युद्धविराम अनुश्रवण संगठन (UNTSO) और भारत-पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सैन्य-पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP)। इन दोनों के लिए धनराशि संरा के मुख्य बजट से आती है। संरा शांति-स्थापना बजट दुनिया में हर साल होने वाले सैनिक व्यय (सन 2013 में जो 1,747 अरब डॉलर था) की तुलना में आधे से एक फीसदी के बीच है।

संरा सदस्य देशों की संख्या

संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या इस समय 193 है। इन सभी देशों को संरा महासभा में बराबरी का दर्जा मला हुआ है। किसी भी नए उस देश को सदस्यता दी जा सकती है, जो सम्प्रभुता सम्पन्न हो। इस सदस्यता के लिए संरा महासभा के अलावा सुरक्षा परिषद की अनुमति की जरूरत भी होती है। सदस्य देशों के अलावा संरा महासभा में पर्यवेक्षक के रूप में देशों को आमंत्रित किया जा सकता है। इस समय होली सी (वैटिकन) और फलस्तीन दो संरा पर्यवेक्षक हैं। पर्यवेक्षक महासभा की बैठकों में भाग लेने के अलावा अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं, पर मतदान में भाग नहीं ले सकते।

ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट किन्हें कहते हैं?
ग्रीनफील्ड शब्द औद्योगिक अर्थ में प्रयुक्त होता है। हाल में देश के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्व स्तरीय शिक्षा संस्थानों की रेस में छह भारतीय विश्वविद्यालयों को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा देने की घोषणा की। इनमें जियो इंस्टीट्यूट को ग्रीनफील्ड श्रेणी में रखा गया है। ग्रीनफील्ड पूरी तरह से नयी परियोजना को कहते हैं। यानी ऐसी जमीन पर कारखाना लगाना जो अभी नई या हरी है। जिसमें पहले के किसी निर्माण को ढहाना या विस्तार करना शामिल नहीं हो। आजकल सॉफ्टवेयर सहित विभिन्न उद्योगों में इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। एक शब्द और चलता है ब्राउनफील्ड परियोजना, जिसका मतलब है किसी मौजूदा प्लांट का विस्तार करके क्षमता बढ़ाना। ब्राउनफील्ड बिलकुल नई परियोजना नहीं होती।
राजस्थान पत्रिका के नॉलेज कॉर्नर में प्रकाशित

Friday, August 10, 2018

संयुक्त राष्ट्र का जन्म


संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय अंतरसरकारी संगठन के निर्माण का विश्व का दूसरा प्रयास था. यह विचार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उभरा तथा 5 राष्ट्रमंडल सदस्यों तथा 8 यूरोपीय निर्वासित सरकारों ने 12 जून, 1941 को लंदन में हस्ताक्षरित अंतर-मैत्री घोषणा में पहली बार यह बात कही. इसके बाद अटलांटिक चार्टर पर 14 अगस्त, 1941 को दस्तखत हुए. फिर 1 जनवरी, 1942 को वाशिंगटन में अटलांटिक चार्टर का समर्थन करने वाले 26 देशों ने संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किए. यहां पहली बार संयुक्त राष्ट्र नाम का इस्तेमाल हुआ. फिर इंग्लैंड, चीन, सोवियत संघ तथा अमेरिका ने 30 अक्टूबर, 1943 को मॉस्को घोषणा पर हस्ताक्षर किए. सन 1944 में अगस्त से अक्टूबर तक सोवियत संघ, अमेरिका, चीन तथा ब्रिटेन के प्रतिनिधियों ने वाशिंगटन के डम्बर्टन ओक्स एस्टेट में कई बैठकें कीं. फिर 7 अक्टूबर, 1944 को संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावित ढांचे को प्रकाशित किया गया. इन प्रस्तावों पर याल्टा सम्मेलन (फरवरी 1945) में विचार-विमर्श किया गया. इसके बाद 25 अप्रैल, 1945 को सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन में 50 देशों के प्रतिनिधि शमिल हुए, जहाँ नए संगठन का संविधान तैयार किया गया. 26 जून, 1945 को सभी 50 देशों ने चार्टर पर हस्ताक्षर किए. पोलैंड सम्मेलन में हिस्सा नहीं ले सका था किंतु थोड़े समय बाद चार्टर पर हस्ताक्षर करके वह भी संस्थापक सदस्यों की सूची में शामिल हो गया. इसके बाद 24 अक्टूबर, 1945 से चार्टर प्रभावी हो गया. 24 अक्टूबर को हर साल संयुक्त राष्ट्र दिवस मनाया जाता है.

संरा मुख्यालय

संरा मुख्यालय न्यूयॉर्क में है. 14 दिसंबर, 1946 को संयुक्त राष्ट्र ने अपना मुख्यालय अमेरिका में रखने के पक्ष में मतदान किया. न्यूयॉर्क में ईस्ट नदी के किनारे सात हैक्टेयर भूमि खरीदने के लिए अमेरिका के जॉन डी रॉकफेलर जूनियर ने 85 लाख डॉलर की रकम दान में दी. नगर प्रशासन ने भी उस क्षेत्र में कुछ अतिरिक्त जमीन उपलब्ध कराई. संगठन की इमारत 1952 में बनकर तैयार हुई. न्यूयार्क के लांग आईलैंड में लेक सक्सेस पर अस्थायी मुख्यालय बनाया गया था. 10 जनवरी, 1946 को लंदन में महासभा का पहला सत्र आयोजित हुआ था.

सालाना अधिवेशन

संरा महासभा के नियमित, विशेष और आपात अधिवेशनों की व्यवस्था है. नियमित अधिवेशन हर साल सितंबर के तीसरे मंगलवार को शुरू होते हैं. इसके अगले हफ्ते के मंगलवार से नियिमित बहस नौ कार्य दिवसों में लगातार चलती है. इस साल संरा महासभा का 73वां वार्षिक अधिवेशन होगा, जो मंगलवार 18 सितंबर से शुरू होगा. सालाना नियमित बहस मंगलवार 25 सितंबर को शुरू होगी. 72वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इक्वेडोर की विदेश मंत्री मारिया फर्नांडा एस्पिनोसा गार्सेस को 73वीं महासभा की अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया है. मारिया फर्नांडा संरा महासभा की चौथी महिला अध्यक्ष बनेंगी.
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